SUBSCRIBE
FOLLOW US
  • YouTube
Loading

मेले में पान बीड़ी की दुकान लगाए, कवि “लिखे जो खत तुझे”, मुझको याद किया जाएगा

-सुकृति गुप्ता  (महान कवि की यादों पर विशेष)

“स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से

लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से

और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे।

कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।”

कारवां गुज़र गया, पर अपने पीछे बहुत कुछ छोड़ गया

1991 में पद्मश्री से और 2007 में पद्म भूषण से सम्मानित कवि और गीतकार गोपालदास नीरज जी नहीं रहे। शुक्रवार 19 जुलाई को उनका 93 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. उन्होंने दिल्‍ली के एम्‍स अस्पताल में आखिरी सांस ली. शाम सात बजकर 35 मिनट पर उनका निधन हुआ।वह दुनिया छोड़कर चले गए, पर साहित्य और फिल्मी दुनिया के लिए अपनी विरासत छोड़ गए। उनके कई काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें ‘दर्द दिया’, ‘प्राण गीत’, ‘आसावरी’, ‘बादर बरस गयो’, ‘दो गीत’, ‘नदी किनारे’, ‘नीरज की गीतिकाएं’, ‘संघर्ष’, ‘विभावरी’, ‘नीरज की पाती’, एवं ‘लहर पुकारे’ प्रमुख हैं।

उन्होंने न केवल कविताएँ लिखीं बल्कि कई मशहूर गीत भी लिखे । “लिखे जो खत तुझे”, “ए भाई ज़रा देखके चलो”, “दिल का शायर”, “फूलों के रंग से”, “ग़म आज नगमा है”, “शोखियों में घोला जाये, फूलों का शबाब..” जैसे तमाम गीत उन्हीं ने लिखे।

हिन्दी के हर कवि की तरह संघर्षों में बीती ज़िंदगी

गोपालदास जी का जन्म 4 जनवरी 1925 को उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के पुरावली गांव में हुआ था। हिंदी के हर कवि की तरह उनका जीवन भी अनेक कठिनाईयों से गुज़रा। वह उस वक्त महज 6 वर्ष के थे जब उनके पिता गुजर गये । गुलामी का दौर था। तस्वीरें खिंचवाना कहाँ मुमकिन था। लिहाज़ा उनके पास याद करने के लिए अपने पिता की तस्वीर भी नहीं थी ।

पिता के गुज़र जाने के बाद बचपन भी गुज़र गया। जिंदगी गुज़ारने के लिए उन्होंने कई तरह के काम किए और किसी काम को छोटा नहीं समझा। उन्होंने काफी वक्त एक टाइपिस्ट के रूप में काम किया। पहले इटावा की कचहरी में। उसके बाद दिल्ली के सफाई विभाग में। यहाँ तक कि तंगी के दिनों में उन्होंने मेलों में पान-बीड़ी की दुकान भी लगाई और तांगा भी चलाया।

बचपन की एक घटना जिसने शायद उन्हें कवि बना दिया! स्कूल में एक नंबर से फेल कर दिए गए थे। फेल होने पर फीस भरनी पड़ती थी। फीस भरने के पैसे नहीं थे, इसलिए मास्टर जी से कहा कि पास कर दें। मास्टर जी ने कहा कि तुम गरीब के बच्चे हो, तुम्हारी कोई मदद नहीं करेगा। ज़िंदगी में जो कुछ भी करना कमाल का करना। उन्होंने कहा, “मैं फीस भर दूंगा, लेकिन पास नहीं करूंगा।” फिर क्या था, मास्टरजी की यह सीख काम कर गई और वे हाई स्कूल में फर्स्ट डिविजन से पास हुए। उनकी ज़िंदगी का यह संघर्ष ही था, जिसने उन्हें कवि बनाया । वे संघर्षों से जूझे इसलिए कवि बन गए । उनकी कविता “मानव कवि बन जाता है” में ये एहसास बयाँ होता है-

तब मानव कवि बन जाता है!

जब उसको संसार रुलाता,

वह अपनों के समीप जाता,

पर जब वे भी ठुकरा देते

वह निज मन के सम्मुख आता,

पर उसकी दुर्बलता पर जब मन भी उसका मुस्काता है!

तब मानव कवि बन जाता है!

लेकिन, महज कवि भर रह जाने का उन्हें मलाल भी था। 2012 में दिए एक साक्षात्कार में भी उन्होंने कहा था कि वह बहुत अभागे हैं क्योंकि उन्हें फिल्मों के लिए लम्बे अरसे तक गीत लिखने को नहीं मिले या शायद लिखे, लेकिन दुनिया उनके इस किरदार को लेकर फ़रामोश हो गई। उनकी असल पहचान महज एक कवि होकर रह गई ।

कुछ हद तक शायद उनका ऐसा कहना ठीक भी है क्योंकि गीत लिखने वालों को गाने वालों के जितनी तवज्जों नहीं मिलती। वे रोज़-रोज़ याद नहीं किए जाते, न ही उनकी सेहत की खबरें रोज-रोज छपती हैं। कुछ विशेष मौकों पर ही वे याद किए जाते हैं। हमारी भी नीयत कुछ हद तक ऐसी ही है शायद इसीलिए अब लिखना सूझ रहा है ।

खैर, बाकि जगह उन्हें तवज्जो मिली हो या न मिली हो पर कवि के रूप में वे हमेशा सराहे गए। कवि सम्मेलनों का अहम हिस्सा रहे।

कवि सम्मेलनों में श्रोताओं को बाँधे रखते थे

उन्होंने काफी वक्त तक मेरठ कॉलेज में हिन्दी प्रवक्ता के तौर पर भी काम किया। लिखने के साथ-साथ जीविका के लिए अध्यापन भी करते रहे। अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिन्दी के प्रोफेसर रहे। 2012 में अलीगढ़ के मंगलायतन विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। जब तक ज़िंदा रहे, अलीगढ़ उन्हें और वह अलीगढ़ को याद करते रहे।

यह वह दौर था जब उन्हें कवि सम्मेलनों में भी बुलाया जाने लगा था। एकदम जबर कविताएँ लिखते थे, वो भी ऐसी कविताएँ जो समझना सहज थीं, इसलिए श्रोताओं को बांधे रखने में सक्षम थीं। इसीलिए जल्द ही वह कवि सम्मेलनों के लोकप्रिय कवि बन गए। हिन्दी और उर्दू के तमाम बड़े कवियों के साथ उन्होंने मंच साझा किया। इनमें सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा, मैथलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी, रामधारी सिंद दिनकर, हरिवंशराय बच्चन, शिवमंगलसिंह सुमन, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे हिंदी के उम्दा कवि शामिल थे। वहीं फिराक गोरखपुरी, जिगर मुरादाबादी और कैफ़ी आज़मी जैसे उर्दू के उम्दा कवियों के साथ भी उन्होंने मंच साझा किया। एटा में 1941 में वे पहली दफा कवि सम्मेलन में बुलाए गए। 1942 में दिल्ली के पहाड़गंज के एक कवि सम्मेलन में उन्हें फिर से मौका मिला। इसकी मेजबानी उस दौर के उम्दा शायर जिगर मुरादाबादी कर रहे थे। उन्होंने जब नीरज को सुना तो कहा- “उमर दराज़ हो इस लड़के की, क्या पढ़ता है, जैसे नग़मा गूँजता है ।”

इतने महान कवियों के होने के बावजूद भी कवि सम्मेलनों में उनकी बड़ी मांग रहती थी। 1942 के पहाड़गंज वाले कवि सम्मेलन में उन्होंने जब अपनी पहली कविता पढ़ी, तो लोग वंस मोर कहकर चीखने लगे । ये वंस मोर तीन बार हुआ। मतलब उन्होंने तीन दफा अपनी कविता सुनाई। चूंकि वह श्रोताओं को बाँधे रखते थे, इसलिए हमेशा उन्हें सबसे आखिर में मंच पर बुलाया जाता था ।

कवि नीरज का मानना था कि “कविता वह है जो दिल को छू जाए।” उनका मानना था कि वह कविताएँ ही लोकप्रिय होती हैं जो समझने में सहज हो!” एक साक्षात्कार के दौरान उन्होंने कहा था-

कविता तो वो है जो आपके हृदय को छुए, आपके संस्कार को छुए। सिर्फ बौद्धिक व्यायाम से कविता नहीं बनती। ऐसी कविता वही लोग लिखते हैं, वही समझते हैं। हमलोग तो भाई कभी इतने विद्वान हुए नहीं। इस वजह से हमको तो लोगों ने कवि सम्मेलनों का कवि कह दिया लेकिन, डिमांड हर जगह हमारी ही होती है।”

जब नीरज राज कपूर से अड़ गए थे

“आदमी को आदमी बनाने के लिए, जिंदगी में प्यार की कहानी चाहिए और लिखने को कहानी प्यार की, स्याही नहीं, आंखों वाला पानी चाहिए। ये आंखों वाला पानी समेट कर नीरज जी चले गए। …और वह अकेले नहीं गए, कई अजन्मे गीत साथ ले गए”

ये पंक्तियाँ उम्दा गीतकार और पटकथा लेखक मनोज मुंतशिर ने नीरज के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए लिखी थी। इन पंक्तियों से जाहिर है कि वे एक उम्दा गीतकार थे। लगातार सेहत खराब रहने के बावजूद भी वह लिखते रहे। हालांकि उनकी कविताओं की तुलना में उनके गीतों की संख्या बेहद कम है। उनमें अब भी बहुत अधिक गीतकार बाकी था, पर शायद उन्हें उतने मौके नहीं मिले! या शायद फिल्मी दुनिया से उनका मोह भंग हो गया था। लेकिन, उन्होंने जो भी गीत लिखे, उन गीतों से वह अमर हो गए।

आज की नई पीढ़ी के लिए उनके गाने भले ही पुराने हो गए हों, पर वे अब भी गुनगुनाए जाते हैं। उन्होंने कई हिट फिल्मों के हिट गानें लिखें। चाहे वो मेरा नाम जोकर के गीत हों, गैम्बलर, प्रेम पुजारी या शर्मीली के गाने हों या फिर चाहे उनका सबसे लोकप्रिय गीत, “कारवां गुज़र गया” हो। वो हम न थे, वो तुम न थे, शोखियों में घोला जाए फूलों का शबाब, आज मदहोश हुआ जाए रे, लिखे जो खत तुझे, ऐ भाई ! जरा देख के चलो, दिल आज शायर है, जीवन की बगिया महकेगी, मेघा छाए आधी रात , खिलते हैं गुल यहां, फ़ूलों के रंग से, रंगीला रे ! तेरे रंग में आदि गीतों के अल्फाज़ उनकी कलम से ही लिखे गए. उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीत लिखने के लिए तीन बार फिल्मफेयर अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया।

नीरज जी हमेशा कहा करते थे- “कविता लिखना आसान है, गीत लिखना मुश्किल ।” एक बार उन्होंने अज्ञेय जी से यह प्रश्न किया था कि आप गीत क्यों नहीं लिखते ? इस पर अज्ञेय जी ने भी कहा था कि गीत लिखना बड़ा मुश्किल है। शायद इसीलिए वह एक बार राज कपूर से अड़ गए थे । दरअसल किस्सा उनके गीत “ए भाई ज़रा देख के चलो” से जुड़ा है । राज कपूर ने इस गीत में उन्हें परिवर्तन करने को कहा। वह अड़ गए, नहीं माने। कहा-“आप अपने क्षेत्र के हीरो हो और मैं अपने क्षेत्र का।” आखिरकार राज कपूर को उनकी बात माननी पड़ी ।

नीरज जी, आप हमेशा याद किए जाएंगे

नीरज जी अपनी कला को लेकर जिंदगी भर ईमानदार रहे । अपनी मन मर्जी के मालिक रहे। जहाँ हर आदमी महज रोटी का इंतजाम करने में लगा है, वहाँ कुछ करने को मिल जाए तो राहत आए। ज़िंदगी में कुछ मुश्किल होता है, तो वह है छोड़ देना। लेकिन, नीरज तो नीरज थे। हमेशा से मुश्किलें झेलते आए थे। इसलिए ये मुश्किल मोल ले लेते। जब भी मोह भंग होता छोड़ कर चले जाते। कई प्राईवेट और सरकारी नौकरियाँ उन्होंने छोड़ दी। यहाँ तक कि फिल्मी दुनिया की चकाचौंध से भी दूर हो गए, फिर भी कइयों के दिलों में बस गए। ज़माना उन्हें लेकर कभी फ़रामोश नहीं होगा, क्योंकि उनके अल्फाज़ों ने उन्हें ज़िंदा रखा है। स्वयं नीरज भी कह गए, “मुझको याद किया जाएगा

आँसू जब सम्मानित होंगे मुझको याद किया जाएगा

जहाँ प्रेम का चर्चा होगा मेरा नाम लिया जाएगा।

 

खिलने को तैयार नहीं थीं

तुलसी भी जिनके आँगन में

मैंने भर-भर दिए सितारें

उनके मटमैले दामन में

पीड़ा के संग रास रचाया

आँख भरी तो झूमके गाया

जैसे मैं जी लिया किसी से क्या इस तरह जिया जाएगा…

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

Be the first to comment on "मेले में पान बीड़ी की दुकान लगाए, कवि “लिखे जो खत तुझे”, मुझको याद किया जाएगा"

Leave a comment

Your email address will not be published.


*