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वायु! क्या दोष मेरा है

तस्वीरः गूगल साभार

एक धुंधली सी तस्वीर थी

मेरी आंखों के सामने

सारा जहां देख लिया मैंने

अब निराश होकर आई हूं मैं

सर्दी में शीतलहर गर्मी में लू कहलाती हूं मैं

ऐ मनुष्य! क्या सच तुम्हें बताती हूं मैं

जब तक स्वच्छ हूं तेरी बढ़ती आयु हूं मैं

वायु हूं मैं चिरायु हूं मैं

मुझे दूषित कर रहे हैं यह उद्योगपति

क्या सच में मारी गई है इनकी मति

सारा जग मुझे दूषित कहता है काला धुंआ सारा मुझे बहता है

क्या है कोई बताने वाला

यह सब कौन करता है

कहते हैं प्राण ले रही हूं मैं

बदले में कष्ट दे रही हूं मैं

यह धुंधली तस्वीर जब हट जाए तेरी इन आंखों से

तब मानव तू पूछना अपनी इन सांसों से

मृत्यु नहीं जीवनदायिनी हूं मैं

वायु हूं मैं चिरायु हूं मैं

प्रदूषण की इस चादर ने

तेरे कारण ही तुझको घेरा है

अब ऐ मानव मुझको बता दे

क्या! दोष मेरा है

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

दीपू
छात्र, राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक बाल विद्यालय नंबर 2, उत्तम नगर ,नई दिल्ली

1 Comment on "वायु! क्या दोष मेरा है"

  1. यह मेरी पहली कविता है। जो गूगल पर है।

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