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कविताः पागल

credit: google

दुनिया में हर कोई पागल है

कोई किसी के प्यार में पागल है;

कोई किसी के तकरार में पागल है;

कोई पागल है इजहार-ए-मुहब्बत में तो,

कोई किसी के इन्कार में पागल है!

 

कोई अपने रोजी रोजगार में पागल है;

कोई रोजी-रोटी के जुगाड़ में पागल है;

कोई पागल है संपूर्णता में भी तो,

कोई हालात-ए-वक्त की मार में पागल है!

 

कोई खुशी से अपने परिवार में पागल है;

कोई दुखी हो उनसे तिरस्कार में पागल है;

कोई पागल है जीने के नए तौर-तरीकों में तो,

कोई पुराने रिवाज-ओ-संस्कार में पागल है!

 

कोई अपने बच्चे के दुलार में पागल है;

कोई अपने बच्चे के दुत्कार में पागल है;

कोई पागल है बच्चों के संग रहकर तो,

कोई बच्चे के लौट आने के इंतजार में पागल है!

 

कोई धन-दौलत बेशुमार में पागल है;

कोई स्वयं के अहंकार में पागल है;

कोइ पागल है दुनिया की फिक्र में तो,

कोई खामखाह ही बेकार में पागल है!

 

कोई रास-रंग श्रृंगार में पागल है;

कोई सादगी भरे विचार में पागल है;

कोई पागल है उन्मुक्त गगन में भी तो,

कोई बंद दयार-ओ-दीवार में पागल है!

 

कोई सुख में तो कोई दुख भरे संसार में पागल है;

कोई प्रकाश में तो कोई अंधकार में पागल है;

पागल है हर कोई यहाँ इक दूजे को पागल बनाने में तो,

कोई खुद को समझ बहुत बड़ा समझदार पागल है !

 

कवयित्री प्रिया सिन्हा  मूल रूप से बिहार की रहने वाली हैं।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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