आप जो ख़्वाबों में आए न होते
बेवज़ह हम मुस्कुराए न होते
न फूल खिलते
न कलियां मुस्कुरातीं
भंवरे यूं गुनगुनाए न होते।
आप जो ख़्वाबों में आए न होते
मौसम भी कुछ, ख़ास न होता
सावन का एहसास न होता
पतझड़ दिखता, चारों ओर बस
बसंत, बहार भी आए न होते
आप जो ख़्वाबों में आए न होते
तुम बिन दिन भी, मुश्क़िल रहते
दूभर होता, रातों का कटना
अकेले पड़े हुए, बिस्तर पर
होता केवल, तारों को गिनना
तुम आए तो, अपनापन आया
हम वरना बहुत, पराए होते
आप जो ख़्वाबों में आए न होते
दिल भी कुछ, धीरे धड़कता
सांसें भी कुछ, मद्धम होतीं
हम भी रहते बुझे-बुझे-से
जीवन में बस, बेचैनी होती
तुम हो तो, अच्छा ही है, वरना
हम, कितनों के ठुकराए होते
आप जो ख़्वाबों में आए न होते
मुश्क़िल होता, कविताओं को लिखना
झूठी-सच्ची, तारीफें करना
ख़ूबसूरत शब्दों को चुनना
एक अनूठी कल्पना को गढ़ना
ये सब इतना आसान न होता
गर तुम इसमें समाय न होते
आप जो ख़्वाबों में आए न होते
बेवज़ह हम मुस्कुराए न होते
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