विवेक आनंद सिंह
जिंदगी जला दी हमने जब जैसे जलानी थी …
अब राख पर बहस कैसी, धुएं पर तमाशा कैसा
सबसे पहले टॉपर लोगों को शुभकामनाएं, उनको भी जो लोग भयंकर वाले नम्बर पाए हैं!
हमारी सारी सम्वेदनाएं अपने जैसे लोगों के लिए है। यानी एवरेज + फ़ेल होने की कटार की कगार पर लटके बच्चा लोगों के साथ।
सबसे पहले बच्चा लोग, आप खाओगे गाली वो भी जबर वाली, पिता जी अगर अमरीश पुरी निकले तो मार भी खा सकते हो। नहीं तो गाली और मार एकसाथ खाने की प्रबल संभावना विद्यमान है ( हमें तो दोनों की प्रसादी मिली थी)
खैर आते है मुद्दे पर। ..तो मुद्दा ये है कि हमे पता है आपकी लंका कैसे लगी (हमारी लंका किसी हनुमान ने नही बल्कि हम खुद ही लगाए थे )
रीजन नम्बर 1ः देखो बच्चा लोग जब 10वीं क्लास में पहुंचे तो आपके शरीर मे हो रहे थे हॉर्मोनल परिवर्तन। तो फिर क्या था? आप हुए विपरीत आवेश की तरफ आकर्षित। फिर आपको रत्ती भर भी भाव नहीं मिला। आपके दौर में तो तेरे नाम रिलीज नही हुई, लेकिन आपने अपने 6 इंची मोबाइल (साइज परिवर्तनीय) में तेरे नाम को 100 दफा देखी । इसका परिणाम यह हुआ कि आप तो पहले सुट्टा फूंकने में महारथी हो गए। फिर धीरे-धीरे पागलपन की उच्चतम सीमा लांघ गए और अंततः वैराग्य धारण कर लिए। नतीज़न बोर्ड एग्जाम के रिजल्ट्स आपके सामने हैं।
रीजन नम्बर 2: आपने अपनी बीएसए रेंजर साइकिल से बीएसए लेडिबर्ड साइकिल का खूब पीछा किया है, जिसके कारण आपने एग्जाम रिजल्ट पंचर हुए हैं।
रीजन नम्बर 3: आपका ध्यान मैथ्स और फिजिक्स की क्लास में तीसरी सीट की कोने पर बैठने वाली दूसरी लड़की पर ज्यादा था। क्लास तो मैथ की थी पर आप के दिमाग में बायो चल रहा था। क्लास फिजिक्स की होती और आपके दिमाग मे केमेस्ट्री फिजिकल कर रही होती।
फिर इन सबने मिलकर आपका थर्मो डायनमिक्स बिगाड़ दिया
रीजन नम्बर 4 : बच्चा होने की उम्र में आप लौंडा बन रहे थे …मने की क्लास बंक करके दोस्तो संग तफरी काटना और बकैती करना। ताड़ना और तड़ना आपके नित्य कर्म हो गए थे, जिससे आपके नयन मटक्का अब घर वालों से नही हो रहे।
रीजन नम्बर 5 : देखो बच्चा लोग आपका पढ़ाई में रत्ती भर भी इंटरेस्ट नही था। …तो अब रिजल्ट की बत्ती बना लो ।
अब आते है सॉल्यूशन पर
तो हे चाचा -चाची, दादा -दादी, मम्मी- पापा लोग एक बात नोट कल्लो ,अगर लड़का बोर्ड एग्जाम में अच्छे रिजल्ट्स नहीं ला पाया तो इसका ये मतलब कतई नहीं की वो झंड हो चुका है ।
डांटना मत और मारना तो कभी नहीं।
अब खुद ही सोचो कि बच्चा बढ़िया रिजल्ट्स ले आता तो क्या होता? बहुत होता तो उसे आईआईटी/एमबीबीएस हेन तेन की तैयारी करवाते, इंजीनियर या डॉक्टर बनता। बनने के बाद क्या होता? उसे तो पब्लिक एड लेके ससुरा देना सिविल सर्विसेज ही था। आप सौभाग्यशाली हैं कि आपका बच्चा अभी से वो लाइन पकड़ने वाला है…
चलो मान लिया अच्छे नम्बर, इंजीनियरिंग औऱ डॉक्टरी से आपको दहेज में लाखों नगद और स्कोर्पियो की जगह ऑडी मिल जाती . …यही होता न ?? चलो अब बोलेरो मिलेगी बस।
जानते हैं आपका सपना टूट गया, लेकिन चलेबुल है । बच्चों लोग को टाइम दीजिये, समझिये उन्हें, जिंदगी शुरू हुई है उनकी।
एक बात बताये दे रहे हैं। चोट खाया इंसान और टूटी बांसुरी गजब का इफ़ेक्ट पैदा करती है।
तो चच्चा लोग मस्त रहो लौंडे को भी मस्त रहने दो।
औऱ अभी तो जिंदगी शुरू हुई है लड़के की। जीने दो …मस्त होकर।
तो बच्चा लोग एक बात सुन लो ,मन करे तो नोट कल्लो …ये जो खराब रिजल्ट आने से चूहा मारने वाली दवा चाट लेते हो, दुपट्टा गले लगा के फांसी मार लेते हो, ये सब मत किया करो, काहे की जिंदगी बेहद खूबसूरत है किताबो से हट कर !
देखते जाओ जिंदगी क्या-क्या रंग दिखाती है …रंग देखो और अपना इन्द्रधनुष बनाओ। अगर हर टॉपर ही सिर्फ सफल होता तो हजारों उदाहरण भरे पड़े हैं जो अपनी एजुकेशन में फेल हुए, लेकिन आज अपना मुकाम बनाये हुए है ।
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