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विश्वविद्यालयों में विभागवार रोस्टर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बवाल, आरक्षण खत्म करने की साजिश पर शिक्षक सड़क पर

सुप्रीम कोर्ट ने 200 प्वाइंट रोस्टर पर एमएचआरडी और यूजीसी की ओऱ से दायर एसएलपी को 22 जनवरी को खारिज कर दिया। इससे यह बात स्पष्ट हो गई है कि 5 मार्च 2018 का लेटर लागू हो गया है और 13 प्वाइंट रोस्टर लागू हो गया है। बस एक नोटिस आने की देर है कि अब 19 जुलाई 2018 का वह लेटर ‘नल-एंड-वाइड’ हो रहा है। अब नियुक्तियाँ 13 प्वाइंट रोस्टर पर शुरू की जाएं।

कहा जाता है अगर देश में विकास की बात करनी हो तो उसके लिए शिक्षा पर जोर देना जरूरी है। शिक्षा के लिए विश्वविद्यालयों में शिक्षकों पर ध्यान देना जरूरी है। लेकिन आजकल धारा ही कुछ बदली हुई है। गुरु की स्थिति कुछ ऐसी है कि छात्र का क्या ही कहना शिक्षक ही सड़कों पर आने को मजबूर हो गए हैं। वर्तमान मोदी सरकार के समय में तो आरक्षण को लेकर जिस तरह स्थिति बिगड़ गई है। ऐसा कहा जा रहा है कि अब सरकार को विदाई लेने का वक्त आ गया है। बात ऐसी है कि दिल्ली सहित अनेकों विश्वविद्यालय में शिक्षक सड़क पर इसलिए आ रहे हैं क्योंकि उन्हें विश्वविद्यालय में आरक्षण कोटे में अब जगह मिलने की उम्मीद है ही नहीं। ऐसे में एडहॉक शिक्षक जो स्थायी होने का सपना अब तक देख रहे थे वह उनका सपना ही रह जाएगा।

दिल्ली विश्वविद्यालय में 23 जनवरी को रोस्टर के मुद्दे पर एक आपातकालीन बैठक बुलाई गई। आगे के आंदोलन की रणनीति बनाने के लिए यह बैठक बुलाई गई थी, लेकिन शामिल लोगों के आक्रोश ने बैठक को एक आक्रोशित प्रदर्शन में तब्दील कर दिया। आनन-फानन में नरेंद्र मोदी और प्रकाश जावड़ेकर का पुतला बनाया और बहुजन नारों के साथ पुतला दहन किया। यह पुतला दहन इसलिए था कि आरक्षण विरोधी रोस्टर अब नहीं चलेगा और सरकार इसके लिए अध्यादेश ले आए।

अब आए दिन शिक्षक होंगे सड़कों पर
रोस्टर के मुद्दे पर दिल्ली विश्वविद्यालय 24 जनवरी को आक्रोश ज़ाहिर करने जा रहा है।

विभागवार रोस्टर वापस लेने के लिए और 200 प्वाइंट रोस्टर पर तत्काल अध्यादेश लाने को लेकर सायं 4 बजे गेट नं 4 नॉर्थ कैम्पस डीयू में शिक्षक अपना प्रदर्शन करेंगे। लखनऊ विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय और काशी हिंदू विश्वविद्यालय में भी 13 प्वाइंट रोस्टर के खिलाफ 24 जनवरी से शिक्षक अपना प्रदर्शन जारी करने का ऐलान कर चुके हैं।

विभागवार रोस्टर (13 प्वाइंट रोस्टर) है क्या?

दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक लक्ष्मण यादव ने काफी सरल ढंग से इसे समझाया है। पढ़िए आखिर क्या है यह विभागवार आरक्षण। इस पूरे लेख में उन्होंने सिलसिलेवार बताया है कि आखिर सरकार ने कैसे विश्वविद्यालयों में आरक्षण खत्म करने का मन बना लिया है।


“उच्च शिक्षा में आरक्षण लागू होने के बाद स्वीकृत पदों के क्रम-निर्धारण को ‘रोस्टर’ कहा गया. 21 जुलाई 1997 को ST-SC के लिए और 04 मार्च 2007 को OBC आरक्षण उच्च शिक्षा में लागू हुआ।

इसके निर्धारण के लिए DoPT ने रोस्टर बनाया. माना कि कुल पदों की संख्या 100 है. जिसमें पदों का आनुपातिक विभाजन इस प्रकार होगा-

  • ST का आरक्षण 7.5% है। 100/7.5=13.33 यानी हर 14 वाँ पद ST को आरक्षित होगा।
  • SC का आरक्षण 15% है। 100/15=6.66 यानी हर 7वाँ पद SC को आरक्षित होगा।
  • OBC का आरक्षण 27% है। 100/27=3.70 यानी हर चौथा पद OBC को आरक्षित होगा।

चूँकि ST के लिए निर्धारित आरक्षण 7.5% है, जिसे पूर्ण पद संख्या में बनाने के लिए 100 के स्थान पर 200 पदों के लिए रोस्टर निर्धारण किया गया। विश्वविद्यालय अथवा कॉलेज को एक इकाई मानकर पदों के सृजित होने की तिथि के बढ़ते क्रम से 200 पदों में रोस्टर को निर्धारित किया जाता है। इसमें सभी वर्ग को निर्धारित अनुपात में हिस्सेदारी मिलती रही, लेकिन यूजीसी ने 5 मार्च 2018 को जारी सर्कुलर में विभागवार रोस्टर का निर्देश दिया, जिसे आम तौर पर 13 प्वाइंट रोस्टर मान लिया गया है। साज़िशन 200 प्वाइंट रोस्टर को ही 13 पर रोककर 13 प्वाइंट रोस्टर बना दिया गया। इस रोस्टर में आरक्षित क्रम-विभाजन के बाद रोस्टर क्रम और पदों के आरक्षण की रोस्टर सूची इस होगी-

1. UR
2. UR
3. UR
4. OBC
5. UR
6. UR
7. Schedule Cast
8. OBC
9. UR
10. UR
11. UR
12. OBC
13. UR
———————————–
14. Schedule Tribes
15. Schedule Cast
16. OBC

13 प्वाइंट रोस्टर के कुल पद: 13
UR: 09, OBC: 03, SC: 01, ST: 00
अनारक्षित:आरक्षित अनुपात – 9:4

अब 200 प्वाइंट रोस्टर को 13 पर ही रोक कर विभागवार रोस्टर क्यों लागू किया गया है, उसे आप स्वयं समझ लें। पहला तो ये कि ST को कभी मौक़ा ही न मिले और दूसरा व सबसे शातिर साज़िश कि अगले 14-15-16 तीनों पद आरक्षितों को मिलने थे। इसलिए विभागवार रोस्टर को 13 पर ही रोककर लागू कर दिया। जबकि कहीं नहीं लिखा है कि विभागवार रोस्टर का मतलब 13 प्वाइंट रोस्टर होगा। इसमें कभी आरक्षण मिल ही नहीं सकेगा। वहीं दूसरी तरफ नए बने विभागों में तीन से कम पद विज्ञापित करो और सब UR होगा, जिससे 15% सवर्णों को 95% पदों पर भरते जाओ। 1997 के पहले और 2018 के बाद भी सब कुछ उच्च वर्गीय सवर्णों के ही कब्ज़े में रहेगी उच्च शिक्षा। माँ सरस्वती का पावन प्रांगण, विद्या का मंदिर दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों, पसमांदा के प्रोफ़ेसर बन जाने से दूषित न हो सकेगा।

कल्पना कीजिये कि इस मुल्क को चलाने और नीतियाँ बनाने लोग किस दर्जे के हक़मार, शातिर जातिवादी और धूर्त हैं, जो आरक्षण खत्म करने की घोषणा बिना किए कि उच्च शिक्षा में आरक्षण नहीं होगा, व्यवहार में खत्म कर दिया। अब इस मुल्क को तय करना है कि उसे क्या ऐसे ही चलना है या संविधान से चलना है।

पहला चार्ट सरकारी 13 प्वाइंट रोस्टर है, और दूसरा मैंने सुझाया है।

कैसे ताज़ा विभागवार (13 प्वाइंट) रोस्टर आरक्षण विरोधी और असंवैधानिक है-

  1. विभागवार रोस्टर का पहला खेल समझते हैं। इस विभाजन को अब दो स्तरों से समझें। मसलन किसी नए कॉलेज या विभाग में यदि कुल 3 पद ही होंगे, तो तीनों पद रोस्टर में UR होंगे। यही है पहला और सबसे ख़तरनाक खेल, जिसमें विभागवार रोस्टर बनाने से हमेशा के लिए ये आसानी हो जाएगी कि हर विभाग में 3 या 3 से कम पदों को विज्ञापित किया जाएगा और आरक्षित पदों का क्रम कभी आ ही नहीं सकेगा। अब जिन विश्वविद्यालयों में नए विज्ञापन आ रहे हैं, वे सब इसी विभागवार रोस्टर से आ रहे हैं। जहाँ आरक्षित पद कभी आ ही नहीं सकेंगे. यदि कॉलेज/विश्वविद्यालय को एक इकाई माना जाता, तो यह खेल कभी नहीं संभव होता। क्योंकि तब यह 200 तक चलता और कुल मिलाकर आरक्षण पूरा होताय़
  2. यदि किसी विभाग में कुल 15 पद स्वीकृत होंगे, तब जाकर वितरण कुछ इस प्रकार होगा- 1 ST, 2 SC, 3 OBC, 9 UR. अब यहाँ भी आरक्षण का कुल प्रतिशत हुआ 15 में 6 पद आरक्षित यानी 40% आरक्षण। इस लिहाज़ से कभी संवैधानिक आरक्षण तो लागू ही नहीं हो सकेगा। यदि कॉलेज/विश्वविद्यालय को एक इकाई माना जाता तो आरक्षण कमोबेश 50% तक मिल तो जाता।
  3. विभागवार रोस्टर का तीसरा और सबसे खतरनाक खेल देखिये. माना कि एक पुराने हिंदी विभाग में कुल 11 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 8 पदों पर आरक्षण लागू होने का पहले ही नियुक्तियाँ हो चुकी हैं, तो ये सभी सवर्ण यहाँ पढ़ा रहे हैं। अब आरक्षण लागू किया गया, तो इन आठ में से चौथा और आठवाँ पद OBC को और सातवाँ पद SC को जाएगा, जिसपर पहले से कोई सवर्ण पढ़ा रहे हैं। अब नियमतः ये तीनों पद ‘शार्टफ़ॉल’ में जाएगा और आगामी विज्ञप्ति में नव-सृजित नवें, दसवें ग्यारहवें तीनों पद इस ‘शार्टफ़ॉल’ को पूरा करेंगे। लेकिन देश के हर विश्वविद्यालय में मनुवादियों ने शार्टफ़ॉल को लागू ही नहीं किया, और नियम बना दिया कि चौथे, सातवें और आठवें पदों पर काम करने वाले सवर्ण जब सेवानिवृत्त होंगे, तब जाकर इनपर आरक्षित वर्ग के कोटे की नियुक्ति होगी। यानी ‘शार्टफ़ॉल’ लागू ही नहीं किया गया, जिससे आरक्षण कभी पूरा होगा ही नहीं और सीधे हज़ारों आरक्षित पदों पर सवर्णों का ही कब्ज़ा होगा।
  4. अंतिम साज़िश ये कि यदि किसी विश्वविद्यालय/कॉलेज में अगर 1997 के बाद से SC-ST की और 2007 के बाद से OBC की कोई नियुक्ति नहीं हुई है और पहली बार 2018 में अगर विज्ञापन आयेगा, तो इस बीच के पदों में जो ‘बैकलाग’ होगा, उन्हें पहले भरा जाएगा। लेकिन जब रोस्टर ही विभागवार बनेगा, तो न तो ‘शार्टफ़ॉल’ लागू होगा और न ‘बैकलाग’. यानी आज की तिथि में ही आरक्षण मिलेगा, जो कभी 49.5% भी पूरा नहीं हो पाएगा।
  5. ध्यान रहे कि उच्च शिक्षा में UR कैटेगरी को हमेशा सामान्य माना गया, यानी साक्षात्कार के ज़रिये होने वाली नियुक्तियों में कभी गैर-सवर्ण की नियुक्ति अपवाद ही रही। आसान भाषा में समझें तो 15% सवर्णों के लिए 50.5% आरक्षण। 1931 की जाति-जनगणना और 1980 के मंडल कमीशन के सैम्पल सर्वे से OBC की जनसंख्या 52% है, लेकिन इन्हें आरक्षण 27% ही मिला है। ऐसे में पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्त्व तो कभी पूरा हो ही नहीं सकेगा। ऐसे ही PwD, अल्पसंख्यक और महिलाओं की स्थिति तो और भी भयावह होगी।

घटनाक्रम पर एक नजर

1950 में SC-ST को मिला आरक्षण उच्च शिक्षा में औने-पौने तरीके से लागू हो पाया 1997 में।

1993 में OBC को मिला आरक्षण उच्च शिक्षा में, औने-पौने तरीके से लागू हो पाया 2007 में।

आरक्षण लागू न हो सके, इसके लिए दर्जनों कोर्ट केस। फिर भी लागू करना पड़ा तो रोस्टर गलत।

किसी तरह गलत तरीके से 200 प्वाइंट रोस्टर लागू हो सका, लेकिन शॉर्टफॉल बैकलाग खत्म।

5 मार्च 2018 को 200 प्वाइंट रोस्टर हटाकर विभागवार यानी 13 प्वाइंट रोस्टर कोर्ट के ज़रिए लागू हुआ।

सड़क से संसद तक भारी विरोध के चलते 19 जुलाई को नियुक्तियों पर रोक, सरकार द्वारा दो SLP दायर।

सरकार और यूजीसी की SLP पर सुनवाई टलती रही। मीडिया व संसद में मंत्री ने अध्यादेश की बात की।

22 जनवरी 2019 को दोनों SLP ख़ारिज। संसद के आख़िरी सत्र तक कोई अध्यादेश नहीं।

10% सवर्ण आरक्षण चंद घंटों में पास होकर चंद दिनों में ही लागू हो गया।

 

लक्ष्मण यादव डीयू के जाकिर हुसैन कॉलेज में एडहॉक शिक्षक हैं।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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लक्ष्मण यादव
लक्ष्मण यादव डीयू के जाकिर हुसैन कॉलेज में एडहॉक शिक्षक हैं।

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