एक धुंधली सी तस्वीर थी
मेरी आंखों के सामने
सारा जहां देख लिया मैंने
अब निराश होकर आई हूं मैं
सर्दी में शीतलहर गर्मी में लू कहलाती हूं मैं
ऐ मनुष्य! क्या सच तुम्हें बताती हूं मैं
जब तक स्वच्छ हूं तेरी बढ़ती आयु हूं मैं
वायु हूं मैं चिरायु हूं मैं
मुझे दूषित कर रहे हैं यह उद्योगपति
क्या सच में मारी गई है इनकी मति
सारा जग मुझे दूषित कहता है काला धुंआ सारा मुझे बहता है
क्या है कोई बताने वाला
यह सब कौन करता है
कहते हैं प्राण ले रही हूं मैं
बदले में कष्ट दे रही हूं मैं
यह धुंधली तस्वीर जब हट जाए तेरी इन आंखों से
तब मानव तू पूछना अपनी इन सांसों से
मृत्यु नहीं जीवनदायिनी हूं मैं
वायु हूं मैं चिरायु हूं मैं
प्रदूषण की इस चादर ने
तेरे कारण ही तुझको घेरा है
अब ऐ मानव मुझको बता दे
क्या! दोष मेरा है
यह मेरी पहली कविता है। जो गूगल पर है।