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सर पर छत है पर पानी टपकता है

सर पर छत  है ,

पर पानी टपकता है।

 

खुशियों का अंबार है ,

पर आदमी फफकता है।

 

चारों तरफ नीतिज्ञ  हैं,

पर वह बहकता है।

 

बेईमानी से भरा  है,

पर वो महकता है।

 

सदमें भी सहा है,

पर दूसरों पर चहकता है।

 

कमियां भरपूर हैं,

पर दूसरों की पकड़ता है।

 

आदमी फितरती है,

पर सबको मशकता  है।

 

इतना सब कुछ साथ है,

पर स्व को न पकड़ता है।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

डॉ गौरव त्रिपाठी
असिस्टेंट प्रोफेसर राजनीति विज्ञान, राजकीय पीजी कालेज लालगंज मीरजापुर

1 Comment on "सर पर छत है पर पानी टपकता है"

  1. JAY SHANKAR PANDEY | September 8, 2019 at 11:29 PM | Reply

    सत्य वचन, सार्थक सृजन गुरुवर ??

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