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poem by vivek anand singh

कविताः जले खतों को राख में फिर से उभरते देखा

-विवेक आनंद सिंह किसी सूरत को देखा किसी मूरत को देखा बदलते हर एक मौसम में किसी अपने को देखा   खुमारी के आलम में, नशा चढ़ कर जो बोला है लगा के आग सीने…