बरसों से तेरे मेरे बीच नहीं है कोई वार्तालाप
मगर बन गया है एक रिश्ता
तेरे मेरे दरमियान
मौन, मौन हाँ…मौन संवाद का
जिसमें तुम कुछ कहती भी नहीं हो
फिर भी सब मालूम हो जाता है मुझे
तुम्हारे बिना कुछ कहे ही
लापरवाही की मेरी वो आदत
जिसके कारण तुमने बातें करना
बंद कर दिया मुझसे
अभी भी नहीं गयी है
हाँ थोड़ी कमी ज़रूर आयी है
लेकिन, इतनी ही कि
अब मेरा ध्यान दिलाने के लिए
तुम्हें चीख़ने चिल्लाने की ज़रूरत नहीं होगी
काफ़ी है बस उसके लिए
तुम्हारी ख़ामोशी
ना ही छूटी है
मेरी वो लेटलतीफ़ी की आदत
जिसके कारण ना चाहते हुए भी
घंटों इंतज़ार करवा दिया करता था मैं तुम्हें
उत्तम नगर के उस भीड़ भाड़ भरे मेट्रो स्टेशन पे
लेकिन हाँ, समय का पाबन्द कर लिया है अब
मैंने ख़ुद को
लेकिन, इतना ही
कि अब पहुँच जाता हूँ मैं
घड़ी की सुई के ५ बजने से
ठीक १० मिनट पहले
ये जानते हुए भी कि
अब तुम कभी नहीं आओगी वहाँ
क्योंकि
बदल लिया है अब तुमने
अपना गंतव्य स्थान ही
और सुनो
चाय भी नही छोड़ पाया हूँ मैं अभी
जो कारण बनती थी अक्सर
हमारे बीच एक तीखी नोक झोंक की
क्यूँकि तुम्हें वो पसंद नहीं थी बिलकुल भी
और मुझे इतनी ही जितनी तुम
हाँ, लेकिन थोड़ी ज़्यादा पीने
लगा हूँ अब
क्यूँकि यहीं एक चीज़ है
जो ज़िंदा रखे हुए
ख़ुद्दारी और इश्क़ को
तुमको भी और मुझको भी
क्यूँकि तुम्हें पसंद नहीं थी ये कभी
और मुझे थी इतनी ही
जितनी तुम
यह कविता डॉ. संजय चारागर ने लिखी है
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