सुनो न माँ,
सुनती क्यों नहीं,
बस आज की बात है माँ,
कल से पक्का जाऊंगी।
कैसे-कैसे बहाने बना स्कूल से बचूं मैं,
कैसे कहूं माँ,
स्कूल से बचना मेरी शैतानी नहीं,
मज़बूरी है मेरी।
माँ तो नादान है मेरी,
अनजान है वो इस समाज के अंधकार से अभी।
भूल जाती है कि
ये विश्वामित्र या संदीपनी का जमाना नहीं है,
यह जमाना है शिक्षक का चोगा ओढ़े
भेड़ियों का।
कैसे कहूं उसे,
गन्दा लगता है मुझे,
जब धीरे-धीरे कर वो मेरी स्कर्ट उठाता है,
काँप सी जाती हूँ मैं,
जब वो मेरी जांघों पर उँगलियाँ घुमाता है।
माँ,
बेबस होकर भी चुप हो जाती हूँ मैं,
कहीं पापा से वो कुछ न कह दे,
बस इस डर से हर बार उसके बुलाने पर,
अकेले मिलने चली जाती हूँ मैं।
कैसे बताऊँ माँ,
मेरा पूरा शरीर कांपता है,
जब धीरे-धीरे वो मेरे स्तनों पर हाथ फेरता है।
रोंगटे खड़े हो जाते हैं माँ,
जब अचानक से वो मेरे कानों में कुछ कहता है।
कैसे कहूं माँ,
वो देर शाम तक भी क्यों पढ़ाता है।
पर,
माँ से न सही,
समाज से न सही,
पर आपसे प्रश्न है मेरा,
क्या उचित है यह,
किसी छात्रा का विश्वास पाकर,
उसके साथ दुर्व्यवार करना?
क्या सही है यह,
सबकी नजरों से बचाकर,
उसका मेरे गालों को मसलना?
क्या स्वीकृत है यह,
इतने पूज्यनीय पद पर होकर,
उसका मुझे अंदर तक छलनी कर देना?
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