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कविता

विशेषः जनकवि, जिन्होंने प्रधानमंत्री तक के खिलाफ लिखा, जानिए जिन्हें मारने की योजना भी बनी थी

-सुकृति गुप्ता “जनकवि हूँ, मैं साफ़ कहूंगा, क्यों हकलाऊं” आज उस आदमी का जन्मदिन है, जिसे घूम-घूम कर कविता लिखने का शौक था। घूमने का इतना शौक फ़रमाते थे कि बीवी के पास भी नहीं…


कविताः जले खतों को राख में फिर से उभरते देखा

-विवेक आनंद सिंह किसी सूरत को देखा किसी मूरत को देखा बदलते हर एक मौसम में किसी अपने को देखा   खुमारी के आलम में, नशा चढ़ कर जो बोला है लगा के आग सीने…


कविताः जिंदगी सिगरेट का धुआं

मुझे याद है धुएं के छल्ले फूंक मार के तोड़ना तुम्हें अच्छा लगता था   लंबी होती राख झटकना बुझी सिगरेट उंगलियों में दबा लंबे कश भरना फिर खांसने का बहाना और देर तक हंसना…


कविताः यह पल प्रभाव डालेगा

मरना लाज़मी है पर मर कैसे रहे हैं, यह पल प्रभाव डालेगा ज़िन्दा मर रहे हैं या ज़िन्दा रहने के लिए मर रहे हैं   भूख मारने के लिए मर रहे हैं, या भूखे मर…