-आशीष
हमारे देश में राजनीति के हालात दिन-प्रतिदिन ख़राब होते जा रहे हैं। ऐसी स्थिति की परिकल्पना शायद ही किसी ने की होगी। देश में जो कुछ राजनीति में चल रहा है वो बहुत ही चिंताजनक है। राजनीति का अंदाज़ा हम दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनाव से लगा सकते हैं जहां पैसे और ताकत की वजह से चुनाव लड़ा जा रहा है। कहा गया है छात्र चुनाव में कोई भी उम्मीदवार पांच हज़ार से ज्यादा खर्च नहीं करेगा। लेकिन, इसका विपरीत रूप हमें देखने को मिल रहा है। एक तरफ तो पूरे देश में स्वछता अभियान चल रहा है दूसरी, तरफ कॉलेजों के परिसर उम्मीदवारों के नाम के पर्चों से गंदे हो रखे हैं।
अगर यह हाल छात्र राजनीति का हो रहा है तो आने वाले समय में हमें बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। आज जो राजनीति में हो रहा है उसे हम आने वाले समय की राजनीति से भी जोड़कर देख सकते हैं। हर वर्ष छात्रों की मांगों को अपना मुद्दा बनाया जाता है और बाद में वो नाकाम साबित होते हैं। यही छात्र नेता देश की राजनीति में कदम रखते हैं अगर ऐसे ही होता रहा तो केवल तो केवल राजनीति में बाहुबली लोग ही रहेंगे। हम देख सकते हैं कि छात्र चुनाव में भी 40 से 50 फीसद वोटिंग ही होती है। आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी ऐसा हो रहा है। पहले मतदान के अधिकार के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ी दूसरी तरफ आज कोई मतदान देने में रूचि नहीं ले रहा। ऐसा क्यों हो रहा है? इसका क्या कारण है कि छात्रों का विश्वास धीरे-धीरे लोकतंत्र से ख़त्म होता जा रहा है? आज इसका ज़वाब किसी के पास नहीं है। सत्ता में तो आना सभी चाहते हैं लेकिन मूल कार्य कोई नहीं करना चाहता। अगर देखा जाए तो छात्रों की मांग वैसे की वैसे ही है। सरकार को इस तरफ ध्यान देना होगा। ऐसी ही अगर छात्र राजनीति में होता रहा तो एक दिन इसका परिणाम बहुत भयानक होगा। आज हम सबको इसको लेकर आवाज़ उठानी होगी ताकि राजनीति की दिशा और दशा छात्र राजनीति से सुधरे और आगे चलकर एक अच्छी राजनीति करें।
हमें इस पद्धति को बदलना होगा ताकि हम ऐसे उम्मीदवार का चुनाव कर सकें जो हमारी बातों को आगे लेकर जाए न कि जाति, धर्म, वर्ग व् पैसों के बल में चुनाव जीते।
(आशीष राम लाल आनंद कॉलेज (डीयू) में छात्र हैं)
ashishgusain234@gmail.com
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