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इश्क ऐसा जैसे फूल का खिलना (कविता)

-मीनाक्षी गिरी 

हमारे इश्क़ के बारे में क्या पूछते हो जनाब,

हमारा इश्क़ ऐसा है जैसे फूल का खिलना।

कोमल पत्तियों जैसे एहसासों का जाल,

रात के गहरे अन्धकार में जुगनुओं का चमकना।

जैसे चाँद तारों को हाथों में महसूस करना

किसी नन्हें बच्चे की मासूम सी हंसी मे,

माँ के वात्सल्य प्यार का छुप जाना।

जैसे बैरागी की तरह मेरा मंडराना

तुम्हें देख मेरा थम जाना।

जैसे तुम्हे खुद में उलझाकर

कभी खुद में भुला देना हो।

तुम्हें कुछ यूँ चाहना

इश्क इबादत हो जैसे,

जिसके लिए इज़ाज़त की

जरूरत न हो ऐसे।

जैसे तुम्हें एक  पहेली बना देना हो

जिसे कोई बूझ न सके जैसे।

तुम्हें दिल की जुबां बना

मौन हो जाना हो जैसे।

हमारे “इश्क़” का तुम पर

बरस जाना हो जैसे।

(मीनाक्षी गिरी महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में शोध की छात्रा हैं)

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

1 Comment on "इश्क ऐसा जैसे फूल का खिलना (कविता)"

  1. बिन्गो | September 18, 2018 at 3:50 PM | Reply

    वाह क्या बात जी

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