-रवि प्रताप सिंह
आज हम वैज्ञानिक युग में जी रहे हैं। 21वीं सदी में तर्क या कुतर्क किए बिना हम किसी भी बात को मानने के लिए तैयार नहीं होते हैं। हम आज स्वयं को बुद्धिमान कहते हैं। विज्ञान को सभी चीजों का आधार मानकर हर छोटी-बड़ी चीज को विज्ञान के तुला में तोलते हैं और जब कुछ प्रश्नों का जवाब विज्ञान नहीं दे पाता है, तो उसे प्रकृति का चमत्कार बताते हैं, जबकि चमत्कार और विज्ञान का नाता बिल्कुल उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव जैसा है। विज्ञान चमत्कार को नहीं मानता है, मगर चमत्कार उस असीम शक्ति से जुड़ा है, जो प्रकृति के सभी नियमों से ऊपर है।
क्या विज्ञान ऐसी किसी घटना को चमत्कार कहेगा, जिनमें बुद्धिमान मनुष्यों से पहले जानवरों को प्राकृतिक आपदा का आभास हो जाता है। मसलन, कुछ समय पहले दक्षिणी तटों पर सुनामी आने से पहले वहां मौजूद पशु-पक्षियों ने असामान्य व्यवहार करना शुरू कर दिया था, लेकिन यह असामान्य व्यवहार, हमारी नजरों में था, उनकी नजरों में नहीं, क्योंकि उन्हें पूर्वानुमान हो चुका था कि कुछ अनहोनी होने वाली है और वह कैसे और किधर होने वाली है। वहां मौजूद हाथी अपने सवारों सहित ऊचें स्थानों की ओर दौड़ पड़े, जिससे वे खुद को सुनामी से बचा पाए।
प्रश्न उठता है कि क्या स्वयं को बुद्धिमान कहने वाला इंसान उन जानवरों के व्यावहारिक ज्ञान और छिपी हुई शक्तिओं से हार गया। मैं डिस्कवरी चैनल पर रिपोर्ट देख रहा था। उसमें एक विशेष प्रजाति के तोते फल खाकर एक विशेष प्रकार की मिट्टी को खाते हैं। जब उनके इस व्यवहार का अध्ययन किया गया तो पता चला कि वे जो फल खाते हैं, वह जहरीले होते हैं, इसलिए उसके प्रभाव को खत्म करने के लिए उस विशेष प्रकार की मिट्टी का सेवन करते हैं। समझने वाली बात यह है कि उन्हें इसका ज्ञान कैसे हुआ, पहले तो यही कि वह फल जहरीला है, दूसरा उसका उन पर दुष्प्रभाव पड़ेगा और यह केवल तोतों तक ही सीमित नहीं हैं। अन्य पशु-पक्षी भी विशेष परिस्थितियों में कुछ इसी प्रकार का व्यवहार करते हैं।
मगर आधुनिकता के इस दौर में भी मानव क्यों इस काबिल नहीं है कि वह इन सब विधाओं को जान सके और अपने मन को नियंत्रित कर सही फैसले ले सके। दरअसल, मनुष्य प्रकृति से दूर हो चुका है और वह प्रकृति के लिए एक खतरे के तौर पर उभर रहा है। वह सब जानता है, लेकिन अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए न केवल प्रकृति को बल्कि आगामी पीढ़ियों के लिए भी कब्र खोद रहा है। अपनी सीमित बुद्धि और क्षमताओं से पशु-पक्षी श्रेष्ठ प्रकृति प्रेमी का आचरण करते हैं किंतु आधुनिक मानव नहीं…
(लेखक युवा पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं, इससे फोरम4 का सहमत होना बिल्कुल भी जरूरी नहीं है)
Be the first to comment on "आधुनिकता के दौर में प्रकृति प्रेमी कौन?"