कविताः खुद के लिए जीना तो क्या जीना
खुद के लिए जीना तो क्या जीना जमाने को रोशनी देना चाहे खुद को राख कर देना जरूरत से कुछ ज्यादा ही पाया है पाकर भी बहुत कुछ रास न आया है हर एक…
खुद के लिए जीना तो क्या जीना जमाने को रोशनी देना चाहे खुद को राख कर देना जरूरत से कुछ ज्यादा ही पाया है पाकर भी बहुत कुछ रास न आया है हर एक…
-प्रभात अन्धकार है अभी तो प्रकाश एक दिन मिलेगा ही रात में जूगनू और तारों के बाद सूरज खिलेगा ही हैं पुष्प जो खूबसूरत, काँटों से दबे चीखते ही हैं कुछ कीचड़ के आगोश में कई…
जय हो तुम्हारी, विजय हो तुम्हारी, कदम-कदम पर बनने वाले बाधक! जय हो, विजय हो, हर पल में अपराजय हो तुम्हारी। क्योंकि, जब होगी जय तुम्हारी, जब होगी विजय तुम्हारी, तब-तब मेरा साहस खुद जागेगा,…