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कविताः मैं तेरे लिए मुसलमाँ बन जाऊं

तू गवाह बन जाये मेरे इश्क का, मैं तेरा ईद बन जाऊँ

तू बन मेरी मोहब्बत का चाँद,  मैं तेरे लिए मुसलमाँ बन जाऊं

 

सारे जहां को छोड़ आया हूँ

तू आज मेरी गीता बन जा, मैं तेरा कुरान बन जाऊँ

 

हजार बंदिशें है , हजार पहरे हैं

मैं कैद हूँ सलाखों में, तू मेरी आजादी बन जाये

 

जानता हूँ तकदीर ने मजाक किया है

बस ये एहसास रख जिंदा तू और मै तेरा आईना बन जाऊँ

 

इन आँखों मे अश्क़ नहीं तैरते अब

जो बस गया तू इनमें, मैं तेरे लबों की मोहर बन जाऊँ

 

तू बन मेरे लिए होली के हजार रंग

मैं तेरे रूह में डूब के तेरी ईदी बन जाऊँ

 

रंगों में  रंगी हो इस मोहब्बत की दास्ताँ

तू मेरी अफसानों में डूब जाए, मैं तेरे फ़सानो में डूब के संगीत बन जाऊँ

 

होकर तुझसे रूबरू, खुद को आजमाते हैं

कभी तू भी आजमा मुझे और मैं तेरा शागिर्द बन जाऊं

 

बड़े करीने से तराशा है तुझे खुदा ने

तेरी इबादत में मैं काफ़िर बन जाऊँ

 

क्या करना है उस जन्नत का अब मुझे

तेरी जुल्फों के साये में अब काफ़िर बन जाऊँ

 

कभी गुजरता हुआ तेरी गली से नहीं सोचा है हर दफ़ा

तू वो खिड़की खोले और मैं सायकिल पंचर कर जाऊँ

 

रुक के उन लम्हों को समेट लूँ एक बार फिर

जिनमें तेरे लबों पर हसीं थी और मैं उन लम्हों को लिए फिर फ़ना हो जाऊँ

 

तू गवाह बन जाये मेरे इश्क का, मैं तेरा ईद बन जाऊँ

तू बन मेरी मोहब्बत का चाँद,  मैं तेरे लिए मुसलमाँ बन जाऊं

 

(विवेक आनन्द सिंह )

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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