मजबूरियां- हमारी अधूरी कहानी
आज के परिवेश की एक अधूरी परन्तु सच्ची प्रेम कहानी है। जहाँ एक तरफ आदमी चाँद पर पहुँच गया है, वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग अपने घरों से निकलना नहीं चाहते हैं। यह कहानी मेरी और उसकी है। हम दोनों ने जीवनभर साथ निभाने और एक साथ सामाजिक कुरीतियों से लड़ने का वादा किया था। मैं उसे “प्रिया या छिपकली” कहकर बुलाता था और इससे ज्यादा उसका व्यक्तिगत परिचय देने से इन्कार करता हूँ, क्योंकि मैं नहीं चाहता कि उसने प्यार में जो बलिदान अपनों की खातिर दिया है वो विफल हो जाये। लेकिन, मैं यह जरूर चाहता हूँ कि जिस दर्द में हम दोनों जी रहे हैं, उस दर्द को हमारे अपनों के साथ-साथ वो सारे लोग महसूस करें जो झूठी शान, इज्जत और मर्यादा कि खातिर हम बच्चों को ग़मों के सागर में झोक देते हैं। यदि हम बच्चे अपनों की इज्जत और मर्यादा का ख्याल रखते हुए अपना रिश्ता निभाते हैं, तो उन्हें भी हमारी भावनाओं का क़द्र करते हुए समाज के सम्मुख आना चाहिए। जब हमारा धर्म, भगवान और कानून अपना जीवनसाथी चुनने और घर बसाने का अधिकार देते हैं तो इसे पूर्ण करने के लिए आपका आशीर्वाद साथ क्यों नहीं? इसका मतलब या तो धर्म, भगवान और कानून गलत हैं या फिर हमारी झूठी शान, इज्जत और मर्यादा गलत है।
“प्रिया” सिर्फ एक नाम नहीं अपितु यह
प्यार, संस्कार, परिश्रम, खूबसूरती, समझदारी, बुद्धिमता, जिम्मेदारी और सबसे बड़ी बात त्याग की जीती-जागती मूरत है। जिसे मैं अपने ख्यालों में बसाते हुए जी रहा हूँ। कभी सोचा नहीं था कि सपने भी यूँ सच हुआ करते हैं। लेकिन, उससे मिलने के बाद पता चला कि यदि आपकी चाहत सच्ची हो तो आसमान से तारे टूटकर जमीं पर गिर जाया करते हैं और उससे बिछड़ने के बाद पता चला कि जब तक हमारा समाज और अपने घरवाले ना चाहें तब तक खुदा लाख कोशिश कर लें, दो दिल कभी एक नहीं हो सकते हैं।
उस से मेरी जान-पहचान फेसबुक पर हुई थी, मैं पहली बार किसी लड़की से इतना प्रभावित हुआ। मैं 4-5 घंटे में उसे पूरी तरह भाप गया। शायद मेरी तलाश उस पर आकर ख़त्म हो रही थी।
कुछ दिन हम फेसबुक पर एक-दूसरे से बात करते रहे। वो बहुत ही समझदार, बातूनी और खुशमिजाज नजर आती थी, लेकिन वो लड़की बहुत ही मासूम, चंचल, भावुक और पागल थी। वो हवा में उड़ना चाहती थी, लेकिन कोई अनजाना डर उसे उड़ने से रोकता था। कुछ सपनें मन में पाल रखे थे, लेकिन उनका दमन कर रही थी। उसकी बातों से ऐसा लगा कि वो किसी कैद में है और आजाद होना चाहती है।
हम दोनों में सहमति हुई कि पढाई ख़त्म होने के बाद पैरेंट्स के सामने अपनी बात रखेंगे। अगर उन्होंने एक बार में हाँ कहा तो हाँ वरना ना। तब तक हम दोनों एक अच्छे दोस्त की तरह रहेंगे और कुछ नहीं। लेकिन कुछ चीजों पर हम इंसानों का बस नहीं चलता है। सेलफोन से बातें और फेसबुक पर चैट करते-करते हम दोनों एक दूसरे से इतना घुल-मिल गए कि खुद को पति-पत्नी समझने लगे। अगर एक दिन भी बात ना हो तो हमें चैन नहीं मिलता और हमेशा हमें इस बात का डर बना रहता कि यदि मम्मी-पापा ने हमारे रिश्ते को सहमति प्रदान नहीं की तो हम दोनों एक-दूसरे के बिना कैसे रहेंगे।
दिन ब दिन हम दोनों का एक-दूसरे के प्रति प्यार बढ़ता ही गया और साथ ही हमने अपने घरों की इज्जत और मर्यादा का ख्याल भी रखा। हमने कभी ऐसा काम नहीं किया जिससे कि हमारे माता-पिता को शर्मिंदा होना पड़े या हम दोनों भविष्य में उनका सामना ना कर पायें।
हमारी मुलाकातों और सेल फोन पर बातों का सिलसिला चलता रहा। एक-एक दिन बस इस इंतजार में कटते रहते कि एक दिन वो वक्त भी आएगा जब हम दोनों के बीच के सारे फासले मिट जायेंगे। फिर वो, मैं और हमारे सपने जो हमने अपने साथ-साथ अपने घरवालों के लिए भी देखें थे।
यक़ीनन भगवान ने हम दोनों को एक-दूसरे के लिए बनाया था। लेकिन, हम शायद भूल गए थे कि इस संसार में उसके अलावा भी एक शक्ति हैं जो उसकी सत्ता को चुनौती दे रही हैं और वो है ‘इंसान”। हमने अपना रिश्ता बखूबी निभाया और साथ ही अपने घरों कि मर्यादाएं भी निभाई थी। लेकिन, हमें मालूम नहीं था कि जिन घरों का हम इतना ख्याल कर रहे हैं, उनमे रहने वाले हमारे अपने एक दिन हमारे खुशियों का गला घोंट देंगे।
आखिर वो दिन भी आ गया जब एक तरफ हम और दूसरी तरफ हमारे अपने थे। सबसे पहले हमारे रिश्ते की खबर, मेरे घरवालों को हुई। मेरे अपने सभी एक तरफ और मैं दूसरी तरफ था। अक्सर हमारी जिंदगी उस समय और टफ हो जाती हैं जब हमारे अपने झूठी शान और मर्यादा के लिए अपने और पराये का एहसास कराने लगते हैं। जो रिश्ते निभाने की सबक दिया करते थे वो रिश्ता तोड़ने की बात करते हैं। जिसे हम चाहकर भी नहीं तोड़ सकते क्योंकि इस संसार में कुछ ऐसी चीजे हैं जिनकी कोई कीमत नहीं लगायी जा सकती। उनमे से माँ-बाप का प्यार सर्वोपरि होता है। लेकिन, जिंदगी देने वाला जिंदगी का फैसला करने लगे तो निश्चय ही प्यार व्यापर में बदल जाता है। जब हमारे माता-पिता अपने हक़ की दुहाई देते हैं तो आंसुओं से आँखें भर जाती हैं। उस समय मरने के सिवा कोई रास्ता नज़र नहीं आता जब अपने कहते हैं कि “एक लड़की के लिए अपने माता-पिता को ठुकरा रहें हो।” जिस प्यार को हम इबादत समझते हैं वो अब एक गुनाह और अभिशाप की तरह लगने लगता है। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि यहाँ प्यार का मतलब सिर्फ एक लड़की के प्यार से नहीं है। यदि यह सचमुच गुनाह है तो हम सभी गुनाहगार हुए। हम उन्हें कैसे समझाएं कि एक व्यक्ति विशेष के लिए हम उनका साथ नहीं बल्कि वो हमारा साथ छोड़ रहें हैं और हमें झोक देते हैं ग़मों के सागर में जहाँ हम तडपते हैं.. रोते है.. चिल्लाते हैं और जब कोई रास्ता नज़र नहीं आता तो मजबूर होकर मौत को गले लगा लेते हैं। हम तो हर रिश्तें को निभाना चाहते हैं क्योंकि रिश्तें जोड़ने के लिए होते हैं तोड़ने के लिए नही। बस मैं वही कर रहा था।
कुछ दिनों बाद आखिर वो दिन भी आ गया जब प्रिया के घरवालों को भी इस बात की भनक हो गयी। फिर वही हुआ जो अक्सर दो दिलों के साथ होता है। उसे मारने-पीटने के साथ-साथ डराया और धमकाया गया। उसके भाई ने मुझे फोन करके ढेर सारी गालियों के साथ, यह चेतवानी दी कि यदि हम इस रिश्ते को आगे बढ़ाते है तो वो हमारी बोटी-बोटी करके चील और कौवों को खिला देंगे। लेकिन, हमें इस बात की चिंता नहीं थी क्योंकि आज कल चील और कौवें दिखते ही कहाँ हैं। वैसे हम इंसानों की यह फितरत सी हो गयी है कि न हम चैन से रहेंगे और न दूसरों को रहने देंगे। हम दोनों अपने घर और मर्यादा कि खातिर सबकुछ सहते गए।
मैंने उसके भाई को बताया कि “हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं है जिससे आप लोगों का सर शर्म से नीचा हो। हम दोनों एक-दूसरे से शादी करना चाहते है और वो भी आपकी रजामंदी से।” मगर वो हमारी एक भी बात सुनने को तैयार नहीं थे। मुझसे नफ़रत का वहां वो आलम था कि यदि प्रिया अपनी जुबान से मेरा नाम ले ले तो उसके होठों पर मेरा नाम आने से पहले उसके मुंह पर जोर की थपड़़ पड़ती थी। सचमुच यकीन नहीं होता कि आज शिक्षा और ज्ञान का व्यापक स्वरूप होने के बावजूद कहीं न कहीं नैतिकता और मौलिकता में कमी सी रह गयी है और मानव जीवन का उद्देश्य कहीं परम्पराओं, जिम्मेदारियों और मान-मर्यादा में सिमट कर रह गया है। मैं कुछ दिनों बाद प्रिया से मिलने उसकी कोचिंग क्लास गया। वह मुझे देखकर मुस्कुरा रही थी। शायद इसलिए कि उसके जख्म और दर्द को देखकर मेरे आखों में आंसू न निकले क्योंकि उसे पता था कि मैं बहुत ही भावुक हूँ। वो हँसते हुए बोली कि सबकुछ ख़त्म हो गया।” उसकी जुबान से यह शब्द सुनकर मेरी आँख भर आई। इंसान कभी-कभी कितना मजबूर हो जाता है जब जीवन के संघर्ष में अपनों के विरुद्ध खड़ा होना पड़ता है। जो उसपर गुजर रह थी, मैं अच्छी तरह समझ सकता था क्योंकि यह सब मुझ पर भी तो बीत चुका था। प्रिया नहीं चाहती थी कि उसकी वजह से मुझे कोई नुकसान हो। बस वो इतना चाहती थी कि मैं जहाँ रहूँ, सही सलामत रहूँ। इसलिए उसने मुझसे फासला बनाना ही बेहतर समझा।
मैंने उसे समझाया, “प्रिया.. हम सिर्फ अपने लिए नहीं जी रहे हैं। हम जी रहे हैं अपने आने वाले कल के लिए जब हम एक दूसरे के जीवनसाथी हैं तो हमें एक साथ आने वाली मुश्किलों का सामना करना होगा। भले ही हमारी जिंदगी दो पल की क्यों न हो पर वो पल हमें एक साथ गुजारने हैं। यदि हम ऐसा न कर सके तो हमारा रिश्ता एक गाली बनकर रह जायेगा और हमेशा के लिए हमें बदचलन और आवारा घोषित कर दिया जायेगा। हमें अपने रिश्तें को एक पाक अंजाम तक पहुँचाना है और इसके लिए चाहे हम इस दुनिया में रहें या न रहें।” उसे मेरी बात कुछ-कुछ समझ में आने लगी थी। एक बार फिर हम दोनों ने अपने आने वाले कल के लिए, आज को भुलाकर एक नयी उड़न के लिए खुद को तैयार किया। इस दौरान मैंने अपने पैरेंट्स को मना लिया। मगर उसके पैरेंट्स अभी तक हमारे रिश्तें के लिए तैयार नहीं हुए और यह मानकर चल रहें थे कि हम दोनों का रिश्ता ख़त्म हो चुका है। एक दिन अचानक उनको खबर हुई कि आज भी हम दोनों के बीच बातों का सिलसिला कायम है। उसकी मम्मी ने एक बार फिर उसकी पिटाई की जिससे उसका चेहरा बुरी तरह बिगड़ गया। उससे भी जी नहीं माना तो रस्सी से उसका गला कस दिया। फिर भी प्रिया बेजान पत्थरों की भाति सबकुछ सहती गयी। बस इतना ही बोल सकी, “मुझे जो करना था, वह कर दिया, अब आपको जो करना है वो करिए।” कभी-कभी एक माँ कितना निर्दयी हो जाती है कि अपने जिगर के टुकड़े की जान की प्यासी बन जाती है, इस बात का यकीन नहीं होता। प्रिया छटपटाती रही परन्तु उसकी मम्मी ने गले से रस्सी का फंदा नहीं निकाला। वो तो गनीमत थी कि उसकी बहन ने हस्तक्षेप करके प्रिया की जान बचायी। नहीं तो उस दिन एक माँ के हाथों अनर्थ हो जाता और ममता हमेशा के लिए अभिशापित हो जाती। जब मैं एक बार फिर प्रिया से मिलने उसके कोचिंग क्लास गया तो उसके चेहरे पर पड़े घावों और गर्दन पर पड़े रस्सी के निशान से सारा माज़रा समझ गया और मैं चाहकर भी अपने आँखों से छलकते आंसुओं को रोक न सका। परन्तु आज भी उसके चेहरे पर पहले की भाति एक हँसी थी। जितनी मजबूत वो है, मैं नहीं क्योंकि वो हरेक परिस्थितियों का हँसकर सामना करती है। सचमुच वह उस समय इस दुनिया में सबसे अधिक समझदार और शक्तिशाली औरत लग रही थी। जिसे मैं अपनी होने वाली पत्नी के रूप में देख रहा था। प्रिया ने कहा, “अब कुछ नहीं हो सकता। यदि हम दोनों शादी करते हैं तो हमारे अपने हमारे साथ-साथ खुद को मार देंगे। ऐसा उनका कहना है और फिर हम ऐसा रिश्ता निभाकर क्या करेंगे कि हमारी वजह से कोई अपना इस दुनिया में न रहे।” यक़ीनन यह एक महान सोच थी और उससे भी महान उसका त्याग जो अपने पैरेंट्स के लिए करने जा रही थी। शायद उसे पता नहीं था कि उसका त्याग पैरेंट्स के लिए नहीं बल्कि झूठी शान और मर्यादा के लिए था। यह भारतीय इतिहास में पहली बार होने जा रहा था कि कोई होने वाली पतिव्रता पत्नी झूठी शान और मर्यादा के लिए अपने होने वाले पति को छोड़ने को तैयार थी। काश ऐसी सोच हमारे बड़े विकसित करते तो आज हमारे बीच सामाजिक कुरीतियाँ इस कदर पैर नहीं पसारती। सचमुच उस दिन हमारे अपने कितने गलत थे और हमेशा गलत रहेंगे। क्योंकि वे झूठी शान और मर्यादा की खातिर हमारी जान लेने को तैयार थे और हम अपने रिश्ते को बचाने की खातिर अपनी जान देने को तैयार थे। उसे जितना अपनो से लड़ना था, उतना लड़ चुकी थी। अब उसमे हिम्मत नहीं थी कि हमारे रिश्तें को जिन्दा रख सके। वो अन्दर ही अन्दर टूट चुकी थी। प्रिया ने कहा, हो सके तो मुझे कहीं से ज़हर लाकर दे दो क्योंकि इस समस्या का बस यही एक हल दिख रहा है।”
रोज जीता हूं और मरता हूं
कुछ दिनों बाद सेल फोन पर हमारी बातें बंद हो चली थी। उन्ही दिनों एक बार प्रिया का फोन आया तो मैंने उसे फ़ोन करने के लिए मना कर दिया। मुझे इस बात का डर था आज उसका गला दबाया गया है तो कल उसका गला काटा भी जा सकता है। इसलिए अब मैं उसके कोचिंग क्लास पर ही सप्ताह में एक बार मिल लिया करता था। उस दौरान मुझे शक था पर यकीन नहीं कि वो पूरी तरह से टूट चुकी है। अरमानों और खुशियों से सजी हमारी छोटी सी दुनिया को इसलिए उजाड़ दिया गया ताकि हमारे अपनों का घर बसा रहे। हमने अपने आसुओं को चारदीवारी के अन्दर कैद कर लिया ताकि उसकी सिसकियाँ बाहर ना जा सके। एक दिन शाम को प्रिया का फोन आया, “अब आप कोई प्रयास मत करिए क्योंकि कोई फायदा नहीं होगा। मेरी सगाई कर फिक्स कर दी गई है।” मैं यह सुनकर पागल सा हो गया। ऐसा लग रहा था, जैसे मेरे पैरों तलों से जमीं खींच ली गयी हो। मेरे रोने और चिल्लाने से उस कमरें की दीवारें गूंज उठी हो। मगर अफ़सोस इस बात का था कि मेरी आवाज सुनकर वो धराशायी नहीं हुई। प्रिया के घर के सारे सेलफोन स्विच ऑफ़ कर दिए गए। मुझे सारा मासला समझ में आने लगा। उसने तो अपने दिल पर पत्थर रखकर शादी के लिए हाँ कह दिया होगा। वो अन्दर ही अन्दर घुटती रही। मैं प्रिया के पापा से बात करने के लिए, उसके घर का नंबर डायल करता रहा। लगभग एक घंटे के बाद प्रिया के घर का नंबर लगा और उसके भाई से बात हुई। मैं उनसे विनती करता रहा कि वो हमें अलग न करें। लेकिन, एक बार फिर मुझे गालियों और धमकियों के सिवाय कुछ न मिला। तब से लेकर आज तक रोज जीता हूँ और रोज मरता हूँ।
उसने तो अपनी तड़प और दर्द के साथ जीना सीख लिया है। लेकिन, मैं आज भी अंधेरों में रोशनी की तलाश करता फिरता हूँ। आज मैं अपने दर्द और तकलीफ को इसलिए बयां कर रहा हूँ ताकि मेरे और प्रिया जैसे युवाओं के दर्द को आप सभी महसूस कर सके। वैसे भी मैं इस दुनिया में अकेला नहीं हूँ जिसके साथ यह घटना घटित हुई है। हमारे जैसे जाने कितने हैं। जो आये दिन झूठी शान, मर्यादा और रुढ़िवादी परम्पराओं का शिकार हो रहे है। साथ ही उनकी प्रेम कहानी अधूरी रह जाती है। शायद आप भी उनमे से एक हों। फिर आप क्यों चाहते है कि जो आपके साथ हुआ, वह किसी और के साथ भी हो। हम इंसानों और जानवरों में फर्क ही क्या रहेगा। मैं नहीं चाहता कि जो अंजाम ‘प्रिया और मेरे जैसे रिश्तों का होता आया है, भविष्य में उसकी पुनरावृति हो। हमें किसी व्यक्ति विशेष अथवा समूह विशेष से नाराजगी नहीं है बल्कि आपको हमारी खुशियों से नाराजगी है। हम किसी से कोई रिश्ता नहीं तोड़ना चाहते बल्कि आप अपने रिश्ते कि दुहाई देकर हमारा रिश्ता तोडना चाहते है। हमें आपकी जिंदगी जीने से कोई ऐतराज नहीं है। परन्तु हमें हमारी जिंदगी जीने का अधिकार चाहिए। आप भी सोचो आखिर कौन गलत है और कौन सही? एक तरफ कोई रिश्ता जोड़ना चाहता है और दूसरी तरफ कोई रिश्ता तोड़ना चाहता है।
बस इतनी सी है “हमारी अधूरी कहानी”।
लेखक भानु राज मीना राजस्थान से हैं और अभी शोधरत छात्र हैं। आप इनसे ईमेल bhanurajmeena@gmail.com पर भी संपर्क कर सकते हैं।
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