-रोहिताश चौधरी
इस्लामिक अतिवाद यूरोप, अमेरिका से लेकर एशिया तक अपने पैर फैला चुका है, जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण इस्लामिक स्टेट (आईएस) जैसा खूंखार आतंकी संगठन है, जिसके समर्थक सीमाओं से परे आतंकी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं। हालांकि, इस्लाम के पैराकारों ने आईएस को सिरे से खारिज किया है, मगर फिर भी आईएस कट्टरपंथ को हवा देने में बहुत हद तक कामयाब रहा है। इस्लामिक अतिवाद के खतरे के बारे में आगाह करते हुए सैमुएल पी. हटिंगटन ने अपनी किताब ‘द क्लैश ऑफ सिविलाइजेशन’ (The Clash of Civilisation) में बताया है कि अब ‘सभ्यताओं का टकराव’, मुल्कों और भौगोलिक सीमाओं की लड़ाई पर आधारित नहीं होगा, बल्कि इस टकराव का केंद्र बिंदु ‘धर्म’ होगा। मोटे तौर पर इस्लामिक अतिवाद दुनिया के लिए बड़े खतरे के रूप में उभरेगा। उनके मुताबिक दुनिया में विभिन्न धर्मों और सभ्यताओं के टकराव के बीच का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कारण ‘इस्लाम’ होगा।
दरअसल, सैमुअल पी. हटिंगटन के शागिर्द फ्रांसिस फुकुयामा ने वर्ष 1992 में मानव सभ्यता पर ‘द एंड ऑफ हिस्ट्री एंड द लास्ट मैन’ (The End of History and The Last Man) नामक किताब लिखी थी। इस किताब में कुछ सिद्धांतों और दुनिया के मौजूदा हालातों के आधार पर यह बताने की कोशिश की गई थी कि दुनिया में सभ्यताओं का भविष्य और उनकी दशा क्या होगी। फुकुयामा ने दलीलें दी थीं कि सभ्यताओं का आखिरी पड़ाव ‘यूरोपीय लोकतंत्रशाही’ होगा, न कि मार्क्स का साम्यवाद। उनके मुताबिक ईसाइयत और अमेरिकी व्यवस्था ज्यादा उदारवादी और आदर्श व्यवस्था के समकक्ष मानी जा सकती है। इस किताब ने दुनिया भर में काफी सुर्खियाँ बटोरी थीं और प्रबुद्ध लोगों के बीच यह एक बहस के मुद्दे के तौर पर उभरी थी। हालांकि, इस किताब को जितना समर्थन मिला, उतनी ही आलोचना भी झेलनी पड़ी। हटिंगटन ने इसके जवाब में वर्ष 1993 में ‘द एंड ऑफ हिस्ट्री’ नाम से लेख लिखा, जिसे वर्ष 1996 में उन्होंने ‘द क्लैश ऑफ सिविलाइजेशन’ नामक किताब की शक्ल दी।
‘द क्लैश ऑफ सिविलाइजेशन’ के पहले भाग में सभ्यताओं के विस्तार पर रोशनी डालने की कोशिश की गई है। इस भाग में सीधे तौर पर शीत युद्ध (Cold War) के बाद की वैश्विक स्थिति को स्पष्ट किया गया है। हटिंगटन ने इस अवधारणा को अधिक आसान बनाने के लिए दुनिया को आठ प्रमुख सभ्यताओं में बांटा है-
- सिनिकः यह सभ्यता चीन तथा उससे संबंधित दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों से मिलकर बनती है। इसमें वियतनाम तथा संयुक्त कोरिया (नार्थ व साउथ) भी शामिल हैं।
- जापानीः इस सभ्यता को बाकी एशियाई सभ्यताओं से अलग रखा गया है।
- हिन्दूः यह मोटे तौर पर ‘कोर भारतीय’ या हिंदू धर्म से ताल्लुक रखने वाली सभ्यता है। नेपाल तथा मालदीव जैसे मुल्क भी इसी जमात का हिस्सा हैं।
- इस्लामः मुख्यतः अरब प्रायद्वीप (Arab Peninsula), उत्तरी अफ्रीका तथा मध्य एशिया इसके केंद्र हैं। तुर्क, पर्शियन, अरब आदि अलग-अलग धड़ों से मिलाकर यह विशाल सभ्यता विकसित होती है।
- ऑर्थोडॉक्सः पश्चिमी ईसाइयत से जुदा यह सभ्यता रूस में रहने वाले उन लोगों की है, जो सामान्य के मुकाबले कट्टरपंथ मजमे की ईसाइयत को मानते हैं।
- पश्चिमीः इसका केंद्र यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका माना गया है।
- लैटिन अमेरिकाः मध्य तथा दक्षिण अमेरिका की प्रभुत्ववादी (Authoritarian) सभ्यताओं को इसमें जगह दी गई है। इसमें शामिल अधिकतर मुल्कों में कैथोलिक प्रभावी रूप से है।
- अफ्रीकीः हटिंगटन ने इसको अलग से एक उभरती हुई सभ्यता माना है, जो बाकी सभ्यताओं से अलग अपनी पहचान स्थापित करने की राह पर है।
इस अवधारणा को मान लिया जाए तो ईसा से 1500 वर्ष पहले की दुनिया भौगोलिक आधार पर बंटी हुई थी। इसके पीछे की वजह यह थी कि उस वक्त तक एक जगह से दूसरी जगह तक जाने के लिए साधन नहीं थे। यानी सभ्यताएं जहां उदय हुईं, उसी दायरे में सिमटने पर मजबूर थीं। इन सभ्यताओं के विचार और तौर-तरीके को फैलने में सदियां लगीं। हटिंगटन के मुताबिक, रिसर्च और टेक्नोलॉजी ने सभ्यताओं के उदय और उनके विकास में उत्प्रेरक की भूमिका अदा की। 15वीं शताब्दी के बाद से पश्चिमी जगत में समुद्री परिवहन विकसित हुआ, जिससे सभ्यताओं के मूल्यों, विचारों और धर्म को तेजी से पैर पसारने में मदद मिली। बीसवीं सदी तक आते-आते सभ्यताओं के आपसी संबंध दुनिया के बाकी हिस्सों पर पश्चिमी प्रभाव (वैस्ट vs रेस्ट) पर निर्भर नहीं रहे। इसके बजाय सभी सभ्यताओं के आपसी ताल्लुकात बहुआयामी हो गए। हालांकि, हटिंगटन का मानना है कि दुनिया में एक जैसी सभ्यता (Universal Civilisation) के दौर के बाद से सभी सभ्यताओं में एकरूपता बढ़ी है। मसलन, आर्थिक, राजनीतिक तथा सामाजिक रूप से। लेकिन, धार्मिक समानता सभ्यताओं को करीब नहीं ला पाई है। इस भाग में बुनियादी तौर पर यह समझाने की कोशिश की गई है कि दुनिया आधुनिकीकरण की तरफ बढ़ रही है और पश्चिमीकरण के प्रति उदासीन हो रही है।
मामूली रफ्तार से हो रहा पश्चिम का पतन
हटिंगटन का मानना है कि तकनीक, सैन्य, विकास, आर्थिक तथा शोध जैसे मोर्चों पर आज भी पश्चिमी दुनिया का दबदबा कायम है, लेकिन पश्चिमी मुल्कों की ताकत तथा उनका प्रभाव लगातार कम हो रहा है। इस दौर में पश्चिमी पतन की रफ्तार मामूली है, इसलिए अन्य सभ्यताएं इससे उपजे वैक्यूम को भरने में कामयाब हो रही हैं। यही कारण है कि यह दुनिया के लिए कोई खतरा नहीं बन सकता है। साथ ही इसके पतन में निरंतरता भी नहीं है। यह कभी विपरीत, कभी तीव्रतम या फिर कभी एकदम शून्य हो जाता है।
राजनीति में बढ़ा है धर्म का महत्व
किताब में हटिंगटन ने इस बात की तस्दीक की है कि वैश्विक राजनीति में धर्म का महत्व और उसकी जरूरत बढ़ी है। धर्म एक ऐसा कारक है, जिसने राजनीति में उस खाई को भरने का काम किया है, जो ठोस राजनीतिक विचारधारा के अभाव में पैदा हुई है। मानव सभ्यता के अबतक के इतिहास में मनुष्य की जरूरतें बदली हैं। उसके विकास की परिभाषा बदली है और सामाजिक तथा आर्थिक विकास के मायने हर युग में बदले हैं, लेकिन धर्म ही एकमात्र पहलू है, जिसकी प्रासंगिकता हर युग, देश और परिस्थति में एकसमान रही है। वह भी एकदम मजबूत।
(लेखक पत्रकारिता के छात्र हैं और समसामयिक मुद्दों से लेकर अकादमिक विषयों तक की गहरी समझ रखते हैं)
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