-बिकाश आनंद
दुनिया की नजरों में,
मैं एक शराबी बन गया,
जब से तू गयी है।
मैं क्या था
और क्या से क्या बन गया…
मैं आज भी उसी राह में सोया हूँ,
मैं आज भी तेरी उन यादों में खोया हूँ,
लोग कहते हैं नशे से मेरी आंखें लाल हैं,
उन्हें क्या पता कि मैं कितना रोया हूँ…
तेरे जाते ही मेरे हाथों से कविता बनने लगे,
न जाने कहाँ छुपे थे अचानक गजल बनने लगे,
लगता है ये सब भी तेरे दुश्मन ही थे,
इसलिए तो इनके घरों में घी के दीये जलने लगे…
ये जिंदगी भी एक कविता है
कोई खुशी तो कोई गम में जीता है।
हम तनिक लड़खड़ा क्या गए,
कि लोग कहते हैं बेचारा अब ये भी पीता है….
क्या करें साहेब
इश्क कुछ है ही ऐसी
बस मान लो, मनचली हवाओं के जैसी है।
मत कर इतना जुल्म ऐ दुनिया वालों
एक दिन खुदा के पास तेरी भी पेशी है…
चल ठीक है जीत ले तू, इस बार भी
जा ले जा, मेरा घर-द्वार भी,
अरे जिंदगी तो कुर्बान कर ही दिया हूँ तुझको,
क्या अब मिटायेगा मेरा प्यार भी…
मैं कोई कवि तो नहीं
कि प्रेम के विरह को जान पाऊं।
मैं कोई शराबी तो नहीं
जो इश्क के नशे को पहचान पाऊं
लेकिन, हां मैं एक प्रेमी हूँ
इसलिए जानता हूँ मोल इस संसार का,
जो मर के भी न मरे,
ऐसा पाक बन्धन है प्यार का
(बिकाश आनंद काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में छात्र हैं)
Beautiful exploring of feeling, very nice