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दिल्ली में कब्रिस्तानों की किल्लत, शव को दफन कैसे करेंगे मुस्लिम

तस्वीरः गूगल साभार

लकड़ी को जलाया जाता है तो आसानी से राख बन जाती है। मरने के बाद इंसान को अगर जलाया जाता है तो जरूरी नहीं कि राख पूरी तरह से बने जब तक अच्छे से न जलाया जाए।

लेकिन अलग-अलग धर्मों की मान्यता के अनुसार शव का अंतिम संस्कार किया जाता है। सभी धर्मों में संस्कार अलग-अलग हैं। हिंदू धर्म और सिख में जहां शव को जलाया जाता है। वहीं मुस्लिम लोग शव को कब्रिस्तान में जगह देते हैं। ईसाई लोग शव को जगह की किल्लत के अनुसार कई जगह जलाते भी हैं।

दरअसल इस बात की क्यों जरूरत पड़ी कि अंतिम संस्कार के बारे में बताना पड़ रहा है। बात ऐसी है कि राजधानी में दिल्ली के अल्पसंख्यक कल्याण आयोग (डीएमसी) ने एक रिपोर्ट जारी कर बताया है कि एक साल के बाद राजधानी में मुस्लिमों को दफनाने के लिए कोई जगह नहीं बचेगी। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने गुरूवार को यह रिपोर्ट जारी की थी। समस्या से निबटने के लिए आयोग ने जमीनों के आवंटन और अस्थायी कब्रों के प्रावधान को मंजूरी देने की बात कही है।  इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने भी जमीन के कम होने और कब्रिस्तान के बढ़ने पर चिंता जताई थी।

आयोग के अध्ययन का हवाला देते हुए कहा गया है कि दिल्ली में हर साल औसतन 13 हजार मुस्लिम मरते हैं जिन्हें कब्रिस्तान में सुपुर्दे खाक किया जाता है। लेकिन साल 2017 तक मौजूदा कब्रिस्तानों में 29 हजार 370 लोगों को ही दफनाने की जगह बची थी। रिपोर्ट में कहा गया, ‘राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में वर्तमान स्थिति के हिसाब से देखा जाए, तो एक साल बाद मुस्लिमों की कब्र के लिए कोई जगह नहीं बचेगी। बशर्ते इसके निदान के लिए कोई रणनीति नहीं बनाई जाए।’

रिकॉर्ड के मुताबिक दिल्ली के विभिन्न इलाकों में 704 मुस्लिम कब्रिस्तान हैं, जिनमें से सिर्फ 131 में ही मृतकों को दफनाया जा रहा है। रिपोर्ट में कहा गया, ‘131 कब्रिस्तानों में से 16 में मुकदमेबाजी चल रही है जिससे इसका इस्तेमाल नहीं हो पा रहा जबकि 43 पर विभिन्न संस्थाओं ने अतिक्रमण कर लिया है।’

इसके साथ ही रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि दिल्ली के ज्यादातर कब्रिस्तान छोटे हैं, जो 10 बीघा या इससे कम क्षेत्रफल में हैं और इनमें से 46 फीसद का दायरा 5 बीघा या इससे भी कम है। आयोग ने  ‘दिल्ली में मुस्लिम कब्रिस्तानों की समस्याएं एवं स्थिति’ विषय पर अध्ययन ह्यूमन डेवलपमेंट सोसाइटी के माध्यम से साल 2017 में कराया था।

रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली में बहुत कम कब्रिस्तानों को विकसित किया गया है। जबकि य़हां प्राकृतिक कारणों एवं देश के अन्य राज्यों से पलायन के चलते मुस्लिम आबादी में काफी इजाफा हुआ है।

कब्रिस्तान का मामला बहुत पहले से ही उठता रहा है कभी विवादित बयानों के रूप में तो कभी सकारात्मक प्रयासों के रूप में। जो भी हो साक्षी महाराज के इस बयान की सोशल मीडिया में लोगों ने खूब आलोचना की और इसे धर्म से जोड़कर देखा जाने लगा था। आइए देखते हैं इन्होंने क्या कहा था…

इसके पहले साक्षी महाराज के इस विवादित बयान पर लोगों ने जताया था ऐतराज

कब्रिस्तान और श्मशान के संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टिप्पणी को लेकर विवाद पैदा होने के बाद भाजपा नेता साक्षी महाराज ने कहा था कि देश में कोई कब्रिस्तान नहीं होना चाहिए तथा हर किसी का दाह संस्कार ही किया जाना चाहिए। अगर ऐसा होता है, देश की सभी भूमि का उपयोग इसके लिए ही होगा और खेती आदि के लिए कोई जगह नहीं रह जाएगी। कोई मैदान नहीं रह जाएगा।

अपनी विवादित टिप्पणियों को लेकर अक्सर चर्चा में रहने वाले महाराज ने दावा किया, दुनिया भर में इस्लामी देशों में कब्रिस्तानों के निर्माण की कोई परंपरा नहीं है…। भारत में करीब साढ़े तीन करोड़ साधु हैं। वे मृत्यु पर गाड़ने की परंपरा का पालन करते हैं।

भाजपा नेता ने कहा, इसलिए, मैं प्रधानमंत्री से अपील करना चाहता हूं कि सिर्फ श्मशान होना चाहिए।

ये तो रही ऐतराज जताने और गुस्सा करने की बात लेकिन, देश में अंतिम संस्कार को लेकर इस तरह के रिपोर्ट से सवाल उठने ही लगे हैं जिनका हल किसी न किसी रूप में समय रहते ढूंढ़ ही लिया जाना चाहिए। जरूरी नहीं कि संस्कार के तरीकों को ही बदल दिया जाए लेकिन समय की मांग के अनुसार जो जरूरी हो किया जाना चाहिए। अस्थाई कब्रों की व्यवस्था और जमीन के आवंटन से कोई स्थायी समाधान होगा यह जरूरी नहीं। इसके लिए हल निकालने की जरूरत है और साथ ही ऐसे और शोध की जरूरत है जिससे इस समस्या के हल के बारे में पहुंचा जा सके।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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