साल था 1959। उस वक्त की न्याय व्यवस्था आज की तरह नहीं थी, जूरी का सिस्टम था। एक पारसी बांका नेवी ऑफिसर कावस नानावटी कोर्ट में मौजूद था। मामला था कि उसने एक प्लेबॉय प्रेम आहूजा की गोली मारकर हत्या कर दी, जिससे उस ऑफिसर की बीवी सिल्विया को इश्क हो गया था। नानावटी ने जब प्रेम को गोली मारी तो उस वक्त वह तौलिए में था। इसी बात को पकड़कर पब्लिक प्रोसिक्यूटर सीएम त्रिवेदी के युवा असिस्टेंट ने मामले को ऐसा उलझाया कि दुनिया भर की मीडिया इस मामले को हाइप देने लगी। उसने कहा कि जब नानावटी औऱ प्रेम आपस में उलझे तो गोली ही क्यों चल गई, तौलिया क्यों नहीं गिरा। इस तर्क के बाद वह युवा वकील दुनिया भर में अपना चेहरा बना गया। इस चेहरे का नाम था राम जेठमलानी। वकालत की दुनिया का बादशाह। नानावटी केस बेहद मशहूर मामलों में गिना जाता है। एक ऐसा केस जिसके फैसले को ऐसे कई मामलों में उदाहरण बना कर पेश किया गया। अभी हाल ही में इस मामले पर अक्षय कुमार की फिल्म रुस्तम आई थी।
राम जेठमलानी का जन्म 14 सितंबर 1923 को तबके बॉम्बे प्रेसिडेंसी के सिंध प्रांत में हुआ था। जेठमलानी ने 13 साल की उम्र में मैट्रिक कर लिया, कराची से 17 की उम्र में लॉ किया और दो साल बाद ही दुर्गा से उनकी शादी भी हो गई। फरवरी 1948 में कराची में दंगे हुए तो राम बंबई चले आए और वकालत के लिए प्रैक्टिस शुरू की। यहीं पर रत्ना से उनकी मुलाकात हुई थी। पहली पत्नी दुर्गा से काफी अलग थीं रत्ना। शादी के लिए दोनों को दिल्ली आना पड़ा क्योंकि बंबई में वो दो शादियां नहीं कर सकते थे। उस दौरान बंबई स्मगलरों का गढ़ था। इन पर काफी फिल्में भी बनी हैं। राम शुरुआत में उनके केस लड़ते थे। इनको स्मगलरों का वकील कहा जाने लगा था। हाजी मस्तान के लिए कई केस लड़े थे इन्होंने। कहते थे कानून में माइलस्टोन महान लोगों के केस से नहीं बनते बल्कि डिसरिप्यूटेबल लोगों के केस से ही बनते हैं। वह मानते थे कि ऑफिस में स्मगलिंग के पैसों से भरा व्यक्ति उनके पास मुक्ति के लिए आता है और उसे मुक्त करना वह अपना कर्तव्य समझते थे। इनके जूनियर रहे जयसिंघानी ने कहा था कि एक वक्त पर जेठमलानी की कमाई का बड़ा हिस्सा इस तरह के केस से आता था।
वकालत तो चलती रही। धीर-धीरे इस धाकड़ वकील ने राजनीति में जगह बनानी शुरू की। अब राम ने राजनीति में भी रुझान दिखाना शुरू किया या फिर यूं कहें कि राजनीति ने इनमें रुझान दिखाना शुरू किया। बंबई के उल्हासनगर से 1971 में इन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ा। शिवसेना और जनसंघ दोनों ने सपोर्ट किया था लेकिन नसीब में हार लिखी थी। हालांकि बाद में वह बार असोशिएशन ऑफ इंडिया के चेयरमैन बन गए। उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की नीतियों की जमकर आलोचना की। इमरजेंसी के दौर में भी यह बेबाकी कायम रही। सुप्रीम कोर्ट में कहा कि जनतंत्र अब ताबूत में जा चुका है। नतीजन केरल से इनके खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी हो गया और फिर बंबई हाई कोर्ट में 300 वकीलों के साथ नानी पालखीवाला इनका केस लड़ने के लिए आए। कोर्ट ने अरेस्ट पर स्टे लगा दिया। बाद में फिर स्टे हटा लिया गया। तब तक राम कनाडा चले गये और लौटे तो इमरजेंसी खत्म होने के बाद। कनाडा में ही रहते हुए उन्होंने बॉम्बे नॉर्थ वेस्ट लोकसभा से नॉमिनेशन भर दिया और जीत दर्ज की। पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के साथ इनका किस्सा काफी रोचक है। दरअसल जेठमलानी को लगता था कि पीएम देसाई इन्हें कानून मंत्री बना देंगे, लेकिन उन्होंने राम की शराब पीने की लत की वजह से ऐसा नहीं किया। जब देसाई शराबबंदी प्रमोट कर रहे थे तब राम ने कहा था: You stick to your pissky and I’ll stick to my whisky. देसाई खुद के मूत्र को दवा की तरह इस्तेमाल करते थे। ये राम का व्यंग्य था। देसाई के साथ ये तनातनी बनी रही। एक बार देसाई ब्रह्मचर्य पर भाषण दे रहे थे। बीच में ही राम ने कह दिया था: मोरारजीभाई, अगर मेरी बीवी गजराबेन ( देसाई की पत्नी) जैसी दिखती तो मैं 18 की उम्र में ही ब्रह्मचारी बन जाता।
1992 में हर्षद मेहता स्कैम का खुलासा हुआ। मुंबई के वकीलों की चांदी हो गई। मेहता के खिलाफ 70 से ऊपर केस थे। वकील जिस वक्त हर्षद से एक लाख रुपया फीस लेकर पार्टी मना रहे थे, राम 25 लाख रुपए लेते थे। इस केस पर कोई अंतिम फैसला कभी नहीं हुआ पर राम के स्टेटस में ये चार चांद लगा गया। उस वक्त जब भी राम का नाम कहीं आता, लोग सोचने लगते कि ये आदमी अब क्या करेगा। बाद में राम ने भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी का भी हवाला केस लड़ा। जिता भी दिया। 2015 में राम ने कहा कि सिर्फ मेरी ही वजह से लाल ये केस जीत पाए। आडवाणी ने कसम खाई थी कि ये केस क्लियर होने के बाद ही संसद में कदम रखूंगा। राम ने लाज रख ली थी। जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई तो ये ‘ओपन एंड शट केस था।’ एक मारा गया था, दो लोग पकड़े गए थे। पर जेठमलानी थे इस मामले में दोनों हत्या के आरोपियों का केस लड़ रहे थे। बलबीर सिंह और केहर सिंह का। 2009 में आउटलुक को बताया था कि हमारे व्यवसाय में किसी की रिक्वेस्ट को आदेश के तौर पर लिया जाता है। मेरे पास उनके केस को लड़ने के अलावा कोई उपाय नहीं था। सिंधियों के अल्पसंख्यक होने की बात ऊपर कही गई है। राम अल्पसंख्यकों के अधिकारों के बड़े पक्षधर रहे हैं। राम ने बलबीर सिंह को बचा लिया। पर केहर सिंह को फांसी हुई। राम कहते हैं कि उसका केस तो और भी कमजोर था। राम को इसकी कीमत चुकानी पड़ी। कांग्रेसी की विरोधी पार्टी भाजपा से उनको निकाल दिया गया। राज्यसभा में चिल्लाया गया कि इंदिरा गांधी के हत्यारों का वकील, उसको राज्यसभा में क्यों लाया। जेठमलानी ने राजीव गांधी की हत्या के आरोपी मुरुगन का केस भी लड़ा। कहा कि मुरुगन का काम देश के खिलाफ षड़यंत्र नहीं था बल्कि एक प्रधानमंत्री से नाराजगी थी जो लिट्टे को मदद देने के अपने वादे से मुकर गया था। मुरुगन को उसके बॉस ने सिखाया था। उसने वही किया जो उससे कहा गया था। एक सिटिंग प्रधानमंत्री और एक पूर्व प्रधानमंत्री के हत्या के आरोपियों का केस लड़ना सबके बस की बात नहीं थी। एक वकील के नजरिए से बस उसे अपना क्लाइंट दिख रहा था जिनके निर्दोष होने की वो वजहें खोज रहा था। कभी कभी ऐसा लगता है कि राम केस के सही गलत होने के बजाय आरोपियों को बचाने की अपनी क्षमता नापा करते थे, वरना ऐसे केस कौन लेता?
राम का पॉलिटिकल करियर भी तूफानी रहा। 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में लॉ मिनिस्टर बने। 1998 में मिनिस्टर ऑफ अर्बन अफेयर्स बने। बाद में 1999 में फिर वाजपेयी सरकार में लॉ मिनिस्टर बने। पर तत्कालीन सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ए एस आनंद और अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी से असहमतियों के कारण इस्तीफा देना पड़ा। 2004 में लखनऊ से अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ निर्दलीय लोकसभा चुनाव लड़ लिया। कांग्रेस ने उनके सपोर्ट में अपना उम्मीदवार नहीं उतारा। फिर भी राम हार गए और 2010 में भाजपा ने ही उनको राजस्थान से राज्यसभा पहुंचा दिया। 2012 में राम ने भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी को पत्र लिखा कि यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ पार्टी चुप क्यों है। ये पत्र इंटरनेट पर आ गया। नतीजन 2013 में जेठमलानी को पार्टी से बाहर कर दिया गया। राम ने भाजपा पर 50 लाख रुपये की मानहानि का केस कर दिया क्योंकि भाजपा ने उन्हें पार्टी के लिहाज से अनफिट कहा था। वाजपेयी सरकार में ही मंत्री रहने के दौरान अरुण जेटली से इनकी ठन गई थी। अस्सी के दशक में अरुण ने बतौर वकील राम को असिस्ट किया था। नुस्ली वाडिया के बॉम्बे डाइंग और अंबानी के रिलायंस इंडस्ट्रीज के मामले में। बाद में दोनों लोग वाजपेयी सरकार में मंत्री हुए। राम लॉ मिनिस्टर बने। जेटली भी बनना चाहते थे। बाद में राम को रिजाइन करना पड़ा था। राम के मुताबिक लॉ मिनिस्ट्री छिन जाने में अरुण का भी हाथ था तो अरविंद केजरीवाल वाले मामले में ऐसा माना जा रहा था कि अरुण जेटली पर तंज कसकर राम बदला निकाल रहे थे। अरुण के मानहानि के दावों पर राम ने पैसों और इज्जत को जोड़ते हुए व्यंग्य किया था। बतौर क्रिमिनल लॉयर वह इंडिया के सबसे बड़े वकील रहे। कहते थे कि लोग क्रिमिनल लॉयर को बिना किसी नैतिकता के समझते हैं पर इसको देखने का दूसरा नजरिया भी है। अपराधियों के केस लड़ता हुआ वो एक समाज सुधारक भी है जो सबके बराबर हितों के लिए लड़ता है। राम जेठमलानी की जिंदगी निस्संदेह तमाम फिल्मों और कथाओं को जन्म देगी।
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