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दिल्ली विश्वविद्यालय का 24X7 पुस्तकालय सत्याग्रह

“मनुष्य नश्वर होते हैं। उसी प्रकार विचार भी होते हैं। यह विचार गलत है कि विचार अपना संवर्धन स्वयं कर सकते हैं। जिस प्रकार पौधे को पानी की, उसी प्रकार विचार को प्रचार की दरकार रहती है। अन्यथा दोनों मुरझाकर नष्ट हो जाएंगे”: डॉ. बीआर अंबेडकर

पिछले कुछ वर्षों से भारत के विश्वविद्यालय अध्ययन का केंद्र कम बल्कि आंदोलन का केंद्र बने हुए हैं। जिन छात्रों को अध्ययन कक्षों व पुस्तकालयों में अध्ययनरत रहना चाहिए था, वे छात्र निरंतर शिक्षा से संबंधित विभिन्न मुद्दों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। आखिर इसके पीछे वजह क्या हो सकती है? उत्तरत, निसंदेह विश्वविद्यालय प्रशासन और सरकार आए दिन ऐसी नीतियां लेकर आती हैं जो सभी सामाजिक वर्गों में शिक्षा के प्रसार को अवरुद्ध करती है। लेकिन, विभिन्न तरह के आंदोलनों में एक आंदोलन ऐसा भी रहा है जो अपने आपमें एक विशेष स्वरूप का था। यह था ‘24X7 पुस्तकालय सत्याग्रह’। यह पुस्तकालय सत्याग्रह दिल्ली विश्वविद्यालय के कला संकाय में स्थित केंद्रीय पुस्तकालय को 24 घंटे खुला रखने के लिए किया गया था। पहले यह पुस्तकालय स्नातकोत्तर छात्रों व एमफिल, पीएचडी के शोधार्थियों के लिए क्रमशः रात्रि 8 बजे व मध्यरात्रि 12 बजे बंद होता था। छात्र व शोधार्थी चाहते थे कि यह पुस्तकालय सभी स्तर के छात्रों के लिए 24 घंटे खुला रखा जाए। क्योंकि विभिन्न केंद्रीय विश्वविद्यालयों में भी पुस्तकालय 24 घंटे खुले रहते हैं।

इस सत्याग्रह की शुरुआत 5 फरवरी 2018 को हुई थी। अधिकतर छात्रों की मांग थी कि पुस्तकालय 24 घंटे खुले, लेकिन कुछ छात्रों व शोधार्थियों ने सत्याग्रह की शुरुआत की। मुद्दे की गंभीरता और गहराई को छात्रों ने समझा और सत्याग्रह को अपार समर्थन मिला। हालांकि पुस्तकालय को 24 घंटा 7 दिन खोला रखने को लेकर पहले भी कई प्रकार के प्रदर्शन हुए  थे, लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन ने पुस्तकालय को 24 घंटा खोलने व उसका विस्तार करने की ओर कोई कदम नहीं उठाया।

पुस्तकालय सत्याग्रह क्यों?

दिल्ली विश्वविद्यालय के कला संकाय में वर्ष 1957-58 में केंद्रीय पुस्तकालय का निर्माण किया गया था। तब से लेकर 2018 तक पुस्तकालय का विस्तार नहीं किया गया व एक भी सीट की बढ़ोतरी नहीं हुई। 60 वर्षों में छात्रों व शोधार्थियों की संख्या भी कई गुना बढ़ गई। स्थिति ऐसी थी कि पुस्तकालय में अध्ययन के लिए आने वाले शोधार्थियों को बैठने के लिए सीट ही उपलब्ध नहीं हो पाती थी। सीमित सीट और बढ़ी हुई शोधार्थी संख्या की वजह से शोधार्थियों को नियमित रूप से एक सीट प्राप्त करने, अध्ययन करने व शोध को जारी रखने में तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। घर पर या देश के विभिन्न राज्यों से आने वाले सभी छात्रों व शोधार्थियों के पास वह सब सुविधाएं उपलब्ध नहीं है जो उन्हें पुस्तकालय में हो सकती है। क्योंकि दिल्ली विश्वविद्यालय में नामांकित अधिकतर छात्र व शोधार्थी गरीब तबकों व हाशिए के समुदायों आते है जो किराए पर एक कमरे में रहते है। दिल्ली विश्वविद्यालय सभी छात्रों व शोधार्थियों को छात्रावास भी मुहैया नहीं करा पाया। लगभग सभी सीट सुबह ही भर जाती थी अध्ययन के लिए आए अधिकतर छात्र वापस लौट जाते थे। इसलिए सत्याग्रहियों की मुख्य मांग थी कि पुस्तकालय को रात्रि में भी अध्ययन के लिए खुला रखा जाए।

रात्रि सत्याग्रह व समानांतर पुस्तकालय

कई दिनों तक 5 फरवरी से 8 फरवरी तक शांतिपूर्ण सत्याग्रह चलता रहा। छात्रों ने पुस्तकालय के बाहर सामानांतर पुस्तकालय चलाया और वहीं पर दिन-रात अध्ययन करने लगे। फरवरी के शुरूआती सर्द सप्ताह में छात्रों ने ठान लिया था कि 24 घंटा पुस्तकालय से उन्हें कुछ कम नहीं चाहिए। लेकिन, प्रशासन की तरफ से कोई भी अधिकारी या उनके प्रतिनिधियों ने सत्याग्रही छात्रों से संपर्क नहीं किया। प्रशासन के इस रुख से निराश छात्रों ने निर्णय किया कि वह 8 फरवरी को पुस्तकालय से बाहर ही नहीं आएंगे। प्रशासन ने छात्रों की मांगों को सुनने या मानने की बजाए पुलिस बुला कर कार्यवाही की मांग की। छात्रों ने शांतिपूर्ण तरीके से पुस्तकालय के अंदर अध्ययन व सत्याग्रह किया। यह सत्याग्रह निरंतर चलता रहा और छात्रों की मांगों पर कुछ काम करने की बजाय प्रशासन ने छात्रों को पुस्तकालय से निकालने के लिए कई उपाय आजमाए। महिला छात्रों की सुरक्षा को मुद्दा बनाया गया। छात्रों पर अराजकता का माहौल तैयार करने का आरोप लगाया गया। खाली राजनीति करने को लेकर भी छात्रों को निशाना बनाया गया। छात्रों को प्रताड़ित किया गया, डराया धमकाया गया। पानी और बिजली बंद करना तो प्रत्येक दिन की कहानी हो गई थी, ताकि छात्र सत्याग्रह ख़त्म कर दें। तब से लेकर आज तक छात्र पुस्तकालय में शांतिपूर्वक अध्ययन कर रहे है। धीरे-धीरे प्रशासन ने भी अपने रवैये में नरमी बरती और छात्रों की मांगे सुनते हुए कुल मिलाकर 3 घंटे का समय ही बढ़ाया। लेकिन, छात्र भी ‘24 घंटा और 7 दिन पुस्तकालय से कम कुछ भी नहीं की मांग’ पर कायम रहे।

सत्याग्रह निहितार्थ

छात्रों ने 24 घंटे पुस्तकालय खुलवाने के लिए सत्याग्रह केवल स्वयं के हित के लिए ही नहीं बल्कि वे पुस्तकालय से संबद्ध कई निहितार्थों को भी देखते थे। सत्याग्रह के दौरान पुस्तकालय खुलने के कई लाभ गिनाते थे। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष इससे कई लाभ होते।

I यदि पुस्तकालय 24 घंटे खुलता है तो इससे शोध छात्रों को शोधकार्यों को शीघ्र एवं नियमित समय पर करने में सहूलियत होगी।

  1. एमफिल, पीएचडी में नामांकित शोध छात्रों को शोध के लिए अधिक अध्ययन की आवश्यकता होती है इसलिए उन्हें अपनी दिनचर्या का अधिक समय अध्ययन के लिए देना होता है। वे जब चाहे तब पुस्तकालय में अध्ययन कर सकेंगे।

III. इससे केवल छात्रों को ही लाभ नहीं होगा बल्कि प्रोफेसर भी व्यस्त दिनचर्या में से समय निकाल कर रात्रि में अध्ययन कर सकेंगे।

  1. 24 घंटे पुस्तकालय खुलने से कुछ अतिरिक्त कर्मचारियों की आवश्यकता भी होगी। जब नए कर्मचारियों की भर्ती होगी तो कुछ लोगों को रोजगार भी मिलेगा।
  2. जब शोध छात्र पीएचडी थीसिस या लघु शोध प्रबंध लिखने के अंतिम दौर में होते है तो समय पर कार्य पूरा करने के लिए 18-20 घंटे तक निरंतर शांतिपूर्वक गंभीर अध्ययन कर सकेंगे। शोध पत्र लिखते समय भी शोध छात्र व प्रोफेसर पुस्तकालय में निरंतरता के साथ लेखन कार्य कर सकेंगे।
  3. जो सुविधाएं पुस्तकालय में उपलब्ध हैं वे सुविधाएं छात्रों को घर या किराए पर लिए गए कमरे में उपलब्ध नहीं हो सकती। इसलिए पुस्तकालय की सुविधाओं का पूर्ण लाभ लेकर छात्र बेहतर शैक्षिक प्रदर्शन कर सकेंगे।

विकल्प केवल 24 घंटा पुस्तकालय

औपचारिक रूप से पुस्तकालय को स्नातकोत्तर छात्रों के लिए सुबह 8 बजे से रात्रि 10 बजे और एमफिल/पीएचडी शोधार्थियों व प्रोफेसर के लिए सुबह 8 से रात्रि 12 बजे तक ही रखा। रात्रि 12 बजे तक तो सत्याग्रह से पहले भी पुस्तकालय खुलता था। कुल मिलाकर स्नातकोत्तर छात्रों के लिए अतिरिक्त 3 घंटे का समय मिला जबकि एमफिल/पीएचडी शोधार्थियों व प्रोफेसर को केवल एक घंटा ही अतिरिक्त समय मिला। ऐसी स्थिति में केवल एक ही विकल्प है- 24×7 पुस्तकालय।

वर्तमान स्थिति

वर्तमान में भी स्थिति यह है कि सत्याग्रह के बाद भी पुस्तकालय को 24 घंटा खोलने व उसका विस्तार करने के विश्वविद्यालय प्रशासन के तमाम आश्वासन खोखले निकले। औपचारिक रूप से पुस्तकालय को 24 घंटा नहीं किया गया जो कि छात्रों की जायज मांग थी। आज भी पुस्तकालय में छात्र 24 घंटा पढ़ रहे है। एक वर्ष बाद भी विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा औपचारिक रूप से पुस्तकालय को खोलने के लिए दस्तावेजी प्रक्रिया पूरी नहीं की है। सत्याग्रही छात्रों को नए पुस्तकालय निर्माण का भी आश्वासन प्रशासन द्वारा दिया गया था। अभी तक विश्वविद्यालय प्रांगण में कहीं पर भी कोई निर्माण कार्य शुरू नहीं हुआ। बेहतर अकादमिक प्रदर्शन व शोध हो सके इसलिए विश्वविद्यालय प्रशासन को छात्रों व शोधार्थियों को अधिक से अधिक सुविधाएँ प्रदान करनी चाहिए। देश के कुछेक शैक्षिक संस्थानों या विश्वविद्यालयों छोड़ दें तो लगभग सभी शैक्षिक संस्थानों विश्वविद्यालयों की स्थिति बहुत ही दयनीय है। निम्न स्तर की शिक्षा सुविधाओं का भी अभाव है। अन्य आधारभूत सुविधाओं के साथ-साथ कम से कम पुस्तकालय का संचालन तो सुचारु रूप से होना ही चाहिए।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

सुमित
अतिथि शिक्षक, भगिनी निवेदिता कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय (एनसीवेब), एसएफआई उपाध्यक्ष दिल्ली राज्य, राजनीतिक कार्यकर्त्ता भी हैं। संपर्क: sumitktr2@gmail.com

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