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पर्यावरण दिवस (कहानी) …और पेड़ कट गया

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विकास

यह एक गांव की कहानी है, जिसके नाम का कोई मतलब नहीं है। वैसे भी अब ये वैसा नहीं रह गया है, जैसा कि यहां की बूढ़ी आंखों ने देखा था फिर भी अभी कुछ बातें थीं जो इसे गांव जैसा बनाती थीं। जैसे उत्तर में बहती हुई एक सिमट चुकी नदी, पूरब में दूर तक फैले खेत और उसके पार उजाड़ होता जंगल, दक्खिन में एक शिवाला और पश्चिम से लगता हुआ हाइवे। गांव में लोहार, कहार, कुम्हार, लाला सब रहते हैं। एक सरकारी स्कूल है और पूरब में ही प्रधान जी की कोठी है। दूर-दूर कहीं पीपल बरगद पाकड़ दिख जाते हैं, और गर्मी की दोपहरी में कुछ बूढ़े इनके नीचे डले रहते हैं। लोग सांस लेते जा रहे थे और उम्र काटते जा रहे थे।

‌अप्रैल के आखिरी दिन चल रहे थे और स्कूल में परीक्षा होने वाली थी। बच्चे बड़े मन से पाठ तैयार करने में जुटे थे और उनका मिला जुला शोर बाहर तक सुनाई देता था। विज्ञान की कक्षा चल रही थी और गुरुजी पर्यावरण पर कोई पाठ बांच रहे थे। बच्चे सुनते और बीच-बीच में सवाल करते जाते थे। पढ़ने -पढ़ाने का क्रम जारी था।

 

स्कूल के पास ही प्रधान जी के यहां दालान में 4-5 लोग जमे हुए थे और बतकही जारी थी। मुंशी जी कुछ हिसाब किताब दिखा रहे थे और खेत जोत की बात भी होती थी। इतने में रतन ट्रैक्टर लेकर पहुँच गया। उसे देखकर प्रधान जी पूछ बैठे, बड़ी देर लगा दिए आने में रतन। कहाँ रह गए, जोताई नहीं करोगे?

रतन : बाबा रास्ता बड़ा लम्बा पड़ जाता है। एक तो स्कूल की बाउंड्री पार करें, फिर कोठी के पीछे वाला कच्चा रास्ता बंद है। आने में बड़ी मुश्किल है। खेत भी दूर हो गए हैं।

प्रधान : हां ये तो समस्या है, क्या करें बड़ी दिक्कत है?

मुंशी: बाबा खेत जाने वाला रास्ता आसान हो जाएगा।

प्रधान : कैसे?

कोठी के पीछे की दीवार से आगे जो तीन नीम खड़े हैं, वो हट जाएं तो रास्ता बने। फिर ट्रैक्टर सीधा खेत में। क्यों रतन

रतन: मुंशी जी ठीक बता रहे हैं बाबा

प्रधान: हूं, सही है मुंशी जी। जाओ रतन लकड़हारों  को बुला लाओ।

 

स्कूल में गुरुजी का पाठ जारी था। उन्होंने पर्यावरण में आ रही हर तरह की दुश्वारियों को  बताया। जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण सब कुछ ठीक से हर बच्चे को याद करा दिया। फिर बताई सबसे गंभीर बात कि प्रदूषण से ओज़ोन की परत में छेद हो रहा है, इससे तापमान बढ़ रहा है। ये स्थिति खतरनाक है। हरेंद्र पूछ बैठा, गुरुजी इससे बचने का क्या उपाय है?

गुरुजी बोले इससे बचने का उपाय बस पेड़ ही है।

नवीन भी बोला, पेड़ कैसे गुरुजी।

अच्छा बताते हैं। इतना कह कर गुरुजी रुके और लम्बी सांस ली।

इधर , प्रधान लकड़हारों के साथ नीम कटवाने पहुंच चुके थे। पेड़ काटने वालों ने तनों से कुल्हाड़ी लगाई और निशान बनाकर चोट मारने लगे। बार-बार चोट से तने कटने लगे और वार की मज़बूती बढ़ती चली गयी।

गुरुजी ने बताना शुरू किया। पेड़-पौधे हमें ऑक्सीजन देते हैं। इसी ऑक्सीजन को हम सांस के तौर पर लेते हैं और ज़िंदा रह पाते हैं। कुल्हाड़ी के वार में और तेज़ी आ गयी। फिर गुरुजी बोले कि जितने अधिक पेड़ होंगे पर्यावरण उतना ही साफ होगा। हमें शुद्ध हवा मिलेगी और वायु प्रदूषण नहीं होगा। इसके साथ ही कुल्हाड़ी के कई वार नीम पर हो गए।

इस बार गुरुजी ने कहा कि पेड़ मिट्टी को जकड़ लेते हैं, इससे मिट्टी की कटान नहीं होती है। पेड़ बाढ़ के पानी को भी रोक लेते हैं। पेड़ों के कारण ही बारिश आती है, मौसम बदलता है और खेती होती है। बच्चे ध्यान से सुन रहे थे और तीनों नीम के पेड़ कट कर गिरने को हो रहे थे। सोनू बोला तब तो गुरुजी पेड़ वाकई बहुत ज़रूरी हैं, हमें इसके लिए क्या करना चाहिए?

गुरुजी बोले, इसके लिए पेड़ लगाना चाहिए। इसी के साथ एक जोरदार वार पेड़ों पर हुआ। गुरुजी ने कहा, चलो बच्चों हाथ आगे बढ़ाओ और शपथ लो कि

खूब पेड़ लगाएंगे

इसी के साथ पहला नीम गिरा

पेड़ों को नहीं काटेंगे

दूसरा नीम गिरा

पेड़ों को कटने से बचाएंगे

तीसरा नीम भी गिर पड़ा।

 

 

पाठ खत्म हो गया, पेड़ कट गया।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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