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वो पाश जिन्होंने कहा “हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए”

सपनों को कभी मरने नहीं देना चाहिए इसलिए पाश ने लिखा कि सबसे खतरनाक होता है सपनों का मर जाना। लेकिन, पाश के सपने भी अधूरे ही रह गये। दरअसल 23 मार्च को खालिस्तानी उग्रवादियों ने उन्हें गोली मार दी। पाश एक क्रांतिकारी लेखक थे। उनका पूरा नाम अवतार सिंह संधू है। उनका 9 सितंबर 1950 को पंजाब में जालंधर के तलवंडी सलेम नामक गांव में जन्म हुआ। उन्होंने बहुत कम उम्र में ही कविताएं लिखना शुरू कर दिया था। उनकी पहली कविता 1967 में “दस्तावेज” नामक पत्रिका में छप चुकी थी। पंजाब में जन्मे पाश पर पंजाब में चल रहे क्रांतिकारी संघर्ष का असर पड़ा। जिसे उन्होंने अपनी कविताओं में उतारा जिसके चलते उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्होंने दो साल तक जेल में रहते हुए भी क्रांतिकारी भाव नहीं छोड़ा। उन्होंने जेल में रहकर ढेरों रचनाएं लिखी।

भगत सिंह और पाश दोनों ही 23 मार्च को शहीद हो जाते हैं। भगत सिंह की शहादत पर पाश ने एक कविता भी लिखी थी।

पहला चिंतक था पंजाब का

सामाजिक संरचना पर जिसने

वैज्ञानिक नज़रिये से विचार किया था

 

पहला बौद्धिक

जिसने सामाजिक विषमताओं की, पीड़ा की

जड़ों तक पहचान की थी

 

पहला देशभक्त

जिसके मन में

समाज सुधार का

एक निश्चित दृष्टिकोण था

 

पाश पर भगत सिंह की क्रांतिकारी छाप साफ दिखाई देती है। उनकी कविताओं में क्रांतिकारी भाव दिखाई देता है। बहुत कम उम्र में हासिल की उपलब्धि वर्षों तक लोगों में चर्चा का विषय बन जाती है। भविष्य में लोग उन इतिहास के धरोहरों को संजो कर रखना चाहते हैं। उन पलों को खुद में जीना चाहते हैं। पाश ने अपनी कविताओं के जरिए लोगों को सपनों और उम्मीदों को पालना सिखाया है।

उनकी मृत्यु के बाद एक काव्या संग्रह प्रकाशित हुआ उसमें कई प्रकाशित और अप्रकाशित कविताएं संकलित की गयी। उन्हीं में से उनकी एक कविता है “हम लड़ेंगे साथी”

हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए

हम लड़ेंगे साथी, ग़ुलाम इच्छाओं के लिए

 

हम चुनेंगे साथी, ज़िन्दगी के टुकड़े

हथौड़ा अब भी चलता है, उदास निहाई पर

हल अब भी चलता हैं चीख़ती धरती पर

यह काम हमारा नहीं बनता है, प्रश्न नाचता है

प्रश्न के कन्धों पर चढ़कर

हम लड़ेंगे साथी

 

उनकी कुछ प्रमुख कृतियों में ये शामिल हैं

– लौहकथा

– लडेंगे साथी

– साडे समियाँ विच

– उड्डदे बाज़ाँ मगर

 

उनकी प्रमुख रचनायें

घास, सपने, अब विदा लेता हूँ, उनके शब्द लहू के होते हैं…

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

कोमल कश्यप
कोमल स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य कर रही हैं।

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