–साहित्य मौर्या
हमें तेरे सत्ता के सियासी खेल का हिस्सा नहीं बनना
हमें हमारी परिश्रम का मेहनताना दे दो और हमारी मांग पूरी करो।
कुछ ऐसे ही नारे के साथ 5 सितंबर को लाल रंग की टोपियों, क़मीज़ें पहने लाखों मज़दूर-किसान-कामगार और लाल रंग में ही साड़ी-ब्लाउज़ पहने महिलाओं ने जब दिल्ली के रामलीला मैदान से संसद मार्ग तक मार्च निकाला तो पूरा सड़क लाल-लाल हो गया।
बहरहाल, ये लाल रंग जितना मायने नहीं रखता उससे कई गुणा अधिक इन लाखों किसानों के लिए क़र्ज़ माफ़ी, महँगाई, किसानों के उपज का उचित मूल्य, पेट्रोल-डीज़ल और स्वामीनाथ आयोग जैसे मांग मायने रखती हैं। इस प्रदर्शन में हिस्सा लेने के लियें देश के अलग-अलग हिस्से से लाखों आंदोलनकारी दिल्ली पहुँचे थे।
ये सिलसिला यहीं नहीं रुकता, बीते 7 मार्च 2018 को लाखों किसान महाराष्ट्र के नासिक से तक़रीबन 180 किलोमीटर पैदल चलकर मुंबई के आज़ाद मैदान में पहुँचे थे। इनकी भी माँगें लगभग वहीं रही थीं जो 5 सितंबर को दिल्ली के सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे किसानों के थे ।
6 जून 2018 को देश भर में जगह-जगह “गाँव बंद किसान आंदोलन” चला था, जिसमें लुधियाना, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा जैसे प्रमुख राज्यों ने तक़रीबन 10 दिनों तक शहरों को दूध, सब्ज़ी, अनाज वग़ैरह का सप्लाई बंद कर दिया था। इन किसानों की माँगे भी वही थीं जो नासिक और दिल्ली किसान आंदोलन का रहा ।
किसान आंदोलन में ही पिछले साल 6 जून 2017 को मध्य प्रदेश के मंदसौर में पुलिस की गोली लगने से छह आंदोलनकारी किसानों की मौत हो गई।
इन सभी किसान आंदोलनो से तर्क निकलकर तो यही आता हैं कि समय-समय पर सरकारें सभी वादे तो करती हैं पर क्या सरकार इन किसानों पर पूर्ण रूप से ध्यान देतीं है या सरकार इन करोड़ों किसानो को सिर्फ़ सियासी खेल तो नहीं समझ रही। अगर इन किसानों के माँगो को लेकर मौजूदा सरकार, पूर्ववर्ती सरकार और राज्य सरकारें आपसी सहयोग से ध्यान दें तो किसानों के माँगों का समाधान काफ़ी हद तक निकला जा सकता है और किसानों को एक बेहतर सुविधायें उपलब्ध करा सकते हैं।
हालिया दिनों में छपी ख़बरों के अनुसार आज देश में हर 8 घंटों में एक किसान आत्महत्या कर रहा हैं।
लिहाज़ा, किसानों के माँगो के प्रमुख पहलुओं पर मौजूदा सरकार सभी दलों और राज्य से मिलकर किसानों के समस्याओं का समाधान निकालने की ख़ासा ज़रूरत है जिससें एक कृषि प्रधान देश की साख कहें जाने वाले गुणवता और हज़ारों किसानों की जान बचाया जा सकें ।
(साहित्य मौर्या जामिया मिल्लिया इस्लामिया, दिल्ली के छात्र हैं)
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