वह आय़ा
भग्न हृदय से शव को
कंधे पर चुपचाप उठाया,
दुत्कार दिया गया वह
अस्पताल के द्वार से
एक एंबुलेंस की खातिर
क्योंकि नहीं था,
उसके जेब में एक भी पैसा
मरी थी उसकी पत्नी
टीबी की एक बिमारी से,
पर चिल्लाकर
रो भी न सका वह,
मन मसोसकर रह गया,
उसके आंखों से
आंसू की जगह
खून टपके,
उसने शिव को
याद किया होगा,
उस क्षण शिव भी
उसका धैर्य देख
चकित रह गए होंगे,
क्योंकि शिव तो
मृत सती के
शव को होकर
तांडव करते रह गए थे,
जिससे सृष्टि
नष्ट हो जाने की
आशंका थी,
पर जब तुम चले दाना मांझी
तो वह पल
अद्भुत था
अकल्पनीय था,
क्योंकि तुम्हें देखकर तो
मानवता हिली थी,
सैंकड़ों के हृदय कांपे थे,
और निष्ठुर राजसत्ता की
जड़े हिली थीं,
तुम्हारे मौन में
वह ताकत थी
जो शिव के
करुण चित्कार में भी न थी।
(डॉ. अम्बे कुमारी ने यह कविता हमें बिहार से लिख भेजी है। आपने बीएचयू से हिंदी में पीएचडी की डिग्री हासिल की है)
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