-राधिका रमण रानी
क्या यही है
ईश्वर की इच्छा
कोई मेरे तन में
काँटे चुभाए
क्या यही है
ईश्वर की इच्छा
कोई मेरे तन-मन को छलनी कर
आत्मा को मार दे
क्या यही है
ईश्वर की इच्छा
क्या यही है
तुम्हारी इच्छा
तुम गूँगे बहरे बने रहो
कोई मेरा बचपन छीनकर
अपनी भूख मिटाए
क्या यही है
तम्हारी इच्छा
मैं नहीं कहती
क्रांति करो
मैं नहीं कहती
विरोध करो
कम-से-कम
चुप्पी तो तोड़ो
ये मत भूलो
जिस दर्पण को तुम देखते हो
उसमें तुम ही हो,
एक चोट
उस दर्पण को भी तोड़ देगी
क्या यही है
तुम्हारी इच्छा
(कविता की रचयिता मूलतः बिहार की रहनेवाली हैं और बिहार सरकार की सेवा में कार्यरत हैं)
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