वायु! क्या दोष मेरा है
एक धुंधली सी तस्वीर थी मेरी आंखों के सामने सारा जहां देख लिया मैंने अब निराश होकर आई हूं मैं सर्दी में शीतलहर गर्मी में लू कहलाती हूं मैं ऐ मनुष्य! क्या सच तुम्हें बताती…
एक धुंधली सी तस्वीर थी मेरी आंखों के सामने सारा जहां देख लिया मैंने अब निराश होकर आई हूं मैं सर्दी में शीतलहर गर्मी में लू कहलाती हूं मैं ऐ मनुष्य! क्या सच तुम्हें बताती…