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कविताः हम ही कल के नायक हैं

तस्वीरः गूगल साभार

-संजय

आए हम लेकर पीड़ा का सागर, हम ही इसके गायक हैं,

भले हों उपेक्षित आज, पर हम ही कल के नायक हैं।

 

मिला हमें सदा ही वो बिखरे हों काँटें जिस पथ में,

सुख व हम हैं ऐसे ही, चाँद सितारे हों अमावस्या के नभ में,

बीता बचपन, बीती जवानी, बीता सारा जीवन अभावों में

और सहते रहे दंश हम कितने अभिशापों का ख़ुद के ही भावों में,

 

पीया है विष हमने दुनिया भर के आघातों का,

सो इस जग में हम ही नीलकंठी परम्परा के वाहक हैं,

भले हो उपेक्षित आज पर हम ही कल  के नायक हैं।

 

हम लिखा के लाए आँखों में ही मंज़िल का खोना,

हर दिल अज़ीज़ होके भी किसी के दिल में न होना,

देखे हैं हमने अपने ख़्वाबों के जनाज़े अपनी ही आँखों में,

अभागे ऐसे स्वपसीने की ठंडक ख़ुद को ही हासिल न होना,

 

सिखलाया है हम ही ने जग को, बदलना ख़ून को पसीने में,

सो लिखने को परिवर्तन की गाथाएं हम ही लायक़ हैं,

भले हों उपेक्षित आज पर हम ही कल के नायक हैं।

 

हम उनमें से हैं जिन्होंने देखा है सावन में भी पतझड़,

दरिया बनाने वाले हम, हम ही को न मिला जल अँजुरीभर,

हम ही ने काटे पर्वत, हम ही ने उगाए हैं नवांकुर,

खेत खलिहान उगाकर भी रहे भूख से शापित जीवनभर,

 

अंकित हैं हमारे ही पांव के निशां हर एक रास्ते पर

सो क्रान्ति के प्रणेता हम, हम ही बदलाव के अधिनायक हैं,

भले हों उपेक्षित आज पर हम ही कल के नायक हैं।

 

(संजय “चारागर” पेशे से चिकित्सक हैं और कविता-पाठ में काफी रुचि रखते हैं)

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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