कुछ याद किए होते सब भूलने से पहले
कुछ कहा भी होता, चुप होने से पहले
शायद मुझमें ही कुछ कमी थी जो याद ना आए तुम्हें
कुछ तो वफ़ा किया होता, बे मुरव्वत होने से पहले
तकदीर अपनी जगह, खुदाई अपनी जगह
तूने बन्दगी दिखाई होती थोड़ी, दरिन्दगी से पहले
सब कुछ मिट जाना है, खाक में
बस इक घरौंदा तो बनाया होता रेत के महल से पहले
मान लेते तुम बेगुनाह थे उस वक्त
बेवक्त तो इज़हार-ए-हाल किया होता खोने से पहले
खलिश जाती नहीं अब उस ज़ख्म की
इक बार तौबा किया होता उस गुनाह से पहले
(विवेक आनंद सिंह ने यह रचना हमें लिखकर भेजा है)
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