-रवींद्र गोयल
डीयू अफसरों से झूठ बोलते कॉलेज और चुप साधे हुए छात्र, शिक्षक, कर्मचारी नेता
दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) की ओर से ज़ारी किये गए एडमिशन बुलेटिन 2018-19 में बताया गया है कि डीयू में बीए में दाखिले के लिये सबसे कम फीस 3046 रुपये सालाना है, जबकि अधिकतम फीस 38105 रुपये सालाना है। बाकि कालेज इन दो सीमाओं के भीतर फीस वसूलते हैं।
फीस का विकट मायाजाल
अब जब दाखिले की प्रक्रिया शुरू हुई तो पता चला कुछ कॉलेजों के मामले में बुलेटिन में बताई गयी फीस सच नहीं है। वो सरासर झूठ है। वास्तविकता और भी वीभत्स है। कुछ कॉलेजों के आंकड़े आये हैं, इन्हें देखने से पता चलता है कि वास्तविक फीस बतायी गयी राशि से कहीं ज्यादा है।
कॉलेज | बुलेटिन में फीस | वास्तविक फीस | बढ़ोतरी |
दीन दयाल उपाध्याय कॉलेज Humanities stream |
11460 | 15610 | 36% |
दीन दयाल उपाध्याय कॉलेज B mgt. studies |
14460 | 18610 | 28% |
श्यामा प्रसाद मुख़र्जी कॉलेज BA (Hons) Applied Psychology |
4490 | 9885 | 120% |
दयाल सिंह कॉलेज (कुछ शिक्षकों के अनुसार) |
50% over last year |
तय है इन कॉलेजों के और पाठ्यक्रमों और कॉलेजों में भी यही स्थिति होगी। फीस किन कारणों से बढ़ायी गयी है उसकी एक बानगी के तौर पर दयाल सिंह कालेज के एक अध्यापक श्री प्रेमेन्द्र कुमार परिहार बताते हैं “हमारे यहाँ गार्डन शुल्क 25 रुपये से बढ़ाकर 300 रुपये कर दिया गया है, वार्षिक शुल्क 30 रुपये से 300 रुपये और खेल शुल्क 600 रुपये से 1500 रुपये कर दिया गया है।”
ये बेतहाशा बढ़ी फीस किस मानवीय त्रासदी का सबब बनती है, उसके उदाहरण स्वरूप देखिये एक अध्यापक श्री दीपक भास्कर का निम्न तज़रबा जो उन्हें इस साल दाखिले के दौरान मिला
“ दो बच्चों ने आज ही एडमिशन लिया और जब उन्होंने फीस लगभग 16000 और हॉस्टल फीस लगभग 120000 सुना तो एडमिशन कैंसिल करने को कहा। अभिभावक ने लगभग पैर पकड़ते हुए कहा कि ‘सर मजदूर हैं राजस्थान से। सुना था कि जेएनयू की फीस कम है, उसी से सोच लिए थे कि यहां भी कम होगी। हमने सोचा कि सरकारी कॉलेज है तो फीस कम होगी। हॉस्टल की सुविधा सस्ते में होगी। इसलिए आ गए थे। इन दो बच्चों में एक बच्चा हिन्दू और दूसरा मुसलमान था, दोनों ओबीसी। ऐसे ही कई बच्चे डीयू के तमाम कॉलेजों में एडमिशन कैंसिल कराते होंगे।”
जब हॉस्टल छोड़कर जीबी रोड के पास रहना पड़ा
जाकिर हुसैन कालेज के एक भूतपूर्व छात्र, श्री अशरफ रेज़ा बताते हैं, जब मैं 2005 में बिहार से दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाई करने के लिए आया था तब मुझे जाकिर हुसैन कालेज में प्रवेश मिला। 2 साल मैं कॉलेज के छात्रावास में रहा, उस समय छात्रावास प्रवेश शुल्क 8500 रुपये था और भोजन के लिये शुल्क प्रति माह लगभग 1300 रुपये था। फिर 2 साल पूरे होने के बाद हॉस्टल प्रवेश शुल्क 8500 से 25000 रुपये तथा भोजन शुल्क 1300 से 2000 रुपये प्रति माह कर दिया गया। वह राशि मेरे और मेरे कमरे के साथी जफर के लिए देना संभव न था, क्योंकि हम कमजोर वर्ग से हैं। हमने प्रिंसिपल साहब से बात की, लेकिन नकारात्मक प्रतिक्रिया मिली। छात्रावास खाली करना पडा। अनजान शहर अनजान लोग जायें तो कहाँ जायें। हम 2 महीने कमला मार्किट के पास मस्जिद में सोये। उसके बाद हमने जीबी रोड के पीछे एक कमरा किराए पर लिया, किराया था प्रति माह 1500 रुपये।
हाँ, यह पता चला है कि सत्यवती कालेज (संध्या) में फीस 300 रुपये प्रति छात्र कम की गयी है। पहले फीस 8095 रुपये प्रति वर्ष थी, लेकिन इस बार 7795 रुपये प्रति वर्ष है। मैं उस कॉलेज के शिक्षकों और प्रशासन को इसके लिए बधाई देता हूँ।
दुःख की बात तो यह है कि इन सवालों पर प्रगतिशील शिक्षक/ शिक्षक नेता या छात्र नेता चुप हैं। इस चुप्पी को देख कैफ़ी याद आते हैं। उन्होंने सही ही कहा था
“कोई तो सूद चुकाए कोई तो ज़िम्मा ले, उस इंक़लाब का जो आज तक उधार सा है।”
(लेखक डीयू के सत्यवती कॉलेज के पूर्व शिक्षक हैं। ये उनके स्वतंत्र विचार हैं, फोरम4 का सहमत होना जरूरी नहीं)
ये वीडियो भी देखिएः
Be the first to comment on "डीयू में फीस के नाम पर की जा रही लूट, छात्र प्रवेश रद कराने को मजबूर"