– संजय भास्कर
जिंदगी तो एक मुसीबत है
मुसीबत के सिवा कुछ भी नहीं
पत्थरों तुम्हे क्यूं पूजूं
तुमसे भी तो मिला कुछ भी नहीं
रोया तो बहुत हूं आज तक
अब भी रोता हूँ नया कुछ भी नहीं
चाहा तो बहुत कुछ था मैंने
कोशिश की पर कर न सका कुछ भी नहीं
प्रेम है तो सब के अन्दर
पर इस दुनिया में प्रेम से बुरा कुछ भी नहीं
ये दौर है आज कलयुग का
जिसमें धोखा फरेब के सिवा कुछ भी नहीं
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