प्रभात
देश की राजधानी में धूल भरी आंधियों ने वातानुकूलित कमरों में बैठे लोगों का कुछ नहीं बिगाड़ा है। उनका भी कुछ नहीं बिगाड़ा जो राजनिवास में धरना दे रहे हैं, लेकिन दोष तो जनता उन्हीं पर मढ़ रही है। आखिर मढ़े भी क्यों न जब नीति निर्माता वही हों। केंद्र सरकार भी राज्य की आप सरकार पर वार करने से नहीं चूक रही। मतलब राजनीति तो इसको लेकर होती ही है। जोकि दिल्ली से शुरू होती है और मीडिया के माध्यम से पूरे देश में चलती है, लेकिन मौसम का हाल केवल दिल्ली में ही नहीं बिगड़ता, प्रदूषण केवल दिल्ली में नहीं है। जलवायु परिवर्तन का असर और कहर केवल एक छोटे से एरिया में नहीं है। इसे समझना जरूरी है। इस पर राजनीति करने से ही केवल काम नहीं चलेगा।
आखिर क्या वजह है कि पर्यावरण पर बहस लोगों के बीच जारी है
5 जून को पर्यावरण दिवस था इस दिन तो पर्यावरण जैसे मुद्दे केंद्र में हों तो यह स्वाभाविक ही है, लेकिन इसके बाद चर्चा की वजह अस्वाभाविक हो गई है। आखिर क्यों
दिल्ली और उत्तर पश्चिम राज्यों की हालतः जरा अपने घर के दरवाजे को खोलकर सड़क पर निकलिए, गलियों में घूमिये। मास्क लगाए लोग मिल रहे होंगे। गर्मी से परेशान फुटपाथ पर बैठे लोगों के बीच आप भी तप रहे होंगे। आप थोड़ी देर आसमान की ओर नजर दौड़ाएं, जल्दी ही आपके मुंह में जहरीले धूल के प्रदूषित कण घुसने लगेंगे और आप खांसते हुए जल्दी से अपने अनुकूल आशियाना ढूंढ़ने लगेंगे। लेकिन जिनके पास मजबूरियां हैं और कहीं आशियाना नहीं है वे इस जहरीले वातावरण में तड़प रहे हैं। एक तरफ यह नजरिया दिल्ली जैसे राजधानी का है जहां आए दिन तूफान का नाम अब सुनने को मिल रहा है। शरद मौसम में मीडिय़ा से लेकर मंडी तक प्रदूषण का खौफ स्मॉग के रूप में दिख रहा था। लेकिन, इस समय गर्मी में धूल भरी आंधियों की वजह से दिल्ली के हर घरों में दहशत फैला हुआ है। खतरनाक नजारे ही नहीं है, बल्कि इनकी वजह से मौतें खतरनाक तरीके से हो रही हैं।
पिछले दो दिनों से आसमान में राजस्थान और ब्लूचिस्तान (पाकिस्तान) की ओर से चली धूलभरी गर्म हवाओं के चलते उत्तर भारत के आसमान पर धूल की परत बन गई हैं। धूल भरी हवा से राजस्थान, दिल्ली, एनसीआर, हरियाणा, चंडीगढ़ और पश्चिमी उत्तर प्रदेश सर्वाधिक प्रभावित रहे इसका कारण पक्षिमी विक्षोभ माना जा रहा है।
मौसम विभाग के निदेशक कुलदीप श्रीवास्तव के मुताबिक राजस्थान से आ रही धूल भरी हवाएं जमीन की सतह से ढाई किलोमीटर ऊंचाई तक जा रही है। इन हवाओं की रफ्तार 35 किलोमीटर प्रति घंटे है। राजस्थान से चलकर हवाएं जब दिल्ली के पास पहुंच रही हैं तो यहां पर एंटी साइक्लोनिक सरकुलेशन के चलते पश्चिम उत्तर प्रदेश की तरफ नहीं मुड़ रही है। इस वजह से दिल्ली एनसीआर के ऊपर धूल की मात्रा ज्यादा इकट्ठा हो रही है।
16 को उत्तराखंड और इससे जुड़े इलाकों में थंडर स्टॉर्म की एक्टिविटी शुरू होने का अनुमान है, इसका सीधा असर उत्तर पश्चिम भारत में धूल भरी हवाओं पर पड़ेगा। लिहाजा यही उम्मीद है 16 से दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में धूल भरी हवाओं का कहर काफी हद तक कम हो जाएगा।
कितने खतरनाक हैं ये धूल के कण
दिल्ली-एनसीआर में पीएम 10 (10 मिलीमीटर से कम मोटाई वाले कणों की मौजूदगी) का स्तर 796 और केवल दिल्ली में 830 है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार, दिल्ली में कई स्थानों पर वायु गुणवत्ता सूचकांक 500 के निशान से पार है। पूर्वी दिल्ली के आनंद विहार इलाके में गुरुवार सुबह पीएम 10 का स्तर 929 और पीएम 2.5 का स्तर 301 मापा गया।
गौरतलब है कि 0 से 50 के बीच के वायु गुणवत्ता सूचकांक को ‘अच्छा’ माना जाता है, 51-100 के बीच को ‘संतोषजनक’, 101-200 के बीच को ‘मध्यम’, 201-300 को ‘खराब’, 301-400 को ‘बहुत ख़राब’ और 401-500 ‘ख़तरनाक’ माना जाता है।
ईपीसीए ने धूल प्रदूषण नियंत्रण को लेकर जरूरी कदम उठाने को कहा
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त पर्यावरण प्रदूषण रोकथाम एवं नियंत्रण प्राधिकरण (ईपीसीए) ने बुधवार को दिल्ली-एनसीआर से जुड़े राज्यों के मुख्य सचिवों को धूल प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए तत्काल ज़रूरी क़दम उठाने के लिए कहा है।
उपराज्यपाल ने सिविल निर्माण कार्यों को बंद करने का दिया आदेश
दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने आज आदेश दिया कि धूल के गुबार को देखते हुए रविवार तक सभी सिविल निर्माण कार्यों को पूरे दिल्ली में बंद कर दिया जाए। साथ ही लोक निर्माण विभाग और म्युनिसिपल कार्पोरेशन की मदद से यांत्रिक तरीके से सड़क को साफ किया जाएगा। पानी का छिड़काव भी होगा।
उत्तर प्रदेश और पूर्वोत्तर इलाकेः वैसे तो आंधी पानी आना कोई अपने आप में खास बात नहीं है। लेकिन जलवायु परिवर्तन की वजह से कभी आंधी का तूफान में तब्दील होना तो कभी बारिशों से पूर्वोत्तर राज्यों खासकर त्रिपुरा और मणिपुर में बदहाली का आलम इस प्रकार का होना कि लोग बेघर हो रहे हों तो ऐसे समय में इससे चिंताजनक बात क्या हो सकती है। उत्तर प्रदेश में तेज आंधी से पिछले 30 घंटों में 15 लोगों की मौत और करीब दो दर्जन लोगों के घायल होने की खबर है। असम में भूस्खलन जारी है।
4 में से 1 मौत प्रदूषण से
लैंसेट कमीशन ऑन पॉल्यूशन और हेल्थ ने एक रिपोर्ट सुनकर आप हैरान हो जाएंगे। इस रिपोर्ट के अनुसार, प्रदूषण के मामले में भारत दुनिया में पहले स्थान पर है। दुनिया भर में प्रदूषण से मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। प्रदूषण से मौत के आकंड़े किसी गृह युद्ध, हिंसा, स्मोकिंग, प्राकृतिक आपदा और भूखमरी से खतरनाक है। 4 में से 1 मौत प्रदूषण जनित बीमारियों की वजह से हो रही है जो देश इससे ग्रस्त हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, 2015 में दुनियाभर में प्रदूषण से मरने वालों की संख्या 90 लाख थी। लैंसेट की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 2015 में प्रदूषण से 25 लाखों लोगों की मौत हुई थी। इनमें से वायु प्रदूषण के चलते मरने वालों की संख्या 18 लाख से ज्यादा तो वहीं, जल प्रदूषण के कारण 6 लाख से ज्यादा (0.64 मिलियन) लोगों की मौत हुई थी। भारत में यह आकंड़ा भूखमरी जैसे संकट से लेकर टीबी और एड्स की बीमारियों से भी ज्यादा है। प्रदूषण की वजह से हर 5 मिनट में एक बच्चे की मौत हो रही है। प्रदूषण के कारण 90 लाख लोगों के मरने का आंकड़ा, स्मोकिंग से मरने वाले लोगों से डेढ़ गुना ज्यादा है। वहीं, एड्स और मलेरिया जैसी बीमारियों से तीन गुना और सड़क दुर्घटना से होने वाली मौत से छह गुना ज्यादा प्रदूषण हो रही है।
विकासशील देशों में इन्फ्रास्ट्रक्चर और औद्योगिकीकरण के कारण पर्यावरण के साथ सबसे ज्यादा खिलवाड़ हुआ है। लैंसेट रिपोर्ट के मुताबिक, 2015 में प्रदूषण के कारण जहां भारत में 25 लाख मौते हुई वहीं, चीन में 18 लाख लोग मारे गए हैं। पाकिस्तान इस मामले में तीसरे, नाइजीरिया चौथे, इंडोनेशिया पांचवे और रूस छठे नंबर पर है।
क्या हो इसका उपाय
जैसा कि अगर हम भारत में ही देखें तो जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण को लेकर जो खतरा हमारे सामने है वह कोई टालने वाला विषय अब नहीं रहा और न ही केवल केंद्र और राज्य सरकारों का एक-दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करने का। आपने हाल ही में देखा होगा कि शिमला जैसे पर्वतीय इलाकों में पानी की किल्लत से लोग जूझ रहे थे। आए दिन सूखाग्रस्त वाले इलाके बाढ़ की चपेट में और बाढ़ ग्रस्त इलाके सूखे की चपेट में चले जा रहे हैं। अब सरकारें शोध से भी नहीं समझ पा रही है कि आखिर पहले से आकलित इलाकों के अनुसार कैसे रणनीति बनाई जाए।
नियंत्रण, संरक्षण और रोपण है जरूरी
जरूरी अब यह है कि हमें हर प्रदूषणजनित विपदाओं और पर्यावरणीय आपदाओं से लड़ने के लिए औऱ भविष्य को इस मार से बचाने के लिए संरक्षण पर ध्यान देना होगा। वह चाहे जल यानी नदियों, जलाशयों के संरक्षण की बात हो या वायु संरक्षण यानी पेड़ो का संरक्षण करने की बात हो, संरक्षण जरूरी है। इस पर गंभीर होकर योजनाओं पर काम करने चाहिए। संरक्षण के बाद दूसरी जरूरी चीज है रोपण यानी कि वृक्षारोपण जिसमें अधिक से अधिक प्राकृतिक वातावरण को बनाने का मुद्दा हो। जलाशयों का निर्माण और उन पर शोध करने की दिशा में काम करना चाहिए। तीसरी सबसे अहम बात यह है कि प्रदूषक के साधनों यानी वाहनों, एसी आदि पर नियंत्रण रखने की कोई नीति बने। अगर इन्हीं तीन चीजों पर नियंत्रण, संरक्षण और रोपण पर ध्यान दिया जाएगा तो बहुत हद तक हम समस्याओं से निपट लेंगे।
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