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sanjay

कविताः हम ही कल के नायक हैं

-संजय आए हम लेकर पीड़ा का सागर, हम ही इसके गायक हैं, भले हों उपेक्षित आज, पर हम ही कल के नायक हैं।   मिला हमें सदा ही वो बिखरे हों काँटें जिस पथ में, सुख व हम हैं ऐसे ही, चाँद सितारे हों अमावस्या के नभ में, बीता बचपन, बीती जवानी, बीता सारा जीवन अभावों में और सहते रहे दंश हम कितने अभिशापों का ख़ुद के ही भावों में,   पीया है विष हमने दुनिया भर के आघातों का, सो इस जग में हम ही नीलकंठी परम्परा के वाहक हैं, भले हो उपेक्षित आज पर हम ही कल  के नायक हैं।   हम लिखा के लाए आँखों में ही मंज़िल का खोना, हर दिल अज़ीज़ होके भी किसी के दिल में न होना, देखे हैं हमने अपने ख़्वाबों के जनाज़े अपनी ही आँखों में, अभागे ऐसे स्वपसीने की ठंडक ख़ुद को ही हासिल न होना,   सिखलाया है हम ही ने जग को, बदलना ख़ून को पसीने में, सो लिखने को परिवर्तन की गाथाएं हम ही लायक़ हैं, भले हों उपेक्षित आज पर हम ही कल के नायक हैं।   हम उनमें से हैं जिन्होंने देखा है सावन में भी पतझड़, दरिया बनाने वाले हम,…


…आने वाले दिनों में (कविता)

– संजय भास्कर  आने वाले दिनों में जब हम सब कविता लिखते पढ़ते बूढ़े हो जायेंगे उस समय लिखने के लिए शायद जरूरत न पड़े पर पढ़ने के लिए एक मोटे चश्मे की जरूरत पड़ेगी…


कविताः पुरानी डायरी के पन्ने

– संजय भास्कर   अक्सर जब कभी मिल जाती है पुरानी डायरी तब लगभग हर उस शख्स के चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती है जिन्होंने कभी इस डायरी में कुछ सपने संजोये होंगे डायरी में…


कविताः सियासत का रंग

-चारागर मज़हब की टोकरी हाथ में लिये देखो सियासत लोलीपॉप बाँट रही है, हरे और भगवा रंग की फिरकी में उलझ-उलझ देखो जनता गोल-गोल चक्कर काट रही है नेताजी हर बार आते हैं वही सड़े गले वादों वाला थाल हाथ में लिए और लगा घर-घर फिर देखो फेरी नयों की आड़ में पुराने बेच जाते हैं, ख़ुद तो ऊपर से नीचे सफ़ेदपोश बने रहते हैं तुम्हें हरा या भगवा बना जाते हैं हर बार वो क़समें खाते हैं मुद्दों पे चुनाव लड़ने की हम क़समें खाते हैं ईमान और ज़मीर से वोट डालने की, पर ज्यों-ज्यों चुनाव नज़दीक आते हैं मुद्दे, मुद्दे इस नाम का तो कोई जन्तु नज़र ही नहीं आता, आता है तो राम-रहीम ,अगड़े-पिछड़े, या फिर ख़ून ख़राबा और लड़ाई झगड़े, और इस लड़ाई झगड़ों में दोस्त, भाई, पड़ोसी सब खो जाते हैं और हम फिर से रह जाते हैं सिर्फ़ हिंदू या मुसलमान और इस तरह से सियासत एक बार फिर जीत जाती है और इंसानियत एक बार फिर से हार जाती है   (डॉक्टर संजय यादव “चारागर” पेशे से चिकित्सक हैं…