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डीयू के इतिहास विभाग में छात्रों ने किया जमकर प्रदर्शन, विभागाध्यक्ष के इस्तीफे की मांग

इतिहास विभागाध्यक्ष के कार्यालय के बाहर प्रदर्शन करते छात्र व छात्रों को समझाने के लिए बाहर आए विभागाध्यक्ष (दाएं)

-सुकृति गुप्ता

दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के इतिहास विभाग में भाषा को लेकर भेदभाव किए जाने पर छात्रों ने मंगलवार यानी 26 जून को विभाग में जमकर प्रदर्शन किया। छात्र एमफिल प्रवेश परीक्षा के  महज़ अंग्रेज़ी  में कराए जाने और एमए की सेमेस्टर परीक्षाओं  में पेपर के पैटर्न में बदलाव को लेकर विरोध कर रहे थे। यह विरोध प्रदर्शन फोरम टू सेव यूनिवर्सिटी ऑफ दिल्ली (एफएसयूडी) की अगुवाई में हुआ जो उच्च शिक्षा में भाषा को लेकर इस तरह से हो रहे अन्याय जैसे तमाम समस्याओं पर छात्रों की ओर से लगातार संघर्ष करता आया है।

बता दें कि पिछले तीन सालों से डीयू की एमफिल (इतिहास) की प्रवेश परीक्षा का प्रश्नपत्र अंग्रेजी में ही आता है। फोरम इसे हिन्दी माध्यम के विद्यार्थियों के  विरूद्ध नीति मान रहा है। फोरम के संयोजक आशीष रंजन सिंह ने बताया कि एमए की सेमेस्टर परीक्षाओं में भी ऐसी नीतियाँ बनाई जा रही हैं जो हिन्दी माध्यम के विद्यार्थियों के हित में नहीं है। उनका कहना है कि एमए की सेमेस्टर परीक्षाओं में पहले जहाँ 8 में से 4 प्रश्नों के उत्तर देने होते थे वहीं अब प्रश्नों की संख्या घटाकर 6 कर दी गई है, जिनमें से 3 प्रश्नों के उत्तर देने होंगे। उनका कहना है कि इससे विद्यार्थियों के लिए विकल्प कम हो जाएंगे। चूंकि हिन्दी माध्यम के विद्यार्थियों के लिए किताबें हिन्दी में कम ही उपलब्ध हैं, इसलिए विकल्प कम हो जाने से और ज़्यादा दिक्कतें होंगी।

इतिहास विभागाध्यक्ष के इस्तीफ़े की मांग

फोरम टू सेव यूनिवर्सिटी ऑफ दिल्ली का कहना है कि इतिहास विभाग प्रमुख डॉ. सुनील कुमार हिन्दी माध्यम के विद्यार्थियों के साथ भेद-भाव पूर्ण नीति अपना रहे हैं। मंगलवार को धरने के दौरान उनके खिलाफ़ नारे लगाते हुए उनके इस्तीफ़े की मांग की गई। इसके साथ ही छात्रों ने मांग की कि एमफिल की प्रवेश परीक्षा रद की जाए क्योंकि प्रश्न पत्र केवल अंग्रजी भाषा में दिया गया। फोरम के सदस्यों और धरना दे रहे छात्रों ने उनकी तुलना मैकाले और हिटलर से की तथा उनकी नीतियों को तानाशाही और फ़ासीवादी बताया। उन्होंने विभाग की नीतियों को हिंदी भाषी क्षेत्र के विद्यार्थियों के विरुद्ध षडयंत्र करार दिया।

छात्रों का कहना है कि इतिहास विभाग में किसानों और मज़दूरों के बच्चों को मौका नहीं दिया जा रहा है। विश्वविद्यालय में दरबारी परंपरा का अनुसरण किया जा रहा है। उनका कहना है कि एमफिल और पीएचडी के दाखिलें में भेद-भाव किया जाता है। साक्षात्कार के ज़रिए उन्हीं बच्चों को चुना जाता है जो शिक्षक के चहेते होते हैं। इनमें अंग्रेज़ी माध्यम के विद्यार्थियों को तवज्जो दी जाती है।

“आशीष रंजन सिंह ने कहा कि हमारे यहाँ एमफिल की लिखित प्रवेश परीक्षा का टॉपर तीन साल से दाखिला नहीं ले पा रहा है, क्योंकि वह हर बार साक्षात्कार में बाहर कर दिया जाता है।”

धरना देने आए छात्र पवन ने कहा-“आपके अंदर कितना नॉलेज है इसका परीक्षण होना चाहिए” उन्होंने कहा कि यहाँ अंग्रेजी को एक क्लास बना दिया गया है। साथ ही यह भी मांग की कि जिस तरह एमफिल की प्रवेश परीक्षा में वैकल्पिक प्रश्न पूछे जाते हैं, उसी प्रकार एमफिल की सेमेस्टर परीक्षाओं का कुछ हिस्सा वैकल्पिक प्रश्नों (एमसीक्यू) का होना चाहिए।

देखें वीडियो

इतिहास विभागाध्यक्ष का क्या कहना है

विभागाध्यक्ष डॉ. सुनील कुमार ने धरने पर बैठे विद्यार्थियों से बात की और उनकी समस्याओं को सुना। उनका कहना है कि जो भी समस्याएँ हैं या अगर किसी नीति से परेशानी है तो उसे तर्क सहित लिखित में प्रस्तुत किया जाए। जितना संभव हो सकेगा वे उसे हल करने का प्रयास करेंगे और उनकी समस्याओं को आगे उच्च अधिकारियों और कुलपति तक पहुँचाएंगे।

उन्होंने यह भी कहा कि “इतिहास विभाग के प्रमुख के पास कोई बहुत अधिक अधिकार नहीं होते। मैं कुलपति से एक बार ही मिला हूँ और मुझे ऐसा आभास होता है कि वह मेरे पत्र नहीं पढ़ते!”

उन्होंने कहा कि ये आरोप बिल्कुल गलत है कि मैं हिन्दी माध्यम के विद्यार्थियों के साथ भेद-भाव करता हूँ। उनका कहना है कि वे शिक्षक की तरह हर विद्यार्थी की समस्याएँ सुनते हैं और उन्हें हल करने का भी प्रयास करते हैं।

जब विद्यार्थियों ने उनसे एमए की सेमेस्टर परीक्षा के पैटर्न में बदलाव की शिकायत की तो उन्होंने स्पष्ट करते हुए कहा कि पैटर्न में कोई बदलाव नहीं किए गए हैं। इस पर अभी विचार चल रहा है। काउंसिल की बैठक में यह प्रस्ताव रखा गया है कि 6 में से 3 प्रश्नों के उत्तर देने का पैटर्न रखा जाए ताकि एक प्रश्न करने के लिए विद्यार्थियों को अधिक समय मिले। विद्यार्थियों के हित को ध्यान में रखकर ही यह प्रस्ताव रखा गया है। इसे अभी लागू नहीं किया गया है।

साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अगले वर्ष से एमए के तीसरे और चौथे सेमेस्टर में कोर (अनिवार्य) पेपर को हटा दिया जाएगा और उन्हें विषयों का चुनाव खुद करने की छूट दी जाएगी। इससे हिन्दी माध्यम के विद्यार्थियों के लिए भी विकल्पों की कमी नहीं रहेगी।

 

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Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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