–प्रभात
प्लास्टिक पर कहीं प्रतिबंध तो कहीं वैकल्पिक साधनों की तलाश
पूरे विश्व में पर्यावरण को लेकर किसी न किसी वजह से बहस होती रहती है, लेकिन इसमें भी पर्यावरण प्रदूषण का मुद्दा सबसे अहम है क्योंकि आए दिन धुंध का कहर तो कभी गंदगी का असर होना आम बात है। इसके लिए कहीं न कहीं प्लास्टिक ही जिम्मेदार है। हर देश प्लास्टिक को बैन करने के लिए बात कर रहा है, लेकिन किसी के पास इसका कोई खास विकल्प नहीं है। क्योंकि खाने से लेकर पीने तक की चीज में प्लास्टिक शामिल है। यहां तक कि दूध जिस पैकेट में आता है वह भी प्लास्टिक से बना होता है। यहां तक कि ज्यादातर पेयपदार्थों को पीने के लिए जिस स्ट्रॉ का प्रयोग किया जाता है, वह प्लास्टिक से बनी होती है। विशेषज्ञों के अनुसार प्लास्टिक के प्लेट या कटोरी में गरम खाना खाने के साथ ही प्लास्टिक के स्ट्रॉ से पीना भी स्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक होता है। इस कारण ही कई रेस्टोरेंट भी प्लास्टिक के स्ट्रॉ की जगह रिसाइकलेबल स्ट्रॉ का इस्तेमाल करने लगे हैं।
अब प्लास्टिक की जगह रिसाइकलेबल स्ट्रॉ इस्तेमाल करेगी स्टारबक्स
विश्व की सबसे बड़ी कॉफी कंपनी स्टारबक्स ने भी पर्यावरण को साफ रखने के लिए कहा है कि वह 2020 तक वैश्विक स्तर पर अपने 28 हजार स्टोर्स से प्लास्टिक के स्ट्रॉ को खत्म कर देगा। स्टारबक्स के ग्राहकों ने भी इससे पहले प्लास्टिक स्ट्रॉ के इस्तेमाल का विरोध किया था, इस वजह से अब कंपनी रिसाइकलेबल स्ट्रॉ का इस्तेमाल करेगी।
50 देशों में 16858 से अधिक स्टोर के साथ स्टारबक्स दुनिया की सबसे बड़ी कॉफीहाउस कंपनी है, जिसमें अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका में 11000 से अधिक, कनाडा में 1000 से अधिक और यूके में 700 से अधिक स्टोर हैं।
स्टारबक्स के उपाध्यक्ष कॉलीन चैपलैन ने कहा कि हमारे पार्टनर्स और ग्राहकों द्वारा अनुरोध करने की वजह से कंपनी ने यह कदम उठाया। सिएटल स्थित इस कंपनी ने कहा कि प्लास्टिक के स्ट्रॉ के बदले वह अन्य सामग्रियों से बने स्ट्रॉ का इस्तेमाल करेगा।
मैकडॉनल्ड्स ने भी किया था ऐसा कुछ
इससे पहले मैकडॉनल्ड्स ने कहा था कि वह ब्रिटेन व आयरलैंड में अगले साल से कागज से बने स्ट्रॉ का इस्तेमाल करेगा। पर्यावरण विशेषज्ञ यह मानते हैं कि प्लास्टिक के पदार्थ जब समुद्र में फेंके जाते हैं तो समुद्री जीवों को बहुत हानि पहुंचती है। इसलिए विशेषज्ञ प्लास्टिक के स्ट्रॉ को खत्म करने पर जोर दे रहे हैं।
4फीसद हिस्सा प्लास्टिक स्ट्रॉ का
अगर देखा जाए तो प्लास्टिक कचरे का लगभग 4 फीसदी हिस्सा प्लास्टिक स्ट्रॉ का होता है। 9 मिलियन टन प्लास्टिक कचरे में लगभग 2,000 टन कचरा सिर्फ प्लास्टिक स्ट्रॉ का होता है। सिएटल में खाने-पीने की दुकानों पर एक ही बार उपयोग होने वाले प्लास्टिक स्ट्रॉ पर प्रतिबंध लगाए गए थे।
पेप्सी, कोला की खाली बोतल से पाएं पैसे
महाराष्ट्र में कोको-कोला, पेप्सी और बिसलरी जैसी टॉप ब्रांडेड कंपनियों ने यहां बिकने वाली सभी प्लास्टिक की बोतलों पर बायबैक मूल्य प्रिंट करना स्टार्ट कर दिया है। इस्तेमाल करने के बाद पेप्सी, कोका-कोला और बिस्लेरी जैसी कंपनियों को अब आप खाली बोतल वापस बेच सकेंगे। ज्यादातर कंपनियों ने एक किलो बोतल की कीमत 15 रुपए तय की है। जबकि इन बोतलों को पैक करने के लिए प्रयोग किए जाने वाले श्रिंक रैप्स की कीमत 5 रुपए प्रति किलो रखी गई है।
गौरतलब हो कि हाल में महाराष्ट्र में प्लास्टिक पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगने का फैसला किया है। इसके बाद कंपनियों की ओर से ऐसे कदम उठाए जा रहे है। सॉफ्ट ड्रिंक और पानी से जुड़ी कंपनियों ने महाराष्ट्र में अपनी बोतलों पर बायबैक वैल्यू लिखनी शुरू भी कर दी है।
भारत में प्लास्टिक पर प्रतिबंध
23 जून से मुंबई में प्लास्टिक पर प्रतिबंध लग गया है। इसके पहले शहर को साफ सुथरा बनाए रखने के लिए एनजीटी ने एक जनवरी 2017 को दिल्ली/एनसीआर में डिस्पोजेबल प्लास्टिक के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया था। पूरे शहर में विशेष कर होटलों, रेस्टोरेंट्स और सार्वजनिक एवं निजी कार्यक्रमों में डिस्पोजेबल प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक लगायी थी।
देश की राजधानी दिल्ली को प्लास्टिक फ्री बनाने की दिशा में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल दिल्ली में 50 माइक्रोन से कम मोटाई वाले प्लास्टिक की थैलियों के इस्तेमाल पर अंतरिम प्रतिबंध लगा चुका है।
नए प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट नियम 2016 के तहत, प्लास्टिक थैलियों की मोटाई 40 माइक्रोन्स से बढ़ाकर 50 माइक्रोन्स कर दी गई।
दुनियाभर में लड़ी जा रही है प्लास्टिक के खिलाफ लड़ाई
पूरे विश्व में प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए मुहिम चलाई जा चुकी हैं। कई देशों ने अपने-अपने तरीके से प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध लगाया जैसे कि आयरलैंड ने प्लास्टिक बैग के इस्तेमाल पर 90 फीसदी तक टैक्स लगा दिया था। वहीं, इससे मिलने वाले टैक्स से देश भर में प्लास्टिक बैग को रिसाइकल करने का अभियान चलाया गया। फ्रांस ने भी 2005 से प्लास्टिक बैग के प्रयोग पर बैन लगाना शुरू किया और धीरे-धीरे 2010 तक ये पूरी तरह से लागू हो गया। वहीं ऑस्ट्रेलिया ने भी अपने नागरिकों से स्वैछिक तौर पर प्लास्टिक बैग का इस्तेमाल न करने की अपील की। ऑस्ट्रेलिया में आज प्लास्टिक बैग्स का इस्तेमाल 90फीसदी तक बंद हो गया है।
देश की राजधानी दिल्ली में हर रोज 690 टन, चेन्नई में 429 टन, कोलकाता में 426 टन और मुंबई में 408 टन पॉलीथिन फेंकी जाती है, जबकि पूरे देश में हर साल 56 लाख टन प्लास्टिक कचरा निकलता है। 9025 टन प्लास्टिक रीसाइकिल की जाती है, जबकि 6137 टन प्लास्टिक हर साल फेंकी जाती है।
क्या है समस्या
शहरों में जरा सी बारिश होने पर ही नाली व नाले उफान मारने लगते हैं। बड़े-बड़े गड्ढे मौत का कुआं बन जाते हैं। जलभराव के कारण कई पानी से होने वाली बीमारियां जन्म लेती हैं। बांग्लादेश में भी 2002 में जलभराव के कारण पॉलीथिन के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई थी। लोग कहीं पर भी पॉलीथीन फेंक देते हैं,जिससे ड्रेनेज सिस्टम ब्लॉक हो जाता है और जलभराव होने लगता है। जलभराव से डेंगू-चिकनगुनिया फैलाने वाले मच्छर पैदा हो सकते हैं। इसके अलावा सीवर व्यवस्था के बिगड़ने, पानी के जहरीला होने और जमीन के बंजर होने के पीछे भी पॉलीथिन जिम्मेदार है।
देश में 3-4 लाख टन पॉलीथिन की खपत
भारत में लगभग दस से पंद्रह हजार इकाइयाँ पॉलीथिन का निर्माण कर रही हैं। सन 1990 के आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में इसकी खपत 20 हजार टन थी जो अब बढ़कर तीन से चार लाख टन तक पहुँचने की सूचना है जोकि भविष्य के लिये खतरे का सूचक है।
क्या हो उपाय
पॉलीथिन पर प्रतिबंध लगने में जब तक समाज ही नहीं मदद करेगा तो इस तरह के नियमों का कोई औचित्य नहीं रह जाता। हमें खुद चाहिए हम अपने परिवार में अपने से छोटे बच्चों व बड़ों को इससे होने वाले समस्या को बताएं। सरकार की तरफ से पॉलीथिन पर प्रतिबंध लगाना सराहनीय कदम माना जा सकता है, लेकिन जरूरी अब यह है कि हमें हर प्रदूषणजनित विपदाओं और पर्यावरणीय आपदाओं से लड़ने के लिए औऱ भविष्य को इस मार से बचाने के लिए संरक्षण पर भी ध्यान देना होगा। हमें पॉलीथिन का प्रयोग करने के और विकल्पों की ओर ध्य़ान देना होगा। स्ट्रा का वैकल्पिक साधन बांस का पाइप या गेंहू या धान के तना हो सकता है। दुकानों से पॉलीथिन न लाने के अतिरिक्त इस बात पर भी गौर करना होगा कि हम उन विकल्पों का प्रयोग न करें जिसमें पौधों को बलि दी जाती हो। हमें पेपर लेस होना होगा। ज्यादा से ज्यादा कपड़ों के थैलियों का प्रयोग करना होगा। प्रदूषित पदार्थों का नियंत्रण, पर्यावरण संरक्षण और वृक्षारोपण पर ध्यान देकर हम बहुत हद तक प्रदूषण को कम कर सकेंगे।
Be the first to comment on "प्लास्टिक के खिलाफ जंगः पेप्सी की खाली बोतल बेचकर पाएं पैसे, स्ट्रा भी होगा बाजार से गायब"