-विवेक आनंद सिंह
किसी सूरत को देखा किसी मूरत को देखा
बदलते हर एक मौसम में किसी अपने को देखा
खुमारी के आलम में, नशा चढ़ कर जो बोला है
लगा के आग सीने में तेरी रंगत को देखा
ये माना सारी दुनिया मे हसीं तुम सा नहीं कोई
मचलते अरमानों को बदन में सिमटते देखा
ये जिस्म सोने सा, ये आँखे एक पहेली सी
उलझते हम भी इनमें, खुद को बहुत मजबूर देखा
महफ़िलों में तो चर्चे हैं, तेरे मदमस्त अदाओं के
रहे बेगार हम तो अब, दिल को अपने बेजार देखा
लकीरों में मेरी तकदीर का बस इक सितारा है
तेरी सूरत कभी देखी, कभी खुद को नाखुदा देखा
तू बेवज़ह हैरान है मेरी नाकामी से,
हमने अपने सिर से छत को हटते देखा
ये सही है जला दी हैं यादें हमने हर कोने से
मगर तेरे जले खतों को राख में फिर से उभरते देखा
(रचनाकार विवेक जी हैं जो फेसबुक लेखों और कविताओं की वजह से अपने फालोवर के बीच काफी प्रसिद्ध हैं)
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