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डीयूः गुलाम बनाने की सरकार की साजिश को नाकामयाब बनाने के लिए फोरम ने रोस्टर के मुद्दे पर बुलाई आपातकालीन बैठक

तस्वीरः गूगल साभार

सुप्रीम कोर्ट द्वारा 200 पॉइंट पोस्ट बेस रोस्टर पर सरकार की एसएलपी को खारिज किए जाने पर डीयू के दक्षिणी परिसर में ऑफ़ एकेडेमिक फ़ॉर सोशल जस्टिस की आपातकालीन बैठक बुधवार को बुलाई गई। बैठक की अध्यक्षता फोरम के महासचिव प्रो. केपी सिंह ने की। बैठक से पूर्व सभी शिक्षकों ने केंद्र सरकार की आरक्षण नीति पर कड़ी आलोचना करते हुए आरक्षण विरोधी सरकार बताया गया और कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय में आगामी 8 फरवरी को शिक्षकों के चुनावों में इसका मुंहतोड़ जवाब देंगे।

बैठक को संबोधित करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय की विद्वत परिषद के सदस्य प्रो. हंसराज ‘सुमन’ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार नहीं चाहती कि एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के उम्मीदवार उच्च शिक्षा में आयें। उनका कहना था कि जब से केंद्र में भाजपा की सरकार आई है तभी से आरक्षण के खिलाफ तरह-तरह के मामले लाकर उसे समाप्त करना चाहते हैं। इनका जातिवादी चेहरा कल जब सामने आया देशभर में लागू 200 प्वाइंट पोस्ट बेस रोस्टर के लिए सरकार द्वारा दायर एसएलपी को सुप्रीम कोर्ट में खारिज कर दिया गया।

प्रो. सुमन का कहना है कि ऐसे में स्पष्ट हो गया है कि यूजीसी द्वारा भेजा गया 5 मार्च 2018 का वह सर्कुलर ही केंद्रीय विश्वविद्यालयों, राज्य सरकार के विश्वविद्यालयों, मानद और सरकार द्वारा वित्त पोषित शिक्षण संस्थानों में मान्य होगा। उनका कहना है कि जिन विश्वविद्यालयों ने 200 पॉइंट पोस्ट बेस रोस्टर के तहत पदों को निकाला गया था, कोर्ट के निर्णय के बाद यूजीसी सर्कुलर ही मान्य होगा, जो विभागवार और विषयवार 13 प्वाइंट रोस्टर लागू करने का निर्देश देता है। इससे कभी भी आरक्षण व बराबर प्रतिनिधित्व नहीं मिलेगा।

प्रो. सुमन ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि एसएलपी के बहाने और सरकार द्वारा जल्द अध्यादेश लाने की बात कहकर आरक्षित वर्गों के शिक्षकों के साथ धोखा दे चुकी है और कोर्ट ने आरक्षण के खिलाफ़ फैसला सुना दिया है। उनका कहना है कि लंबे संघर्ष के बाद उच्च शिक्षा में हासिल संवैधानिक आरक्षण कमोबेश समाप्त ही कर दिया गया है। अब एक ही रास्ता बचा है कि हम सबको सड़क पर उतरकर सरकार को अपनी एकता का परिचय दें।

डॉ. विनय कुमार ने कहा कि एससी, एसटी और ओबीसी शिक्षकों की उपस्थिति उच्च शिक्षा में दर्ज ही हो रही थी, वैसे ही पिछले एक दशक से विश्वविद्यालयों में स्थायी नियुक्ति नहीं हुए हैं और अब इस तरह का आरक्षण विरोधी निर्णय आने के बाद जो बैकलॉग था सब खत्म हो गया। सरकार ने एक साजिश के तहत कोर्ट के माध्यम से कार्य किया है जिसे आरक्षित वर्ग कभी माफ नहीं करेगा।

बैठक की अध्यक्षता कर रहे प्रो. केपी सिंह ने शिक्षकों को संबोधित करते हुए कहा कि जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने 200 पॉइंट पोस्ट बेस रोस्टर पर निर्णय दिया है ,यह निर्णय हमारी ताकत को देखना चाहता है। उनका कहना था कि हमें आरम्भ से ही सरकार की नीति और नियत पर भरोसा नहीं था। जिस दिन सरकार ने एसएलपी डाली थी हमें पता था कि सरकार और कोर्ट  कभी भी हमारे साथ न्याय नहीं करेंगे क्योंकि जो सरकार केंद्र में आज है वह एससी, एसटी और ओबीसी आरक्षण के घोर विरोधी रही हैं। उन्होंने आह्वान किया है कि हमें पूरी ताकत के साथ सड़कों पर आंदोलन के लिए उतरना होगा।

प्रो. सिंह ने कहा कि सरकार पर दबाव बने इसके लिए ज्यादा से ज्यादा शिक्षकों को इस मुहिम में जोड़ना है और इस मुद्दे पर सरकार अध्यादेश लाने को मजबूर हो उसे सबक सिखाना है वरना उच्च शिक्षा के दरवाजे अब मुल्क की बहुसंख्यक बहुजन आबादी के लिए बंद हो जाएंगे, हमें फिर से गुलाम बनाने की सरकार की इस साजिश को नाकामयाब बनाना है।

प्रो. सिंह ने बताया है हमें जल्द ही आंदोलन की रूपरेखा व रणनीति बनाने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय, जेएनयू, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, इग्नू, आईपी, डॉ भीमराव आंबेडकर यूनिवर्सिटी के अलावा अन्य विश्वविद्यालयों से इस मुद्दे पर मदद लेनी होगी। हम इस विषय पर कुछ ठोस रणनीति बनाकर आंदोलन जल्द शुरू करेंगे वरना आने वाली पीढ़ियाँ हमें माफ़ नहीं करेंगी। बैठक में डॉ. अनिल कुमार, डॉ. मनोज कुमार, डॉ. प्रमोद कुमार, डॉ. सौम्या, डॉ. सुरेश कुमार आदि ने भी अपने विचार रखे।

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Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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