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कविताः मां कहां हो तुम

-देवेश अग्रवाल

मैंने कभी उसकी एक झलक नहीं देखी

पर हर जगह उसका साया पाया है

सुना है उसको सब मां कहते हैं

कभी उसका चेहरा नहीं देख सका मैं

पैदा हुआ तो सोचा भगवान ने भेजा

पर हक़ीकत खुली तो म़ां ने मुझे अकेला छोड़ा

मै सुबह शाम उसकी तलाश में हूं

जल्दी हम मिले इसकी फरियाद मे हूं

नहीं है कोई मेरी भूख मिटाने वाला

ए मां तुझसे दूर कोई नहीं है

हाल मेरा पूछने वाला

दुनिया की भीड़ ने मुझे अजीब सा नाम दिया

अनाथ कह कर मुझे जलील कर दिया

तू है तो सही पर मिलता क्यों नहीं

मेरी मां तू मुझसे हमेशा के लिए

कहीं रूठ तो नहीं गई

तेरी दुआ मुकम्मल मेरे साथ है

पर क्या करूं मां तेरी कमी अभी नहीं बरदाश्त है

(रचनाकार नवोदित पत्रकार हैं)

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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