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एडिमशन के वक्त मिली थी, कहां पता था कि साथ जीने मरने की कसमें खाने वाले हैं

Credit: Goggle

विवेक आनंद सिंह

रात के 2 बजे थे। अचानक मोबाइल की घण्टी बजी….स्क्रीन पर नाम के साथ लाइट फ़्लैश हुई, लेकिन नाम देखते ही दिल मे एक घुप अँधेरा भी छा गया।

न चाहते हुए भी अभिनव ने वो फोन कॉल रिसीव की।

“अभिनव नाराज हो?  ट्राई टू अंडरस्टैंड बाबू” दूसरी तरफ से आवाज आई

“नहीं, नहीं अमिका। यार तुम सही हो अपनी जगह, मैंने तो बस तुमसे तुम्हारी मर्जी पूछ ली थी। सब खत्म हो रहा है और तुम एक वेल सैटल्ड लड़के से शादी कर रही हो। बिजनेस फेमिली है उसकी। कोई तकलीफ नही होगी तुम्हें……और मेरे साथ शायद तुम उतना खुश नहीं रह पाती………. हम दोनों ही फ्यूचर ओरिएंटेड हैं तो……….तुम सही कर रही हो”

“थैंक्स अभिनव, तुमने मेरी बहुत बड़ी प्रॉब्लम सॉल्व कर दी। मैं यही सोच रही थी कि कहीं तुम न समझो तो मैं क्या करुँगी अपना ध्यान रखना बाय

बाय, अभिनव ने फोन रखते ही टेबल लैंप की लाइट बुझाई, क्योकि आँखों मे वो रोशनी चुभ सी रही थी, लेकिन दिल मे अब भी कुछ सुलग रहा था। कुछ टूटा था….कुछ हसीन ख्वाब बिखरे थे…कुछ अनचाही बातें हुई थीं … कुछ वादे सपनों की शमशीर से टूटकर आँखों मे चुभ रहे थे ………….बस इतना ही तो हुआ था।

जब आँखें हँसती हैं तो दिल पथराया होता है। अभिनव को आज वो सब याद आने लगा जो 6 साल पहले यूनिवर्सिटी में शुरू हुआ था।

प्रवेश भवन में पहला दिन। एडमिशन लेते समय वो.….हाँ वो ही जो आज इतने प्रैक्टिकल लहजे में बात की। तब एक दम चुप, सहमी सी अभिनव के बगल बैठी थी और अपनी मेरिट कैटेगरी का इंतजार कर रही थी।

तब किसी को ये नही पता था कि वो दोनों साथ जीने मरने की कसमें खाने वाले हैं ……पता भी कहां होता है? ये तो बस हो जाता है न।

“आपका कॉम्बिनेशन क्या है?” अभिनव ने ऐसे ही बिना किसी मोटिव के पूछा।

“जियोग्राफी, इकोनॉमिक्स, इंग्लिश लिट्रेचर” अमिका का जवाब था।

चलिए तब तो क्लास में मुलाकात होगी। बाइ द वे माइसेल्फ अभिनव राजपूत और आप?

अमिका सोमवंशी।

बस इतनी सी तो बात हुई थी । एक अदने से गाँव से आने वाले लड़के की जुर्रत ही कहाँ हो सकती है इससे आगे बढ़ने की। होती भी तो कैसे जब उसने अपनी अब तक की जिंदगी किसी और की रहमो करम पर बिताई हो… आँखों मे सिविल सर्विसेज के सपने जुगनुओं की तरह टिमटिमा रहे थे। तकलीफ और अपनों की कमी को सहते-सहते वो अंदर से मजबूत हो गया था।

यूनिवर्सिटी की क्लासेज स्टार्ट हो चुकी थीं, लेकिन वो लड़की उसे नहीं दिखी जो उसे प्रवेश भवन में दिखी थी। अभिनव ने ज्यादा ध्यान भी नही दिया।

1 महीना बीत चुका था। शनिवार का दिन था। प्रोफेसर अश्वजीत वर्मा की क्लास। 10 मिनट लेट अमिका क्लास में आती है। अभिनव देखते ही पहचान गया, लेकिन फिर लेक्चर पर ध्यान देने लगा।

यह सिलसिला 1 साल तक चलता रहा। अभिनव अपने सपनों की दुनिया मे खुश था, जुनून तो इतना था कि रात कब दिन में बदल जाता उसे पता भी न चलता। हँसते मुस्कुराते अपनी कहानी लिख रहा था। उसे नही पता था कि 6 साल बाद उसकी कहानी एक दास्तां बनेगी।

प्रथम वर्ष परीक्षा परिणाम आ गए थे। अभिनव ने टॉप किया था। मेरी तरह सभी लोग हैरान थे कि कैसे अभिनव टॉप कर सकता है?

अरे यार! अभिनव कौन? अरे वही न जो पीछे बैठता है? अबे उसके कपड़े कितने गन्दे होते हैं। ड्रेसिंग सेंस नहीं है। भाई वो अजीब है एकदम।

(उसके बारे में तरह-तरह की बातें हो रही थीं)

हाँ, मैं उसे तब से जानता था जब क्लास में पीछे बैठने को लेकर मेरी और उसकी बहस हो गई थी, अगले दिन हम दोनों ने एक दूसरे को सॉरी बोला था।

शायद ये हमारी दोस्ती की शुरुआत थी, लेकिन मेरा दूसरा पोजीशन आने के बाद मुझे थोड़ा बुरा लगा था। मानव स्वभाव मेरे ऊपर हावी हो चुका था।

लेकिन, बस थोड़ी ही देर में मैं नॉर्मल हो गया। यही सोचा चलो ससुरा दोस्त है अपना। टॉप किया है उसकी इमेज बनेगी। दूसरे टॉपर हम हैं तो हमारी इमेज तो बनेगी ही। लेकिन, थोड़ा कम। कोई बात नही मैनेज कर लेंगे।

“क्या बेटा एकदम ठाठ में हो आजकल” मैंने मजे लेते हुए बोल दिया

“हाँ बेटा तुम्हारा कम ठाठ है क्या? और ससुर एक बात बताओ लास्ट यूनिट का क्वेश्चन पूरा क्यों नही लिखे थे?

लिखे होते बेटा तो आज तुम फर्स्ट आए होते और हम सेकेन्ड… बोले थे न तुमसे कि बकैती मत करना। अब भोगो ससुर” (अभिनव गुस्साते हुए बोला)

“चलो भाई डांट लो आप अब बुद्धजीवी बन चुके हैं। आपकी बातें ब्रह्म वाक्य बनाते हुए मैं अपने जीवन मे आत्मसात करूँगा गुरुदेव”

“अब बस करो, चलो चाय पिलाते हैं ”

“पार्टी दे रहे हो क्या?”

“नहीं भाई ,ऑर्डर दे रहे हैं, चाय के पैसे तो तुमको ही देने हैं”

“ये कौन सी बात हुई? टॉप करो तुम और साला चाय पिलायें हम। घण्टा न पिलायेंगे हम”

“देखो 500 की कड़क नोट है हमारे पास जो हम निकाले थे तुम्हारे जेब से। अब या तो 3 रुपये की चाय पिलाओ या फिर ये 500 भूल जाओ”

“अजीब चोट्टा आदमी हो तुम,चलो पिलाते हैं”

एक साल में हमारी इतनी दोस्ती हो चुकी थी कि रुपये-पैसे, किताब-कलम और अंडर वियर कब एक दूसरे की ले लें, कुछ पता नहीं चलता क्योंकि हम लड़कों को हाइजीन का कोई खतरा नही होता।

शायद ये कहानी सिर्फ अभिनव और अमिका की ही नहीं है ,ये कहानी उन हसीन लम्हों की है जो हर लड़का कॉलेज लाइफ में जीता है। उन छोटी-छोटी लड़ाइयों की है जो जानबूझ कर सिर्फ एक दूसरे की टांग खीचने के लिए की जाती थीं।

शायद इसी कहानी से हमारी पहचान है।

शाम हो चुकी थी, हम दोनों एक दूसरे की टांग खीचते हुए बाबा टी स्टाल पहुँच चुके थे।

वीमेंस हॉस्टल के सामने।

चाय की चुस्की लेते हुए मैंने मसखरी करदी ….”देख भाई देख … वो देख रही है लड़की तुझे।

“कौन भाई?”

“अरे वही ब्लैक टॉप वाली”

“भाई वो अमिका है”

“वाह बेटा। साला यहाँ हमें नाम नहीं पता, टॉप का कलर बता रहे हैं हम ,और तुम माला जप रहे हो नाम की। लगे रहो बेटा…..दोस्त दोस्त न रहा, जिंदगी हमें तेरा ऐतबार न रहा”

“हो गई बकवास तुम्हारी? चल अब हॉस्टल चलते हैं और बेटा वो प्रवेश भवन में एडमिशन के दिन मिली था। तभी नाम पूछा था ऐसे बातचीत में पता चल गया था तब से लेकर आज तक कोई बात नही हुई है”

मजाक ही तो था न ये। नहीं ये मजाक नही था। ये उस हकीकत के बीज बनने जा रहे थे जिसका फल 6 साल बाद मिलना था। काश ये बीज बोया ही न गया होता।

*जिंदगी जला दी हमने जब जैसी जलानी थी*

*अब धुएं पर तमाशा कैसा, राख पर बहस कैसी*

(कहानी जारी रहेगी)

 

 

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

1 Comment on "एडिमशन के वक्त मिली थी, कहां पता था कि साथ जीने मरने की कसमें खाने वाले हैं"

  1. Vijay singh | May 24, 2018 at 5:30 PM | Reply

    What a story..
    Keep it Bro..
    Eagrley waiting 2nd

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