कविताः अनाथ है, फिर भी खुश है
न कोई साथ था, न कोई पास था मैंने फिर भी एक अकेली बच्ची को हंसते देखा। न जाने कौन सी मजबूरी थी जो उसे छोड़ दिया उस नादान को इस बेगैरत दुनिया में…
न कोई साथ था, न कोई पास था मैंने फिर भी एक अकेली बच्ची को हंसते देखा। न जाने कौन सी मजबूरी थी जो उसे छोड़ दिया उस नादान को इस बेगैरत दुनिया में…
देखो सरहदें अभी भी गुनगुनी सी हैं उबलने से पहले उसमें ‘मुहब्बत की फाँके घोल दो’ क्या ग़ैर तुम, क्या ग़ैर हम चलो, रात आने से पहले ‘इस गिरह के टाँके खोल दो’ दीवारें उम्मीद…