राम मंदिर विवाद अथवा अयोध्या विवाद एक राजनीतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक-धार्मिक संस्कृति से जुड़ा विवाद है। वैसे तो उत्तर प्रदेश की राजनीति में यह मुद्दा प्रमुखता से हमेशा ही उठाया जाता रहा है पर भगवान राम का मंदिर बनाने को लेकर एक बार फिर सियासत तेज हो गई है। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण पर जारी राजनीतिक बहस के बीच सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर सुनवाई जनवरी 2019 तक टाल दी है। यह सुनवाई राम जन्मभूमि पर 2010 के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर होनी थी। बीजेपी के एक मंत्री की तरफ से कहा गया है कि दिसंबर के दूसरे हफ्ते में 11 दिसंबर के बाद राम मंदिर के मुद्दे पर मोदी की ओर से बहुत बड़ा ऐलान हो सकता है। इससे पहले आइये जानते हैं कि आखिर विवाद की जड़ क्या है। पहले इतिहास पर नजर डाल लेते हैं-
…तो मामला ऐसे शुरू हुआ
मुग़ल बादशाह बाबर के सेनापति ने 1528 में बाबरी मस्जिद की नींव रखी थी। कई हिन्दू संगठनों का दावा है कि इस जगह पर पहले मंदिर हुआ करता था। यह मंदिर भगवान श्री राम का उनके जन्म स्थान अयोध्या पर बनवाया गया था। इस मंदिर को तुड़वाकर मस्जिद का निर्माण कराया गया। कहते है यह विवाद भारत के आज़ादी से बहुत पहले से है। पहली बार 1883 में इस पर विवाद हुआ।
21-22 दिसंबर 1949 की रात रामलला के प्रकट होने का दावा किया गया। 1986 में फैजाबाद कोर्ट के जज के आदेश पर मंदिर का ताला खुलवा दिया गया। नाराज मुस्लिमों ने विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया। जून 1989 में भारतीय जनता पार्टी ने वीएचपी को औपचारिक समर्थन देना शुरू करके मंदिर आंदोलन को नया जीवन दे दिया। 25 सितंबर, 1990 को बीजेपी अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली, जिसके बाद साम्प्रदायिक दंगे हुए।
6 दिसंबर का खूनी इतिहास
आखिर 1992 में 6 दिसंबर का दिन आया। अयोध्या में कारसेवा का मुहूर्त सवा बारह बजे का तय किया गया। सुबह छह बजे रामलला कि पूजा होनी थी। उस समय अयोध्या में लगभग दो लाख कारसेवक मौजूद थे। सभी पत्रकारों को मानस भवन नाम की इमारत की छत पर एकत्र किया गया था। नौजवान कारसेवक ढांचे की छत पर चढ़ गए। उनके हाथ में हथोड़े,सरिया,लोहे की छडे और पुलिस के डंडे आदि थे। उन्होंने इस ढांचे को तोडना चालू कर दिया और देखते ही देखते चंद मिनटों में यह ढांचा ढहा दिया गया। पुलिस फोर्स के होते हुए इतनी भीड़ को कंट्रोल करना आसान नहीं था। बाबरी मस्जिद ढहा दिया गया और जय श्री राम के नारे लगाए गए। जिसके बाद सांप्रदायिक दंगे हुए। जल्दबाजी में एक अस्थाई राम मंदिर बनाया गया। प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने मस्जिद के पुनर्निर्माण का वादा किया था।
16 दिसंबर, 1992 में मस्जिद की तोड़-फोड़ की जिम्मेदार स्थितियों की जांच के लिए एमएस लिब्रहान आयोग का गठन हुआ। इस मामले में आपराधिक केस के साथ-साथ दीवानी मुकदमा भी चला। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यालय में एक अयोध्या विभाग शुरू किया, जिसका काम विवाद को सुलझाने के लिए हिंदुओं और मुसलमानों से बातचीत करना था। अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर उच्च न्यायालय के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की। 2003 में इलाहबाद उच्च न्यायालय के निर्देशों पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में खुदाई की। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का दावा था कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष होने के प्रमाण मिले हैं। मुस्लिमों में इसे लेकर अलग-अलग मत थे।
बाबरी मस्जिद और बाबर
विजय और समृद्धि की आकांक्षा आक्रांता बाबर को यहां खींच लायी। बाबर एक पर्सियन शब्द है, जिसका अर्थ होता है शेर। जहीरुद्दीन मोहम्मद को सम्मान से बाबर कहा जाता था। वह बहादुर था, बेहतर संगठक और रणनीतिकार था, अपने समय के आधुनिक हथियारों से लैस था। यही वो वजह थी जिससे उसे उत्तरी हिंदुस्तान पर कब्जा करने में बहुत मेहनत नहीं करनी पड़ी। कुछ भारतीय योद्धाओं ने यद्यपि उसका सशक्त प्रतिरोध किया पर उसे शिकस्त नहीं दे सके। इसी तरह उसने अवध पर विजय के बाद यह इलाका अपने एक सिपहसालार मीर बांकी के हवाले कर दिया था। कहा जाता है कि उसी ने 1527 में अयोध्या में मस्जिद बनवाई और अपने बादशाह के नाम पर उसका नाम बाबरी मस्जिद रखा।
यह द्वेषपूर्ण कार्यवाही थी जो संस्कृति और धर्म के खिलाफ जाकर बस किसी भू-भाग को अपने अधीन रखकर इतिहास को बदलने की रणनीति कही जा सकती है। शायद मीर बांकी ने मस्जिद बनाने के लिए अयोध्या को इसलिए ही चुना था। हिंदू मान्यताओं के अनुसार अयोध्या में उनके सांस्कृतिक नायक राम जन्मे थे। मस्जिद बन तो गई लेकिन इतिहास पर लोगों की नजर हमेशा ही बनी रही। हिंदुओं में यह धारणा लगातार बनती गई कि जिस स्थान पर मस्जिद बनायी गयी, वहां राम मंदिर था। मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनायी गयी। इसी जनविश्वास के कारण इस स्थान के लिए कई बार युद्ध हुआ, खूनखराबा हुआ और आज भी इतिहास को फिर से नए रूप में लिखने की कोशिश जारी है।
1886 में जिला जज ने क्या फैसला दिया था?
18 मार्च 1886 को फैजाबाद के जिला जज ने अयोध्या मसले पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की। अयोध्या के एक महंत की अर्जी की सुनवाई करते हुए जज ने कहा, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हिंदुओं द्वारा पवित्र समझी जाने वाली जमीन पर मस्जिद का निर्माण किया गया लेकिन साढ़े तीन सौ साल पहले की गयी गलती को अब ठीक नहीं किया जा सकता। फैजाबाद कोर्ट के जज ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद के निर्माण को एक गलती की तरह तो स्वीकार किया लेकिन, यथास्थिति में किसी तरह के परिवर्तन की संभावना से इनकार कर दिया। हालांकि इसका विरोध होता रहा लेकिन इन सबके बावजूद 22 दिसंबर 1949 तक इसका इस्तेमाल मस्जिद की तरह होता रहा। इसके बाद यानी आजादी के बाद लोग धीरे-धीरे अयोध्या में राम मंदिर को लेकर इस तरह एकजुट होने शुरू हो गए कि देश में यह विवाद राजनीतिक उथल-पुथल का हिस्सा भी बन गई। सरकारें धर्म की आड़ में और सत्ता के लालच में इस कदर मदहोश होती देखी गईं कि उन्हें यह मुद्दा उछालकर रक्त रंजित इतिहास लिखने में जरा भी देर न लगी।
6 दिसंबर की ओर तो नहीं!
अब जबकि मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। ऐसे ही समय हिंदू संगठन एकजुट होकर सरकार से मांग कर रहे हैं कि जल्द से जल्द वह पहल करके राम मंदिर बनाने की तिथि निर्धारित करे। ऐसे में बीजेपी के एक मंत्री की तरफ से कहा गया है कि दिसंबर के दूसरे हफ्ते में 11 दिसंबर के बाद राम मंदिर के मुद्दे पर मोदी की ओर से बहुत बड़ा ऐलान हो सकता है। ऐसा अयोध्या से एक धार्मिक नेता स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा। अब सच्चाई जो भी हो धर्म सभा और हिंदुओं के अयोध्या में एकजुट होने के बाद एक बार फिर यह मामला उसी तरफ मुड़ते देखा जा रहा है जहां हम 6 दिसंबर को पहुंच चुके थे।
-नेहा पांडेय
(यह लेखिका के निजी विचार हो सकते हैं। किसी भी प्रकार के लेख संबंधी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा)
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