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यक्ष इन पुस्तक मेला (व्यंग्य)

दिल्ली का पुस्तक मेला समाप्त हो चुका था। धर्मराज युधिष्ठिर हस्तिनापुर के अलावा इंद्रप्रस्थ के भी सम्राट थे। अचानक यक्ष प्रकट हुए, उन्होंने सोचा कि चलकर देखा जाये कि धर्मराज अभी भी वैसे हैं या बदल गए जैसे कि मेरे सरोवर का जल पीने के समय थे। युधिष्ठिर से मिले, कुशल क्षेम हुई, उन्होंने यक्ष से कहा कि ‘चलो इंद्रप्रस्थ में पुस्तक मेला लगवाना है, वहीं बातें भी हो जाएंगी’ यक्ष उनके साथ हो लिये। यक्ष नाखुश हुए उन्होंने कहा “हे धर्मराज, यदि मेरे प्रश्नों के उत्तर ना दिए तो मारे जाओगे”। धर्मराज ने हामी भर दी। यक्ष ने पूछा “हे राजन,जब दिल्ली में मेला लग चुका था, तब इंद्रप्रस्थ में पुस्तक मेले की क्या ज़रूरत थी?” युधिष्ठिर ने कहा “धर्मो रक्षत रक्षितः” अर्थात जिसने पुस्तक मेले में किसी की किताब दो सौ रुपये की किताब चार रुपये की उसकी कटिंग चाय पीकर खरीदी है, वो बहुत आक्रोशित है, उसे भी अपनी किताब बेचने, ऑटोग्राफ देने और सेल्फी पोस्ट करने का अवसर देना ही सामाजिक न्याय होता है अन्यथा विद्रोह होगा।

गीता का यथार्थ यही है यक्ष”। यक्ष दुखी हो गए ,बोले “हे राजन, आपने मुझे पुस्तक मेले में क्यों नहीं बुलाया, मैं धन्य होते-होते रह गया, अब भी घुमा दो देख लूँ जाती हुई बहार को”। धर्मराज अपने साथ लेकर मेले के स्थान पर पहुँचे। अंदर घुसते ही महिलाओं-पुरुषों का एक दल नजर आया। ये सब एक दूसरे को किताबें दे रहे थे और अपना सामान लेकर सरस्वती की मूर्ति को प्रणाम करके विदा ले रहे थे। यक्ष ने पूछा “हे राजन, ये लोग कौन हैं क्या कर रहे हैं?” धर्मराज ने कहा “हे यक्ष,ये सब हिंदी के लेखक-लेखिकाएं हैं जो विभिन्न शहरों से दिल्ली आए थे पुस्तक मेले में। ये अपनी उपेक्षा से हताश हैं, फटेहाल हैं फिर भी सरस्वती की मूर्ति को प्रणाम करके एक दूसरे को अपनी पुस्तकें दे रहे हैं और अपने घर जा रहे हैं”। यक्ष की आँख नम हो गई उसने हाथ जोड़कर सरस्वती की मूर्ति और उन सभी को प्रणाम किया।

थोड़ा आगे बढ़ने पर एक बहुत खूबसूरत पोस्टर नजर आया जिसमें एक दिव्य सुंदरी की चमचमाती फ़ोटो लगी थी, फ़ोटो के नीचे एक जनाना बैठी विलाप कर रही थी। उस जनाना के सिर में बाल नहीं थे, बगल में विग पड़ी थी। आगे के दो दाँत टूटे हुए थे, नकली दांतों का सेट पड़ा हुआ था। उसके कीमतों वस्त्रों और आभूषणों का किराया मांगने वाले उसे हड़का रहे थे वो मरियल सी जनाना गुमसुम थी। यक्ष ने पूछा”हे राजन, ये तस्वीर किसकी है और वो जनाना कौन है”?

धर्मराज ने ठंडी साँस लेते हुए बताया “हे राजन ऊपर जो दिव्य सुंदरी का पोस्टर लगा है, नीचे वही जनाना बैठी है, ये नई वाली हिंदी है, जो उधार के बिंबों पर चलती है उसका सच उसके पोस्टर के ठीक नीचे है। तब तक हिंदी ने नई वाली हिंदी की तरफ पीठ फेरते हुये कहा

“वो शख्स जिसका कद मेरे कद से बड़ा था

वो शख्स किसी और के पैरों पर खड़ा था।”

नई वाली हिंदी ने हिंदीं से कहा-

मैं क्या करूँ,मेरा दर्द ये है कि

“क्षमा करो हे वत्स और देवी, समय आया है ऐसा

दो अक्षर लिखते ही लेखक कहते हैं निकालो पैसा”

अब आप ही बताएं यक्ष और धर्मराज बिना अश्रु, स्वेद और पर्याप्त तैयारी के बल पर सिर्फ बिक्री के गुरों पर फोकस होगा तब मेरा यही अंजाम होगा, इस गाय से पहले दिन सबको दूध चाहिये मगर घास काटने का दर्द कोई नहीं लेना चाहता, हे यक्ष यही हाल रहा तो मैं आपके सरोवर का जल आकर पी लूँगी। तब इन लेखक लेखिकाओं की तपस्या के बाद ही आप मुझे जीवित करना”।

यक्ष और युधिष्ठिर ने तब तक देखा कि एक स्थान पर जल का छिड़काव हो रहा है, धुआं निकल रहा है और पात्र में जल डाल रहे हैं सब। यक्ष ने हर्षित होते हुए कहा “धर्मराज ये साधुओं का दल देखकर मन हर्षित हो गया। कलियुग में भी यज्ञ हो रहा है, धूम्र देखो, एक ही पात्र में सब जल पी रहे हैं कैसा उत्तम आदान-प्रदान है,सर्वत्र बन्धुत्व का,कौन हैं ये लोग”। युधिष्ठर ने तनिक सकुचाते हुए कहा “ये यक्ष, तथापि सबकी जटा पीछे से समान दिख रही है, फिर भी उनमें कुछ पुरुष हैं और कुछ नारियां हैं। जो धूम्र हैं वो यज्ञ का नहीं अपितु चिलम और सिगरेट की है। पात्र नहीं वो दारू की बोतल है जिसे सब बिना भेद भाव के बारी-बारी से पी रहे हैं और ये सब जंबो द्वीप में मुखर्जीनगर नामक स्थान का खुद को बताते हैं यद्यपि उस स्थान से इनके होने का कोई प्रमाण नहीं क्योंकि वो पढ़ने लिखने वालों की जगह है”।

थोड़ा आगे बढ़ने पर देखा कि एक महिला एक ऊंची कुर्सी पर बैठी थी। उसके पैरों के पास एक छोटी बच्ची रो रही थी। उसकी गोद मे एक काल्पनिक बच्ची थी। वो महिलाअट्टहास करके हँस रही थी। महिला बार अपने पैरों के पास वाली बच्ची को लात से मारती और गोद वाली काल्पनिक बच्ची को दुलारती। यक्ष की जिज्ञासा देखकर युधिष्ठिर ने बताया “ये महिला नानी है,उस बच्ची को। जो अपनी सगी बच्ची को लात मार रही है और गोद की काल्पनिक उस बच्ची का लाड़-दुलार कर रही है जो वास्तव में है ही नहीं,”यक्ष ने कहा” कौन है वो काल्पनिक बच्ची? “एक पिलपिला शख्स बोला”वो काल्पनिक बच्ची लघुकथा है और मैं बदनसीब इसका पति

इस खातून को गर बनाया है तूने ए खुदा

तो तू ही मेरा खुदा हो मुझे मंजूर नहीं”

कोई कुछ बोलता तब तक बचाओ ,बचाओ की आवाज़ आई,सब दौड़ कर वहाँ पहुँचे तो देखा, एक बूढ़ा आदमी एक जवान आदमी का हाथ ऐंठे हुए कह रहा था “रॉयल्टी दो, रॉयल्टी दो”। लोगों ने उन्हें अलग किया। बूढ़ा आदमी दमा का मरीज था। मगर च्यवनप्राश खा रहा था। यक्ष ने पूछा “मामला क्या है”

युधिष्ठिर ने कहा “इस लेखक ने इन बुजुर्ग पर किताब लिखी है,  अब ये लेखक से रॉयल्टी मांग रहे हैं और लेखक कह रहा है, बड़े मियां किताब तो बिकने दो तब दूँगा, लेकिन बुजुर्गवार को चैन नहीं”। यक्ष ने कहा “लेखक कौन है, किताब कौन सी है और बुजर्ग कौन हैं”

युधिष्ठिर ने कहा “लेखक रूपेश दुबे हैं, किताब का नाम है बोल बच्चन”।

यक्ष ने हँसते हुए कहा”और ये बुजर्ग कौन हैं जिन पर किताब लिखी गयी है और रॉयल्टी माँग रहे हैं”।

युधिष्ठिर हँस पड़े और धीरे से बोले -अमिताभ बच्चन

-दिलीप कुमार

(नोट- ये लेखक के निजी विचार हैं, इससे फोरम4 का सहमत होना जरूरी नहीं है)

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Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

दिलीप कुमार
वह एक लेखक हैं।

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