तुम कहाँ हो
आकाश सूना हो उठा
काले बादल
दूर दिशाओं से
उड़ते आ रहे
अँधेरा रास्ते का
मन के आँगन में
बरस रहा पानी
जंगल में झूमते पेड़
हिलोरे ले रहा सागर
हर तरफ छलक रहा
किसके मन का गागर
खुद को अकेला
आज पास पाकर तुमने बुलाया
हवा का झोंका कहाँ से आया
देखता हूँ रंग और नूर का
तुम्हारी आँखों में
रात का फैला नजारा
एक नदी हँसकर बुलाती
सावन की घटा
किसको सुहाती
ओ प्रिये तुम किस
सुरभित समय की धार
यह पुष्पहार
बीत गयी आधी रात
शायद सो गयी हो
अब बाहर उमड़ी नदी को
कैसे करोगी पार
सुंदर स्वप्न का संसार
किसने रचा
जो कुछ भी साहस
सुबह में बाकी बचा
उसी रात का साया
कितने सुंदर फूलों को
सुबह सूरज
धूप भरी नगरी से चुनकर लाया
उसके तन मन की खिली माया
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