शिक्षा अब एक ऐसा
ज्वालामुखी है,
जिसके क्रेटर खुल गए हैं,
जो बेरोजगारी का
लावा उगल रहा है।
विश्वविद्यालय अब एक ऐसा
उफनता नद है,
जिसके बांध टूट गए हैं,
और जिसका पानी,
बेतरतीब होकर बह रहा है।
विद्यार्थी अब ऐसे बंदर हैं,
जिसके हाथ में तो,
नारियल है,
पर वह उसका महत्व नहीं समझता,
शिक्षक अब ऐसा जौहरी है,
जो रत्नों को
पहचान नहीं पाता,
क्योंकि उसने,
आँखों पर पट्ठी बांध रखी है।
और,
शासन एक ऐसा दूल्हा है,
जिसकी कठोर नीतियों से,
शिक्षा की दुल्हन
अवमानना के सेज पर,
बैठी रो रही है,
और उसके आँसू
कोई नहीं पोंछता।
नौकरी
मृग-मरीचिका को
ढ़ँढ़ूते हुए
नंगे पैरों
अविरत गति से
दौड़ना,
पसीने से लथपथ
थके और टूटे हुए बाजू,
इतने परिश्रम के बाद
पाना,
रेत का समंदर
खारे पानी का किनारा।
कौन प्रश्न पूछेगा?
शिक्षा पाने के लिए
हाथ मत बढ़ाओं
अन्यथा तुम्हारा अंगूठा
काट लिया जाएगा,
फिर युग के द्रोणाचार्य से
कौन प्रश्न पूछेगा?
कि उसने पांडवों की जीत
किसके बलि के मुल्य पर दी।
वेदों को सुनने कि लिए
कान मत लगाओ
अन्यथा तुम्हारे कानों में
गरम पिघला शीश,
डाल दिया जाएगा,
फिर युग के स्वपन्द्रोहियों से
कौन प्रश्न पूछेगा?
कि तुमने मानव का
मूल अधिकार क्यों छीना़?
शिक्षा पाने के लिए
किसी गुरु के पास मत जाओ
क्योंकि छल से या शाप से
तुम्हारी सारी दी हुई विधाएँ
हर ली जायेंगी,
और तब भी फिर
युग के परशुराम से
कौन प्रश्न पूछेगा?
कि तुमने एक दानवीर को
निहत्था क्यों होने दिया?
शिक्षा पाने के लिए
कदम मत बढ़ाओ
क्योंकि तुम अनजाने ही,
गोलियों से भून दिये जाओगे?
फिर युग के
क्रूर आततायियों से,
कौन प्रश्न पूछेगा?
कि तुमने एक
निहत्थी, सुकुमार लड़की को
क्यों गोलियों का शिकार बनाया?
पर फिर भी यह एक
ऐसी ज्वाला है,
जिसमें मानव हर पल
जलना चाहता है,
कुछ नया अनुसंधान
करना चाहता है।
अनुसंधितससु बनकर
कुछ नया इतिहास
रचना चाहता है।
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