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तुम्हारे बिना मैं दीप जलाऊं ये मुझे मंजूर नहीं

तस्वीरः गूगल साभार

कटती है तो कट जाए जिंदगी अंधेरे में

किसी से मांग कर चिराग़ जलाऊं ये मुझे मंजूर नहीं

अँधेरों में उजाले हैं, या उजालों में अंधेरा है

किसी का आशियां जलाऊं ये मुझे मंजूर नहीं

यहां हर शम्मा इक अंगारा है यहां हर कोई है परवाना

मगर मैं किसी शम्मा से लिपट जाऊं ये मुझे मंजूर नहीं

लगा दो लाख दीये जमाने मे मगर साहेबान

अंधरे गर मिटा न पाओ, तेरी इबादत करूं ये मुझे मंजूर नहीं

लाचार निगाहों को देख गुम सा हूं अब मैं

किसी के काम न आऊं ये मुझे मंजूर नहीं

सड़क उस पार देख रहा हूं मासूम को दीये लिए

चार पैसे की तो बात है, उसे वो भी ना दे पाऊं ये मुझे मंजूर नहीं

तुम लाख बहाने बनाओ, फरेब के

तेरे झूठ के उजालों में खुश हो लूं, ये मुझे मंजूर नहीं

काफ़िर ही सही, रहने दो मुझे

तुम्हारे बिना मैं दीप जलाऊं ये मुझे मंजूर नहीं

(विवेक आनंद सिंह ने यह रचना हमें लिखकर भेजा है)

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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