एक तरफ पूरे देश का बहुजन समाज एक खबर को लेकर आक्रोश मार्च निकाल रहा है, सड़क पर उतरकर रैलियां निकाल रहा है। विश्वविद्यालयों में शिक्षकों व छात्रों की ओर से कैंडल मार्च निकाला जा रहा है। 31 जनवरी को उसी को लेकर संसद जाकर सांसदों का घेराव करने की तैयारी भी की जा रही है। उसी खबर को देश के लिए राहत का बड़ा शीर्षक देते हुए एक अखबार अपने पत्रकारिता का घटिया स्तर को दिखाता नजर आ रहा है। हम आपको इस अखबार की हरकतों के बारे में बताएंगे। लेकिन, उससे पहले यह जान लेते हैं मामला क्या है…
मामला क्या है?
उच्च शिक्षा में नियुक्ति में आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला 13 प्वाइंट रोस्टर यानी विभागवार आरक्षण के पक्ष में आया। इससे पहले 200 प्वाइंट रोस्टर पर नियुक्तियां की जाती थीं। विभागवार आरक्षण में कुल सीटों की स्थिति अगर देखी जाए तो आरक्षण की सीटें नगण्य नजर आएंगी क्योंकि विभागवार आरक्षण की स्थिति में एससी, एसटी और ओबीसी की सीटों पर भर्तियां तभी हो पाएंगी जब विभाग में 13 सीटें (पर्याप्त सीटें खाली हों) हों जो कि नामुमकिन है। ऐसी स्थिति में यह समझ लिया जाना चाहिए कि इस फैसले के बाद अगर सरकार अध्यादेश इस पर नहीं लाती है तो इसका मतलब उच्च शिक्षा में आरक्षण खत्म हो गया है।
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अखबार ने राहत क्यों बताया
हिंदुस्तान (दैनिक हिंदी) अखबार ने इस मुद्दे पर अपने समाचार में विभागवार आरक्षण प्रणाली लागू करने के सुप्नीम कोर्ट के फैसले को राहत बता रहा है। इस पर सोशल मीडिया में भी अखबार की पक्षपात को लेकर काफी सवाल उठाए गए। दिलचस्प बात यह है कि 23 जनवरी के अखबार में छपी इस खबर को राहत बताया गया है जबकि खबर में एक पैराग्राफ में इसने यह भी लिखा है कि “विभागवार आरक्षण के फैसले से एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग को नुकसान होगा।” देखिए आप खुद खबर को पढ़िए
खैर जो भी हो पत्रकारों को यह ध्यान देना जरूरी है कम से कम संवेदनशील मसलों पर कुछ लिखने के पहले जरूरी है चीजों को अच्छे से पढ़ लें। इस तरह के खबरों में पक्षपात दिखाने से सवाल ही खड़ा होगा जिस तरीके से इन्होंने यह सवाल उठाया है।
चंद्रभूषण सिंह यादव ने अपने फेसबुक पोस्ट में 23 जनवरी को लिखा है कि अखबार कितने पक्षपाती हैं कि विभागवार आरक्षण प्रणाली लागू करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को राहत बता रहे हैं। नीचे उनके फेसबुक पोस्ट का लिंक भी दिया गया है।
-प्रभात
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