ना मैं हिंदू ना मैं मुस्लिम
मैं हूं एक इंसान।
ला मैं तेरी गीता पढ़ लूं
तूं पढ़ ले मेरी कुरान।
एक ही अरमान मन में मेरे
एक ही थाली में खाए हर इंसान
ना चाहूं मैं हिंदू बनना
चाहूं न बनना मुसलमान
ना मैं पंडित ना मैं मौलवी
ना मैं हूं विद्वान
जो करे प्रेम इबादत
वो ही है श्रेष्ठ महान।
मानव को जो मानव समझे
वो ही है इंसान।
ला मैं तेरी गीता पढ़ लूं
तू भी पढ़ ले कुरान।
ना मैं हिंदू ना मैं मुस्लिम
मैं हूं एक इंसान, जिसे
सबमें दिखता है भगवान।
-दीपू
(दीपू स्कूल के छात्र हैं और एनसीसी से जुड़े हुए हैं)
Hey that me, Deepu.
And it’s my poen.
प्रेम के आस्वादन से परिपूर्ण जो धर्म जैसे सीमाओं का खंडन करता है। शाब्बाश दीपू आप की कविता जल की तरह पवित्र और शीतल है।