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poem by vivek

कविताः मैं तेरे लिए मुसलमाँ बन जाऊं

तू गवाह बन जाये मेरे इश्क का, मैं तेरा ईद बन जाऊँ तू बन मेरी मोहब्बत का चाँद,  मैं तेरे लिए मुसलमाँ बन जाऊं   सारे जहां को छोड़ आया हूँ तू आज मेरी गीता…